ग्रामीणों की बदली सोच, बेटों के कंधों पर सजा बस्ता

इस गांव के ग्रामीण कुछ साल पहले तक अपने बेटों को गाँव के प्राथमिक स्कूल में पढ़ने नहीं भेजते थे। ग्रामीणों की सोच थी कि यहां अच्छी पढ़ाई नहीं होती है। ग्रामीण लड़का और लड़की में भेद भी करते थे। वे बस लड़कियों को स्कूल भेजते थे।

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   27 Sep 2018 6:19 AM GMT

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ग्रामीणों की बदली सोच, बेटों के कंधों पर सजा बस्ता

बदायूं। प्राथमिक विद्यालय सैंजनी के शिक्षक पढ़ाने के साथ-साथ एसएमसी सदस्यों के संग मिलकर लड़का-लड़की एक समान का संदेश गाँव के कोने-कोने तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। इस अभियान के पीछे उनकी कोशिश है ग्रामीणों की सोच बदलना।

इस गांव के ग्रामीण कुछ साल पहले तक अपने बेटों को गाँव के प्राथमिक स्कूल में पढ़ने नहीं भेजते थे। ग्रामीणों की सोच थी कि यहां अच्छी पढ़ाई नहीं होती है। ग्रामीण लड़का और लड़की में भेद भी करते थे। वे बस लड़कियों को स्कूल भेजते थे। इसके पीछे भी एक कारण था। विद्यालय के प्रधानाचार्य अनुज कुमार सक्सेना ने बताया, 'वर्ष 2016 में मेरी इस विद्यालय में नियुक्ति हुई। उस समय स्कूल में 71 बच्चे पंजीकृत थे और सभी की सभी छात्राएं थीं।

जब मैंने वजह जानने की कोशिश की तो पता चला ग्रामीण सोचते हैं कि यहां पढ़ाई अच्छी नहीं होती, यहां पढ़कर उनका बच्चा कुछ बन नहीं पाएगा। लड़कियों को यहां पढ़ाने के पीछे सोच थी कि लड़कियों को कुछ करना नहीं है, इसलिए उन्हें प्राथमिक स्कूल में दाखिला दिलवा दिया । यह बात मुझे बहुत परेशान करती थी। ग्रामीणों की सोच बदलने के लिए हम शिक्षकों ने खूब मेहनत से पढ़ाया।'

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आज गाँव का हर बच्चा पढ़ता है प्राथमिक स्कूल में

प्रबन्ध समिति के अध्यक्ष भगवान दास ने बताया, 'ग्रामीणों की सोच बदलना इतना आसान नहीं था। प्रबन्ध समिति के सभी सदस्य घर-घर जाते और लोगों को बताते की लड़का और लड़की में कोई अंतर नहीं होता है। जैसे लड़के बड़े होकर नौकरी करते हैं उसी तरह हमारी लड़कियां भी पढ़ लिखकर अच्छे मुकाम तक पहुंच सकती हैं। धीरे-धीरे लोगों की सोच बदली और आज गाँव का हर बच्चा प्राथमिक स्कूल में ही पढ़ने आता है।'

बच्चों ने अभिभावकों को लिखना सिखाया

स्कूल में बेहतर पढ़ाई का ही परिणाम है कि यहां के बच्चे काफी होनहार हैं। इसी स्कूल में पढ़ने वाली कक्षा पांचवी की छात्रा प्रेम कली ने अपने माँ को पढ़ना सिखाया है। प्रेमकली ने बताया, 'मेरी माँ पढ़ी लिखी नहीं थीं। मैंने माँ से स्कूल में नाम लिखाने की बात कही लेकिन उन्होंने मना कर दिया। तब मैंने खुद उन्हें लिखना सिखाया। आज वह लिख लेती हैं।' इसी तरह कई बच्चे अपने घर के सदस्यों को पढ़ाने में जुटे हुए हैं।

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विद्यार्थियों की स्थिति

कुल: 157

छात्र:90

छात्राएं: 67

एक साल में ही बच्चों में आया बदलाव

अभिभावक रनवीर ने बताया, 'पहले मेरे बच्चे दूसरे स्कूल में पढ़ने जाते थे। मुझे लगता था कि प्राइमरी स्कूल में अच्छी पढ़ाई नहीं होती है। स्कूल के प्रधानाध्यापक प्रबंध समिति के सदस्यों के साथ अक्सर मेरे घर आते और बच्चों को प्राथमिक स्कूल में भेजने की बात कहते। जब उन्होंने यह भरोसा दिलाया कि एक साल के लिए बस प्रवेश करा दीजिए अगर बच्चों में परिवर्तन न दिखे तो नाम कटवा दीजिएगा। तब मैंने उनकी बात मानकर बच्चों का नाम यहां लिखवा दिया। कुछ ही महीने में बच्चों में पढ़ाई के प्रति रवैये में बदलाव दिखने लगा।'

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जो पहले स्कूल में लगे पौधे को तोड़ते थे वही लगा रहे

प्रबंध समिति के सदस्य महावीर ने बताया, 'गर्मी की छुट्टी के दौरान स्कूल में लगे पेड़ पौधों को गाँव के कुछ लोग तोड़ देते थे। यहां पर गंदगी भी फैला दिया करते थे। फिर हम लोगों ने उन्हें समझाया कि यह स्कूल आपका ही है। यह आपके घर जैसा है। जैसे अपने घर को साफ सुथरा रखते हैं उसी तरह इसे भी साफ रखना हमारी जिम्मेदारी है। हमारी बातों को मान ग्रामीण अब यहां गंदगी नहीं फैलाते हैं। गांव के लोगों ने मिलकर स्कूल को काफी हरा भरा कर दिया है।

विद्यालय के प्रधानाचार्य अनुज कुमार सक्सेना ने बताय, " ग्रामीणों की सोच बदलने के लिए अभिभावकों को समझाया कि प्राथमिक स्कूल में पढ़ने के बाद भी उनकी बेटियां दूसरे अच्छे स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों से बेहतर जानती हैं। धीरे-धीरे हमारी बातों का असर ग्रामीणों में दिखने लगा जिसका परिणाम है कि आज विद्यालय में पंजीकृत बच्चों की संख्या बढ़ गई।"

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