सरकारी बजट से नहीं, विद्यालय प्रबन्धन समिति के सहयोग से बदली है इस स्कूल की तस्वीर
विद्यालय के हेडमास्टर और विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्य आपसी सहयोग से शौचालय निर्माण से लेकर आरओ वाटर जैसी सुविधाओं का इंतजाम मिलकर खुद कर लेते हैं।
Neetu Singh 27 Jun 2018 5:20 AM GMT
श्रीदत्तगंज (बलरामपुर)। जिले के इस सरकारी स्कूल में अगर शिक्षा से जुड़े किसी भी संसाधन की जरूरत पड़ती है तो ये विद्यालय सरकारी बजट का इन्तजार नहीं करता है। विद्यालय के हेडमास्टर और विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्य आपसी सहयोग से शौचालय निर्माण से लेकर आरओ वाटर जैसी सुविधाओं का इंतजाम मिलकर खुद कर लेते हैं।
उच्च प्राथमिक विद्यालय विश्म्भरपुर में विद्यालय के प्रधानाध्यापक और विद्यालय प्रबंधन समिति की सक्रिय भागीदारी से यहाँ पर बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता के साथ-साथ विद्यालय में कई तरह की सुविधाएं मौजूद हैं। बच्चों को पीने का शुद्ध पानी मिल सके उसके लिए आरओवाटर, हाथ धुलने के लिए हैंडवाशिंग पॉइंट, कम्प्यूटर लैब, प्रयोगशाला, वाटर रिचार्ज सिस्टम, खेल किट, कूड़ादान, किचन गार्डन जैसी कई तरह की सुविधाएं मौजूद हैं। इस स्कूल के 100 गज के दायरे तक कोई भी तम्बाकू की दुकान नहीं है। ये तम्बाकू मुक्त शिक्षण संस्थान हैं।
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बलरामपुर जिला मुख्यालय से लगभग 14 किलोमीटर दूर उच्च प्राथमिक विद्यालय विश्म्भरपुर के प्रधानाध्यापक विश्वमोहन श्रीवास्तव ने बताया, "विद्यालय में बच्चों की पढ़ाई से लेकर स्कूल भवन में जिस भी चीज की जरूरत पड़ती है उसके लिए 70-75 प्रतिशत मैं पैसे खर्च कर देता हूं। बाकी का 25 से 30 प्रतिशत का अमाउंट विद्यालय प्रबन्धन समिति के अध्यक्ष और ग्राम प्रधान सहयोग करते हैं।" इस विद्यालय में वर्ष 2011 में 'विद्यालय प्रबन्धन समिति' का गठन किया गया था। वर्ष 2012-13 से हर महीने के आख़िरी सप्ताह में इस समिति की बैठक की जा रही है। जिसका असर यहाँ के बच्चों से बातचीत करके और विद्यालय में मौजूद सुविधाओं को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है।
ये स्कूल ढलान पर बना है एक बार बाढ़ में यहां का एक शौचालय पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था। एक शौचालय यहां के छात्र-छात्राओं के लिए पर्याप्त नहीं था। स्कूल में बड़ी लड़कियां पढ़ती थी, उन्हें बाहर जाना पड़ता था। प्रधानाध्यापक, ग्राम प्रधान और विद्यालय प्रबन्धन समिति के अध्यक्ष ने मिलकर शौचालय निर्माण के पैसे जमा किए। सरकारी बजट के बिना किसी इन्तजार और लेटलतीफी से शौचालय का निर्माण यहाँ हो गया। शौचालय निर्माण विद्यालय प्रबन्धन समिति का यह पहला काम था, अब तो इस स्कूल में बच्चों की सुविधाओं को लेकर किसी भी चीज की जरूरत पड़ती है, हेडमास्टर और विद्यालय प्रबन्धन समिति के सदस्य इसे आसानी से पूरा कर लेते हैं।
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विद्यालय प्रबन्धन समिति के अध्यक्ष तसव्वर अली ने बताया, "हमारे बच्चे को सरकारी स्कूल में अच्छी शिक्षा मिले, इसके लिए हमें विद्यालय की बैठक में जाना पड़ेगा। शिक्षा और स्कूल की जरूरतों पर बात करनी पड़ेगी। जब हमारा बच्चा प्राइवेट स्कूल में पढ़ता है तो हम हर दिन बच्चे की कापी देखते हैं, हर पैरेन्ट्स मीटिंग में जाकर बात करते हैं तो फिर हम सरकारी स्कूलों में ऐसा क्यों नहीं करते हैं।" तसव्वुर अली हर महीने की बैठक में न सिर्फ जिम्मेदारी से आते हैं बल्कि आर्थिक रूप से विद्यालय की जरूरतों को भी पूरा करने में सहयोग करते हैं।
यूनीसेफ एक अन्तराष्ट्रीय संस्था है जो देश के 190 से ज्यादा देशों में बच्चों की शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य पर विश्व स्वास्थ्य संगठन पर काम कर रही है। यूनीसेफ द्वारा यूपी के छह जिले बलरामपुर, श्रावस्ती, मिर्जापुर, सोनभद्र, बदायूं, और लखनऊ में दो साल पहले विद्यालय प्रबंधन समिति पर काम हुआ है। जिसमें इन छह जिलों के हर न्याय पंचायत के दो सरकारी स्कूलों सहित 1400 विद्यालयों में काम किया गया। लखनऊ में यूनीसेफ के शिक्षा विशेषज्ञ ऋत्विक पात्रा बताते हैं, "विद्यालय प्रबंधन समिति को लगभग दो वर्षों में मजबूत करने का काम किया गया। समिति को स्कूल और ग्राम पंचायत से सीधे जोड़ा। जिससे स्कूल में 35 प्रतिशत तक बच्चों की उपस्थिति में इजाफा हुआ। 80 से 90 प्रतिशत शिक्षक स्कूल समय से आने लगे।"
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सरकारी विद्यालयों को लेकर जहां एक तरफ हमारी ये सोच बनी होती है कि स्कूल में बच्चों के लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं होती हैं और वहां अच्छी पढ़ाई नहीं होती है, वहीं दूसरी तरफ उच्च प्राथमिक विद्यालय विश्म्भरपुर ने इस धारणा को तोड़ दिया है। ये विद्यालय वर्ष 2004 में खुला था। विद्यालय के प्रधानाचार्य विश्वमोहन श्रीवास्तव उस समय यहां सहायक शिक्षक के पद पर तैनात थे। नौ साल सहायक अध्यापक रहने के बाद वर्ष 2013 में ये यहीं के हेडमास्टर बन गए। पिछले 14 वर्षों से विश्वमोहन श्रीवास्तव इसी विद्यालय में पढ़ा रहे हैं।
यूनीसेफ संस्था वर्ष 2018 से पांच साल तक यूपी के 20 जिलों में विद्यालय प्रबंधन समिति पर काम करेगी। जिसमें हर ग्राम पंचायत से दो स्कूल लिए जायेंगे। इन जिलों में विद्यालय प्रबंधन समिति को मजबूत किया जाएगा और इसे सीधे स्कूल और पंचायत से जोड़ा जाएगा।
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विद्यालय प्रबंधन समिति के साझा प्रयास से इस स्कूल में हैं कई सुविधाएं
ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले बच्चों को सरकारी स्कूल में ही बेहतर शिक्षा के साथ सभी तरह की सुविधाएँ मिल सके इसके लिए विद्यालय प्रबंधन समिति का महत्वपूर्ण योगदान है। इस स्कूल में प्रधानाध्यापक की इच्छाशक्ति और समिति के सदस्यों के सहयोग से यहाँ जरूरत की सभी सुविधाएं मौजूद हैं। कम्प्यूटर लैब, प्रयोगशाला, आरोवाटर, हैंडवाश के लिए पांच टोटियां, रिचार्ज वाटर सिस्टम, किचन गार्डन, कूड़ादान, खेल किट जैसी कई सुविधाएँ मौजूद हैं।
विद्यालय की देखरेख के लिए सालाना आता है 7000 रुपए बजट
शिक्षा विभाग की तरफ से विद्यालय के रख-रखाव के लिए सालाना 7000 रुपए का बजट आता है जिसमें विद्यालय की सभी जरूरतों को पूरा करना होता है। विश्वमोहन श्रीवास्तव ने कहा, "सरकारी बजट के सात हजार रुपए सालभर में स्कूल के छोटे-मोटे खर्चे पूरे करने में ही खर्च हो जाते हैं। अगर स्कूल में हमें आरो वाटर लगवाना है, हैण्डवाश लगवाना है या फिर कुछ और नया करना है तो उसके लिए मैं अपनी तनख्वाह से कुछ पैसा देता हूं और कुछ पैसा समिति के अध्यक्ष और ग्राम प्रधान देते हैं जिससे हमें स्कूल में जिस चीज की जरूरत लगती है उसे आसानी से पूरा कर लेते हैं।"
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यहां छह किलोमीटर दूर से पढ़ने के लिए आते हैं बच्चे
पढ़ाई के मामले में इस स्कूल की क्षेत्र में ख़ास छवि बनी हुई है। पांच-छह किलोमीटर दूर बच्चे यहाँ पढ़ाई करने आते हैं। कई बच्चे प्राइवेट स्कूल से नाम कटवाकर इस सरकारी स्कूल में पढ़ रहे हैं। उच्च प्राथमिक विद्यालय विश्म्भरपुर में आठवीं कक्षा की छात्रा महिमा चौधरी ने बताया, "स्कूल में बहुत अच्छी पढ़ाई होती है इसलिए छह किलोमीटर दूर साइकिल चलाकर आती हूँ। जो सुविधाएं हमारे स्कूल में हैं वो प्राइवेट स्कूल में भी नहीं होती हैं, हमें कभी लगा नहीं कि हम सरकारी स्कूल में पढ़ाई करते हैं।" महिमा की तरह इस स्कूल में कई बच्चे ऐसे हैं जो पांच से छह किलोमीटर दूर साइकिल चलाकर पढ़ने के लिए आते हैं।
विद्यालय के हेडमास्टर का ट्रांसफर नहीं होने देते ग्रामीण
शिक्षा की उच्च गुणवत्ता की वजह से यहाँ पढ़ रहे बच्चों के माता-पिता विद्यालय के प्रधानाचार्य का ट्रान्सफर नहीं होने देते। एक बार ट्रान्सफर का आदेश आया तो सैकड़ों ग्रामीणों ने हस्ताक्षर करके इसका विरोध जताया और इनका ट्रान्सफर रुक गया। विश्वमोहन श्रीवास्तव ने कहा, "जब यहां के लोग इतना प्यार और सम्मान देते हैं तो हमारी जिम्मेदारियां कई गुना बढ़ जाती हैं। मैं स्कूल में जितनी भी देर रहता हूँ सिर्फ बच्चों को पढ़ाता हूँ, कागजी काम घर पर जाकर पूरा करता हूं। अगर स्कूल में दस्तावेज़ का काम करता रहा तो बच्चों को कब पढ़ाऊंगा।"
ग्राम प्रधान के सहयोग से स्कूल में बनता है गुणवत्ता परक भोजन
स्कूल में बनने वाले मिड डे मील में यहाँ की ग्राम प्रधान किसी तरह की कोई रोका टोकी नहीं करती हैं। अच्छी गुणवत्ता वाली हरी सब्जियां, हर दिन सलाद, अचार फल-दूध और बच्चों को जो पसंद है मेन्यू के साथ-साथ उसका भी ध्यान रखा जाता है। ग्राम प्रधान फातिमा बी ने खुश होकर कहा, "हमें अपने घर से कुछ नहीं देना पड़ता है, ये बच्चों का हक है। हर महीने समय से हर चीज दे देती हूं, सिलेंडर समय से भरा रहता है। मेन्यू के हिसाब से जो खाना बना अगर कुछ बच्चों को वो खाना पसंद नहीं होता है तो उसका भी ध्यान रखा जाता है।"
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