प्रधानाध्यापिका की रंग लाई मेहनत, बढ़ा बच्चों का नामांकन

पहले बहुत कम बच्चे स्कूल आते थे। काफी मेहनत के बाद इस वर्ष स्कूल में पंजीकृत बच्चों की संख्या 115 है, जिसमें 65 छात्राएं और 50 छात्र हैं। स्कूल में इतनी अच्छी पढ़ाई होती है कि दूसरे गाँव के बच्चे इस विद्यालय में पढ़ने आते हैं।

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   27 Aug 2018 5:40 AM GMT

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बाराबंकी। "जब मेरी इस स्कूल में नियुक्ति हुई थी तब बहुत कम बच्चे स्कूल आते थे। शुरुआत में स्कूल आने के पर मैं सीधे गाँव में जाती थी, मुझे कई बच्चे सोते मिलते थे। उन्हें जगाकर और नहलाकर स्कूल लाती थी, मेरी मेहनत का नतीजा है कि आज स्कूल में 115 बच्चे पंजीकृत हैं, "यह कहना है देवा ब्लॉक के हीरपुर प्राथमिक विद्यालय की प्रधानध्यापिका का।

इस स्कूल में कुछ साल पहले तक करीब 40-50 छात्र पंजीकृत थे और जो पंजीकृत थे उसमें से बमुश्किल 30 बच्चे पढ़ने आते थे। स्कूल की प्रधानाध्यापिका भावना श्रीवास्तव ने बताया, "वर्ष 2016 में जब मेरी इस स्कूल में नियुक्ति हुई थी तब यहां पर बस एक शिक्षामित्र में सहारे यह स्कूल था। बहुत कम बच्चे स्कूल आते थे, मेरे सामने बच्चों की संख्या बढ़ाने की चुनौती थी। स्कूल की बिल्डिंग जर्जर थी।"

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रंग बिरंगी वॉल पेंटिंग हर किसाी को करता है आकर्षित।

अध्यापकों ने खुद की वाल पेंटिंग, बनाया सुंदर परिसर

प्रधानाध्यापिका ने जब बच्चों से स्कूल न आने की वजह पता किया तो पता चला कि बदरंग और जर्जर इमारत में पढ़ने नहीं आना चाहते थे बच्चे। तब प्रधानध्यापिका ने प्रधान के सहयोग से स्कूल की बिल्डिंग ठीक कराई। इसके बाद सहायक अध्यापिका प्रज्ञा वर्मा के साथ मिलकर पूरे स्कूल में खूबसूरत पेंटिंग बनाई। कहीं मिक्की माउस तो कहीं रंग बिरंगे फूल तो कहीं गिनती-पहाड़े लिखे। वर्तमान में स्कूल देखते ही बनता है। बच्चों को अब यहां पढ़ना काफी अच्छा लगता है।


इस स्कूल में पढ़ने आते हैं कई गाँवों के बच्चे

प्रधानाध्यापिका ने बताया, "पहले बहुत कम बच्चे स्कूल आते थे। काफी मेहनत के बाद इस वर्ष स्कूल में पंजीकृत बच्चों की संख्या 115 है, जिसमें 65 छात्राएं और 50 छात्र हैं। हमारे स्कूल में इतनी अच्छी पढ़ाई होती है कि दूसरे गाँव के बच्चे हमारे विद्यालय में पढ़ने आते हैं।

पड़ोस के गाँव से यहां आने वाले छात्र बृजेश ने बताया, "मैं पहले जिस स्कूल में पढ़ता था वहां पढ़ाई अच्छी नहीं होती थी। हमें होमवर्क नहीं दिया जाता था। लेकिन यहां बहुत अच्छी पढ़ाई होती है। हमें हर विषय के बारे में बताया जाता है। मुझे यहां अच्छा लगता है।"

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बच्चों को हुनर का जाता है तराशा।

हर एक बच्चे पर दिया जाता है ध्यान

स्कूल से अध्यापकों की मेहनत का परिणाम है कि प्राइवेट स्कूल को छोड़कर बच्चे यहां पढ़ने आ रहे हैं। सहायक अध्यापिका प्रज्ञा वर्मा ने बताया, "लोग अपने बच्चों को प्राथमिक स्कूल में नहीं भेजना चाहते थे। जो बच्चे स्कूल आते थे हम लोगों ने उन पर खूब मेहनत की। अध्यापकों ने एक-एक बच्चे पर ध्यान दिया। जिस बच्चे को नहीं आता था उसे उस विषय की जानकारी दी। परिणाम यह रहा कि बच्चे काफी कुछ सीख गए। यह देख अन्य अभिभावक भी अपने बच्चों का नाम कटवाकर यहां लिखवा रहे हैं। इस वर्ष 30 बच्चे प्राइवेट स्कूल से हमारे यहां पढ़ने आये हैं।"

अभिभावक राम मिलान यादव ने बताया, "मेरे दो बच्चे पहले पास के प्राइवेट स्कूल में पढ़ने जाते थे, लेकिन वहां पढ़ाई नहीं होती थी। एक बार प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले कुछ बच्चों से कुछ प्रश्न पूछे, सभी बच्चों ने प्रत्येक सवाल का सही जवाब दिया। इसके बाद मैंने भी अपने बच्चों का नाम प्राइवेट स्कूल से कटाकर यहां लिखवा दिया।

वहीं कक्षा चार के छात्र अरुण ने बताया, "जिस प्राइवेट स्कूल में मैं पहले पढ़ता था वहां पढ़ाई नहीं होती थी। टीचर बच्चों पर ध्यान नहीं देती थी, लेकिन यहां की मैडम बहुत अच्छे से पढ़ाती हैं। मुझे अब यहां आकर अंग्रेजी भी आ गयी है।"

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पेंटिंग बनाने में बच्चों का खूब लगता है मन।

शनिवार होता है बैग फ्री डे

स्कूल में पढ़ाई के साथ साथ कई तरह की गतिविधियां भी होती रहती हैं, जिससे बच्चों का सर्वांगिण विकास हो सके। स्कूल में प्रत्येक शनिवार बैग फ्री डे होता है। इस दिन स्कूल में कई तरह के कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। बच्चों को घर मे बेकार पड़ी चीजों से घर सजाने वाली वस्तु बनाये जाने की जानकारी दी जाती है। इस दिन कविता, डांस, अंताक्षरी जैसी गतिविधियां कराई जाती हैं। अभिनय के माध्यम से बच्चों को कविता याद कराई जाती है। बच्चे भी रुचि से साथ अभी गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं।

घर घर जाकर एसएमसी सदस्य ग्रामीणों को करते हैं जागरूक।

सक्रिय रहते हैं विद्यालय प्रबंध समिति के सदस्य

विद्यालय की दशा और दिशा बदलने में विद्यालय प्रबंध समिति के सदस्यों की भी बड़ी भूमिका रही है। हर सदस्य को अपनी ज़िमेदारी बखूबी पता है और हर कोई उसे भली भांति निभाता भी है। कोई बच्चा दो दिन बिना बताए स्कूल नहीं जाता है तो प्रबंध समिति के अध्यक्ष पतिराम यादव उसके घर पहुँच जाते हैं और बच्चे के विद्यालय न आने की वजह पता करते हैं। इसके साथ साथ मिड डे मिल में मिलने वाले आहार की शुद्धता पर विशेष ध्यान देते हैं। अभिभावक शिव कुमार ने बताया, "अध्यक्ष और स्कूल की मैडम बहुत अच्छी हैं। बहुत अच्छे से हमारे बच्चों को पढ़ाती हैं। अध्यक्ष जी भी समय समय पर हम लोगों के साथ मीटिंग करते हैं कि बच्चों की पढ़ाई और स्कूल का विकास कैसे किया जाए।"

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