प्रधानाध्यापक की मेहनत से बढ़ी बच्चों की संख्या, अपने वेतन से संवारा स्कूल

कन्नौज के सौरिख ब्लॉक क्षेत्र के सराय प्रताप प्राथमिक स्कूल में हेडमास्टर के प्रयासों से आया बदलाव, हेडमास्टर ने सैलरी से तीन सालों में खर्च कर दिए करीब तीन लाख रुपए, बच्चों का नामांकन हुआ दोगुना

Ajay MishraAjay Mishra   17 Nov 2018 7:12 AM GMT

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प्रधानाध्यापक की मेहनत से बढ़ी बच्चों की संख्या, अपने वेतन से संवारा स्कूल

सौरिख (कन्नौज)। प्रधानाध्यापक की मेहनत, बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के जुनून ने सराय प्रताप प्राथमिक स्कूल को नई पहचान दिलाई है। जिस स्कूल में अभिभावक अपने बच्चों को भेजना नहीं चाहते थे, आज वहां बच्चों का नामांकन दोगुने से अधिक है।

कन्नौज जनपद मुख्यालय से करीब 57 किमी दूर सौरिख ब्लॉक क्षेत्र के सराय प्रताप प्राथमिक स्कूल की पढ़ाई और माहौल दूसरे विद्यालयों के लिए मिसाल है। हेडमास्टर आशीष कुमार मिश्र का कहना है, "जब हम डायट में ट्रेनिंग कर रहे थे तो वहां ट्रेनर सतेंद्र भूषण शुक्ल ने बताया था कि किसी भी काम के लिए समर्पण जरूरी है। जीवन समर्पित करने से दूसरे लोग भी सीख लेंगे। कामयाबी मिलेगी। इसी सोच का नतीजा है हमारा स्कूल।

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आशीष बताते हैं, "अच्छी सोच के साथ कोई भी काम करें तो कामयाबी जरूर हासिल होती है। दूसरे भी आपकी मदद करने के लिए आगे आते हैं। ऐसा ही कुछ हमारे स्कूल में भी हुआ। अभिभावकों ने हर तरह से मदद की। स्कूल का कोई भी काम हो अभिभावक बेहिचक आगे आते हैं। स्कूल में पढ़ाई का माहौल बनाना था तो सबसे पहले भवन का हाल सुधारना जरूरी था। हमने सैलरी से करीब तीन लाख रुपये विद्यालय पर लगाए। नए सिरे से भवन में प्लास्टर-पुट्टी, बिजली की फिटिंग, सबमर्सिबल लगवाया। परिसर में 163 पौधे लगवाए।'

प्राथमिक स्कूल सरायप्रताप में प्रधानाचार्य ने अपने पास से काफी पैसा खर्च किया है। विद्यालय भवन अन्य निजी स्कूलों से बेहतर है। जिले से काफी दूर होने के बाद भी यहां बच्चों के लिए काफी सुविधाएं हैं।
दीपिका चतुर्वेदी, बीएसए- कन्नौज

आशीष के मुताबिक, "करीब तीन साल पहले जब वह इस विद्यालय में आए थे तो सिर्फ 48 बच्चे पंजीकृत थे। अभी 109 बच्चे यहां पढ़ रहे हैं। आशीष के अलावा यहां सहायक अध्यापक पद पर पंकज सिंह और वरुण द्विवेदी तैनात हैं। बिजली कनेक्शन न होने के बावजूद बिजली फिटिंग और पंखे लगवा रखे हैं। बीएसए दीपिका चतुर्वेदी ने भी हमारे काम को सराहा है। व्यक्तिगत रूप से विद्यालय के लिए 10 हजार की आर्थिक मदद भी की है।"

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आशीष कहते हैं, "विद्यालय प्रबंधन समिति का नए सिरे से गठन कर दिया गया है। इससे स्कूल को काफी फायदा मिल रहा है। समितियों में प्रधान की बजाय अभिभावक रखे जाएं तो ज्यादा बेहतर रहेगा। हमारे गांव के प्रधान सहयोग नहीं करते हैं। अगर प्रधान चाहें तो विद्यालय और भी ऊंचाइयां पा सकता है।"

विद्यालय का अपना कैलेण्डर

विद्यालय का कलेण्डर भी छपा है, जिससे छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों को छुट्टी के बारे में पहले से पता चल जाता है। बच्चों की पढ़ाई में कोई रुकावट न आए इसके लिए पानी की बोतल, आठ-आठ कॉपियां और पेन-पैंसिल रखने के लिए बॉक्स का वितरण भी करवाया गया है।


यहां फ्री में मिलती हैं कॉपियां

परिषदीय स्कूलों में नि:शुल्क पुस्तक वितरण तो सुना होगा लेकिन प्राथमिक स्कूल सराय प्रताप में कॉपियां भी फ्री में बच्चों को दी जाती हैं। हेडमास्टर आशीष कुमार मिश्र बताते हैं, 'कॉपियां ऐसी हैं जो बच्चों को लिखने के अलावा जीके भी बढ़ाती हैं। उसमें प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के नाम चित्र सहित लिखे हैं। साथ ही स्वच्छ भारत-सुंदर भारत और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का लोगो भी छपा है।'

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स्कूल की दीवारों पेंटिंग देती हैं जानकारियां

  • चाइल्ड लाइन 1098, महिला हेल्पलाइन 1090, यूपी 100, एंबुलेंस 108, फायर ब्रिगेड 101 समेत अन्य सुविधाओं के नंबर लिखे हैं।
  • डीएम, सीडीओ, बीएसए, बीईओ समेत कई अफसरों के सीयूजी नंबर भी लिखे हैं।
  • ज्ञानवर्धन प्रसंग के अलावा पूर्व राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के चित्र भी बने हैं।
  • पॉलिथीन का प्रयोग वर्जित और धूम्रपान निषेध का भी लोगो मुख्य द्वार पर है।
  • चाहरदीवारी में ही ट्रेन की पेंटिंग ऐसी बनी है कि मानो स्टेशन पर खड़ी हो।
  • बाल अधिकार, भोजन के मेन्यू की सारिणी भी कई रंगों से बनाई गई है।

बच्चों को भाती है यहां की पढ़ाई

'मैं कक्षा तीन में थी तब यहां दाखिला लिया था। पहले यहां पढ़ाई नहीं होती थी। लेकिन अब स्कूल का माहौल बदल चुका है। हम लोगों का भी पढ़ाई में मन लगने लगा है।'
स्वाति, छात्रा, कक्षा पांच

विद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष जगदेव सिंह बताते हैं, "जब से नए हेडमास्टर आए हैं स्कूल बदल गया है। लोगों की सोच में भी बदलाव आया है। हम लोग भी बच्चों को प्रेरित करते हैं कि वे रोजाना स्कूल जाएं। मेरी पूरी कोशिश रहती है कि अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा सकूं।"

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