अभिभावकों की सक्रियता बदल सकती है ग्रामीण शिक्षा : निदेशक, बेसिक शिक्षा

प्राथमिक विद्यालयों में गुणवत्ता का मतलब यह नहीं कि बहुत अच्छी बिल्डिंग या बाउंड्री नहीं है, होना यह चाहिए कि बच्चे अच्छे से सीख रहे हैं या नहीं।

Manish MishraManish Mishra   30 Aug 2018 8:52 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
अभिभावकों की सक्रियता बदल सकती है ग्रामीण शिक्षा : निदेशक, बेसिक शिक्षा

लखनऊ। "अभिभावक अगर स्कूल की गतिविधियों पर नजर और अपनी भागीदारी रखें तो बहुत फर्क पड़ेगा। बच्चे के स्कूल से लौटने पर यह जरूर पूछें कि दिन भर क्या हुआ तो बड़ा बदलाव दिखेगा", यह कहना है बेसिक शिक्षा, उत्तर प्रदेश के निदेशक सर्वेन्द्र विक्रम सिंह का।

गाँव कनेक्शन संवाददाता से विशेष बातचीत में सर्वेन्द्र विक्रम सिंह ने कहा, "गुणवत्ता का मतलब यह नहीं कि बहुत अच्छी बिल्डिंग या बाउंड्री नहीं है, होना यह चाहिए कि बच्चे अच्छे से सीख रहे हैं या नहीं।"


ये भी पढ़ें : अध्यापकों की कमी होने पर ग्रामीणों ने संभाली पढ़ाई की जिम्मेदारी

सर्वेन्द्र विक्रम प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सीखने-सिखाने की चर्चा कैसे हो इस पर ज्यादा जोर देते हैं। वह कहते हैं, "इसके लिए ग्राम शिक्षा समितियों के न्याय पंचायत स्तर पर होने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम में इस बात पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है कि कक्षा-एक और दो के विद्यार्थियों की माताओं को बताया जाए कि बच्चे क्या सीख रहे हैं। ताकि वह बच्चों की सीखने की क्षमता पर नजर रख सकें।"

शिक्षा विभाग अध्यापकों और अभिभावकों की जिम्मेदारी तय करते हुए यह भी देखेगा कि बच्चे कितना सीख रहे हैं। सर्वेन्द्र विक्रम कहते हैं, "इसके लिए स्कूलों की जिम्मेदारी भी निर्धारित की जाएगी। यह भी देखा जाएगा कौन से स्कूल अच्छा काम कर रहे हैं, कहां विभाग को ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। इस बार सभी प्राइमरी स्कूलों में एक कार्यक्रम शुरू कर रहे हैं, जहां बच्चों की दक्षता के आधार पर समूह बनाए जाएंगे, कक्षा एक से पांच तक के बच्चों का टेस्ट लेंगे, जो बच्चा जिस स्तर का है उसे उस स्तर का पढ़ाने के लिए समूह बनाएंगे, उसके बाद विशेष शिक्षण कार्यक्रम चलाया जाएगा। इस दौरान जो कक्षा में पढ़ाया जाता है उसे नहीं रोका जाएगा।"

ये भी पढ़ें : प्राथमिक विद्यालय के ये बच्चे भी बनना चाहते हैं इंजीनियर और डॉक्टर

अभिभावक जानेंगे बच्चे की प्रगति

अभिभावक कैसे अपने बच्चे की प्रगति जानें इसकी भी व्यवस्था की जा रही है। यह समझाते हुए सर्वेन्द्र विक्रम सिंह ने कहा, "एनसीआरटी द्वारा कक्षावार फोल्डर बनाए गए हैं, जो अभिभावकों को दिए जाएंगे, इसमें बताया गया है कि किस कक्षा के बच्चे को कितना सीख लेना चाहिए। विषय की किताब में भी जोड़ा गया है। अगर अभिभावक थोड़ा भी ध्यान दें तो बड़ा बदलाव दिखेगा। वह कुछ सरल सवाल पूछकर बच्चे की प्रगति जान सकते हैं।"


उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा..

10.09 लाख टीचर स्कूलों में पढ़ा रहे हैं

39 है अध्यापक और टीचर का अनुपात, यह देश में सबसे अधिक है

1,13,114 प्राथमिक विद्यालय हैं

45, 624 पूर्व माध्यमिक विद्यालय हैं

2.5 लाख छात्र/छात्राएं पढ़ते हैं प्राइमरी स्कूलों में करीब

ये भी पढ़ें : विद्यालय प्रबंधन समितियों के सहयोग से शिक्षा के स्तर में आया सुधार

बहुत काम आएगा क्यूआर कोड

निदेशक बेसिक शिक्षा के मुताबिक, स्कूल की किताबों में क्यूआर कोड छापा गया है, अगर स्मार्टफोन से क्यूआर कोड को स्कैन करें तो उससे जुड़ी आडियो-वीडियो की जानकारी भी अध्यापक और शिक्षक डाउनलोड कर सकते हैं, और बच्चों को मनोरंजक तरीके से पढ़ाया जा सकता है।

शिक्षक और समुदाय मिलकर बदल सकते हैं तस्वीर

निदेशक कहते हैं कि पिछले साल हमने राज्य स्तरीय बैठक में दो शिक्षकों को बुलाया, इन्होंने अपनी कोशिशों और स्थानीय समुदाय की मदद से स्कूल का कायाकल्प किया और स्मार्ट क्लास शुरू की। जब इन शिक्षकों ने अपने कामकाज की प्रस्तुति दी तो उससे दूसरे शिक्षकों में संदेश गया कि अगर वह चाहें तो बदलाव हो सकता है।

छुट्टी के दिन करते हैं बैठक

अभी 15 से 16 हजार शिक्षकहैं, जिन्होंने अपना समूह बनाया, जिसे 'आईसीटी इनोवेटर्स' के नाम से जाना जाता है। ऐसे अध्यापक छुट्टी के दिन बैठक करते हैं, ताकि बच्चों की पढ़ाई में खलल न पड़े। महत्वपूर्ण यह है कि यह शिक्षक खुद ही करते हैं। इसके लिए हर शिक्षक को अपनी प्रविष्टि भेजनी होती है, जिसका शिक्षक खुद ही चयन करते हैं।

ये भी पढ़ें : युवा प्रधान ने नौकरी छोड़ गाँव संग संवारा स्कूल


    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.