कभी जंगल में लकड़ियां बीनने वाले बच्चे अब हर दिन जाते हैं स्कूल

बच्चे भी अपने माता-पिता के साथ जंगल में लकड़िया काटने जाते थे लेकिन अब विद्यालय प्रबंधन समिति की मदद से आज सभी बच्चे स्कूल जाते हैं।

Divendra SinghDivendra Singh   31 May 2018 12:23 PM GMT

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कभी जंगल में लकड़ियां बीनने वाले बच्चे अब हर दिन जाते हैं स्कूल

दुद्धी (सोनभद्र)। कुछ साल पहले तक यहां पर बच्चों का स्कूल या पढ़ायी से कोई वास्ता नहीं था, या तो बच्चों का स्कूल में नाम ही नहीं लिखा था, जिनका लिखा भी था तो वो स्कूल नहीं जाते थे। लेकिन आज उसी स्कूल में 65 बच्चे पढ़ते हैं।

सोनभद्र जिला आदिवासी बाहुल्य होने के कारण यहां के अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल में भेजना नहीं चाहते हैं, क्योंकि वहां पर ज्यादातर लोग जंगलों पर आश्रित रहते हैं, ऐेसे में उनके बच्चे भी उनके साथ जंगल में लकड़िया काटने जाते, विद्यालय प्रबंधन समिति की मदद से आज सभी बच्चे स्कूल जाते हैं।

राबर्ट्सगंज जिला मुख्यालय से लगभग 90 किमी. दूर दुद्धी ब्लॉक के मनबसा गाँव में प्राथमिक विद्यालय में पहले जहां सिर्फ 16 बच्चे थे, अब वहीं 65 बच्चे हर दिन स्कूल आते हैं। बच्चों की संख्या बढ़ाने में विद्यालय प्रबंधन समिति ने मुख्य भूमिका रही है।


सोनभद्र जिले में 2464 प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालय हैं, जिनमें से ज्यादातर विद्यालयों में प्रबंधन समितियां बेहतर काम कर रही है। विद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष शीतला प्रसाद बताते हैं, "2007 में स्कूल बना तो कोई अपने बच्चे को स्कूल ही नहीं भेजना चाहता था, गाँव वालों से कहा जाता तो कहते कि हमारे बच्चे पढ़कर क्या करेंगे, अगर जंगल से लकड़ियां नहीं लाएंगे, महुआ नहीं बिनेंगे तो घर कैसे चलेगा, लेकिन जब से विद्यालय प्रबंधन समिति बनी हम खुद एक एक लोगों को समझाते हैं।"

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वो आगे कहते हैं, "हम हर दिन गाँव में जाकर देखते हैं, कि कौन सा बच्चा गया है कौन सा नहीं, सबसे ज्यादा बच्चे महुआ बिनने के समय स्कूल नहीं जाते हैं, उस समय अभिभावकों को समझाना होता है, कि बच्चों को स्कूल भेजें, उस समय तो बच्चे गायब ही हो जाते हैं।"

स्कूलों में विद्यालय प्रबंधन समिति के सक्रिय सदस्य होते हैं जो हर महीने मीटिंग करते हैं और अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं, जिससे स्कूलों में शिक्षा के गुणवत्ता में सुधार हो रहा है। इससे न केवल बच्चों के नामांकन बढ़ रहे हैं, बल्कि बच्चे रेगुलर स्कूल भी आते हैं। बेसिक शिक्षा अधिकारी के पास एक जिले में 2000 से ज्यादा स्कूल होते हैं, जबकि खण्ड शिक्षा अधिकारी के पास 200 से ज्यादा स्कूल होते हैं। इसलिए 'विद्यालय प्रबन्धन समिति' एक ऐसी कड़ी है जो शिक्षा के स्तर में सुधार ला रही है।

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पहले जहां स्कूल में बच्चे आते ही नहीं थे, अब हर महीने मीटिंग होती है तभी से सबकी जिम्मेदारियां बंट गईं हैं, एसएमसी के सदस्य एक-एक बच्चों पर ध्यान रखते हैं उनके अभिभावकों को समझाते हैं। अब एमडीएम में भी सुधार हुआ है।

प्राथमिक विद्यालय के इंचार्ज गुप्ता बताते हैं, "ग्रामीण हमारी बातें नहीं सुनते थे, लेकिन जब से प्रबंधन समिति बनी लोग उनकी बाते सुनते हैं, क्षेत्रीय लोग हैं, बच्चा नहीं आ रहा है तो उनके अभिभावकों को समझाते हैं, जंगल में स्कूल हैं अगर प्रबंधन समिति के सदस्य देखरेख न करें तो लोग सामान उठा ले जाए।"


विद्यालय प्रबंधन समिति के लोग महीने में जो चर्चा करते हैं उसे स्कूल में लागू करते हैं। 11 अभिवावकों में छह महिलाएं पांच पुरुष हैं। ऐनम, लेखपाल, प्रधान द्वारा नामित एक सदस्य सदस्य, विद्यालय से प्रधानाध्यापक कुल मिलाकर 15 सदस्य हैं। हर मीटिंग में 11-12 लोग शामिल होते हैं।

सोनभद्र जिले के यूनीसेफ के जिला संयोजक कुतुबुद्दीन बताते हैं, "हमने शुरूआत 654 स्कूलों से की जहां पर विद्यालय प्रबंधन का समिति का गठन किया गया, लेकिन अब जिले के सभी 2464 स्कूलों में प्रबंधन समितियां बन गईं हैं, इससे शिक्षा के स्तर में सुधार भी हुआ है और बच्चों का नामांकन भी बढ़ा है, अब बच्चे हर दिन स्कूल आते हैं।"

     

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