सरकारी स्कूल हुआ चका-चक तो बढ़ गए बच्चे

नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 21 के तहत प्रदेश में हर विद्यालय में प्रबंध समिति का गठन किया गया है। इस समिति में 11 अभिभावकों को सदस्य बनाया जाता है और इसका सचिव प्रधानाध्यापक होता है।

Diti BajpaiDiti Bajpai   8 Jun 2018 10:33 AM GMT

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सरकारी स्कूल हुआ चका-चक तो बढ़ गए बच्चे

इकौना (श्रावस्ती)। सरकारी स्कूल का नाम सुनते ही आपके दिमाग में टूटी-फूटी बिल्डिंग, खस्ताहाल क्लासरूम, गंदे स्कूल ड्रेस पहने बच्चे जैसी चीजें सामने आती हैं, लेकिन बनकटा गाँव में स्थित प्राथमिक विद्यालय को देखते ही आपके दिमाग में सरकारी स्कूल की छवि बदल जाएगी। इस स्कूल के शिक्षक और विद्यालय प्रबधंन समिति के प्रयासों से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करके प्राइवेट स्कूल को पीछे छोड़ दिया है। श्रावस्ती जिले के विकासखंड क्षेत्र इकौना के बनकटा गाँव स्थित प्राथमिक विद्यालय में वर्ष 2015 में जहां मात्र 65 बच्चे ही पढ़ रहे थे, वहीं अब 2018 में यही संख्या 110 हो गई है।

शुरू में जब स्कूल में मेरी तैनाती हुई तो यहां की हालत बहुत ही ज्यादा खराब थी। न खाना बनता था और न ही पढ़ाई होती थी। लेकिन समय-समय पर विद्यालय प्रबधंन समिति की बैठक हुई और कई बदलाव आए। बनकटा गाँव के प्राथमिक विद्यालय में हेड मास्टर बृजनंदन सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, पहले गाँव के अधिकतर बच्चे प्राइवेट स्कूल में ही पढ़ने जाते थे, लेकिन अच्छी पढ़ाई और स्कूल में मूलभूत सुविधाएं होने से हमारे स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ गई। 110 बच्चे हैं ही, आने वाली जुलाई में बच्चों के नांमाकन और बढ़ेंगे।

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नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 21 के तहत प्रदेश में हर विद्यालय में प्रबंध समिति का गठन किया गया है। इस समिति में 11 अभिभावकों को सदस्य बनाया जाता है और इसका सचिव प्रधानाध्यापक होता है। इस समिति की हर महीने एक बैठक होती है, जिसमें स्कूलों के कार्यों के बारे में चर्चा होती है। विद्यालय के संचालन में अभिभावकों की सक्रिय भूमिका को यह समिति ही निभाती है।

"हमारे गाँव के बच्चे ज्यादातर प्राइवेट स्कूल में पढ़ते थे। तब हम लोगों ने मीटिंग की और समिति के सदस्यों ने गाँव के लोगों को समझाया। धीरे-धीरे लोगों ने बच्चों को सरकारी स्कूल भेजना शुरू किया।"बनकटा गाँव के प्राथमिक विद्यालय में गठित विद्यालय प्रबधन समिति के अध्यक्ष आनंद प्रकाश ने बताया, "स्कूल में रोज शिक्षकों की उपस्थिति होने लगी तो बच्चे भी समय से स्कूल आने लगे। इससे पास के प्राइवेट स्कूल में बच्चों का जाना बंद हो गया और एक साल पहले प्राइवेट स्कूल बंद हो गया।"

इस प्राथमिक विद्यालय में अभी एक शिक्षामित्र और एक हेडमास्टर है। इस स्कूल के बच्चों को पाठ्यक्रम के अलावा सामान्य ज्ञान, नैतिक शिक्षा, अनुशासन और स्वच्छता के बारे में भी पढ़ाया जाता है। बच्चे स्कूल में साफ सुथरे होकर आए, इसके लिए समिति अभिभावको को प्रेरित भी करती है। विद्यालय प्रंबधन समिति की उपाध्यक्ष आबिदा बताती हैं, बच्चों के नाखून कटे हो, साफ कपड़े हो, चप्पल या जूते में हो, बैग में सही ढंग से किताबें रखी हों, यह सब चीज़ें बच्चों के माता-पिता को बताते हैं ताकि वो उन्हें इसी तरह भेजें। क्योंकि पढ़ाई के साथ-साथ उनका साफ-सुथरा स्कूल आना भी जरूरी है।

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आबिदा आगे बताती हैं, हम अभिभावकों को बोलते हैं जैसे प्राइवेट स्कूल में बच्चों को भेजते हैं, वैसे ही सरकारी स्कूल में भी भेजो। अभी बहुत ही कम बच्चे साफ-सुथरे से आते हैं, लेकिन जब कुछ बच्चे आएंगे तभी तो पूरे स्कूल का माहौल बदलेगा। बनकटा गाँव में रहने वाले यूसूफ खां अपने दोनों बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए गाँव के प्राइवेट स्कूल में भेजते थे, लेकिन अब उनके दोनों बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं। यूसूफ बताते हैं, मेरी बेटी कक्षा तीन और बेटा कक्षा एक में पढ़ता है, लेकिन गाँव के कई लोगों ने प्राइवेट स्कूल से बच्चों का नाम कटा लिया, जब हमने भी सरकारी स्कूल की पढ़ाई देखी तो अपने बच्चों को नाम लिखवा दिया।

शिक्षकों की कमी फिर भी होती है अच्छी पढ़ाई

पिछले चार वर्षों में इस प्राथमिक विद्यालय में शिक्षकों की कमी है, लेकिन फिर भी शिक्षामित्र और हेडमास्टर के द्वारा स्कूल में बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा रही है। स्कूल में शिक्षकों की कमी है लेकिन इस कमी को हम लोगों ने मजबूरी नहीं बनाया है। हम दो टीचर मिलकर ही बच्चों को पढ़ाते हैं।" हेड मास्टर बृजनंदन सिंह बताते हैं।


स्कूल में ठहराव के लिए शिक्षक खेल-खेल में कराते हैं पढ़ाई

बच्चों के स्कूल मे ठहराव के लिए इस विद्यालय में हेडमास्टर ने नया कदम उठाया है। हेड मास्टर बृजनंदन सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, "स्कूलों में बच्चों की संख्या तो बढ़ जाती है, लेकिन उनका ठहराव कम होता है। उनका ठहराव रहे इसके लिए उन्हें खेल-खेल में पढ़ाई कराना, ज्ञानवर्धक कहानियां सुनाना, नई-नई चीजें सिखाई जाती हैं। इससे बच्चों के ज्ञान में तो वृद्धि होती है, साथ ही उनकी रुचि भी बढ़ती है और अगले दिन उसी उत्साह से स्कूल भी आते हैं।"


बच्चों की साफ-सफाई पर दिया जाता है ध्यान

जहां पहले स्कूल में बच्चे बिना स्कूल ड्रेस के चले आते हैं। वहीं अब इस स्कूल में बच्चे पूरी स्कूल ड्रेस और साफ-सथुरे होकर आते हैं। इस विद्यालय की समिति की उपाध्यक्ष आबिदा बताती हैं, "समिति में जितने भी लोगों के बच्चे पढ़ते हैं, पहले हम उनको सिखाते हैं कि वो बच्चों को साफ-सुथरा करके भेजें तभी उनको देखकर और बच्चे भी उनके जैसे ही बनकर आएंगे। अपनी बात को जारी रखते हुए बताती हैं, बच्चे नहाकर आए, नाखून कटे होने चाहिए, स्कूल की ड्रेस साफ होनी चाहिए, बालों में तेल लगा होना चाहिए जैसे कई मानक तैयार किए गए हैं।

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मीनू के अनुसार बनता है खाना

अक्सर आपने सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील न बनने की खबरें सुनी होगी। लेकिन इस स्कूल में मीनू के अनुसार खाना तैयार किया जाता है। स्कूल में पिछले तीन वर्षों से रसोईया का काम कर रही कलावती बताती हैं, हर दिन जो मीनू में लिखा होता है, वहीं खाना बनाया जाता है। ग्राम प्रधान पूरा राशन देते हैं। बच्चों को दूध मिलता था, लेकिन वो अभी स्कूल में नहीं दिया जा रहा है। हमारे यहां अभी 100 बच्चों को खाना रोज बनता है।

दीवारों पर लिखवाकर बच्चों को कराते हैं पढ़ाई

बच्चों के ज्ञान को बढ़ाने के लिए स्कूलों की दीवारों को शिक्षाप्रद चित्र भी बनाए गए हैं। विद्वयालय में शिक्षामित्र रेनू पाठक बताते हैं, दिनों के नाम, महीनों के नाम, एबीसी, कखग समेत कई ऐसी पढ़ने वाली साम्रगी को दीवार पर लिखवाया गया है ताकि बच्चों को यह चीजें समझ आ सकें।

स्कूल में शौचालय की भी व्यवस्था

ज्यादातर सरकारी स्कूलों में शौचालयों की हालत खराब रहती है, लेकिन इस प्राथमिक विद्यालय में समिति द्वारा शौचालयों का निर्माण कराया गया। शौचालय न होने की वजह से महिला शिक्षकों को खेतों में शौच के लिए जाना पड़ता है। ऐसे में महिला शिक्षक स्कूल नहीं आती हैं इसलिए हम लोगों ने अपने प्रयासों से और प्रधान की मदद शौचालय को बनाया। विद्यालय प्रबंधन समिति की सदस्य जाकरून ने बताया।

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