स्कूल में योग से शुरू होती है बच्चों की सुबह
विद्यालय प्रबंधन समिति की बैठकों में अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए अभिभावक निभा रहे हैं महत्वपूर्ण भूमिका
Jigyasa Mishra 21 July 2018 5:08 AM GMT
गाज़ियाबाद। सुधीर ने कभी योग करना नहीं सीखा था, लेकिन जब से अंशु ने स्कूल जाना शुरू किया है, दोनों हर दिन सुबह साथ में सूर्य नमस्कार करते हैं और फिर अपना दिन शुरू करते हैं। सुधीर गाज़ियाबाद में मजदूरी का काम करते हैं और अंशु, उनका 10 साल का बेटा है, जो गाज़ियाबाद के कवि नगर प्राइमरी स्कूल में तीसरी कक्षा का छात्र है।
अन्य सरकारी विद्यालयों की तरह कवि-नगर प्राइमरी स्कूल में प्रार्थना के बाद बच्चे अपनी कक्षाओं में नहीं, बल्कि हरे-भरे ग्राउंड में, पेड़ों की छाया के नीचे योगासन करते दिखते हैं। सूर्य नमस्कार से लेकर तरह-तरह के योग आसनों से इनके दिन की शुरुआत होती है, जिसके बाद पढाई शुरू होती है। हर रोज़ स्कूल में प्रार्थना के बाद 30 मिनट तक योग और अन्य व्यायाम कराए जाते हैं और शिक्षक बच्चों को प्रकृति की विशेषताओं से अवगत कराते हैं।
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डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेटर संतराम बताते हैं, "स्कूल में होने वाली विद्यालय प्रबंधन समिति की मासिक बैठकों में भी 70 प्रतिशत बच्चों के अभिभावक सहभागिता लेते हैं और बच्चों की पढाई को लेकर सक्रिय रहते हैं। बैठक में कुछ अभिभावक तो बच्चों की शिकायत भी करते हैं। यह अपने आप में एक सकारात्मक इशारा है जागरूकता का।"
गाज़ियाबाद के अधिकतर विद्यालयों की कक्षाओं में बेंच भी लगी हैं और कहीं-कहीं टाइल्स भी। यहाँ बच्चों के माता-पिता न सिर्फ मजदूर हैं, बल्कि कुछ ड्राइवर, कुछ गार्ड तो कुछ घरों में जाकर चूल्हा-चौका करने का भी काम करते हैं, मगर बच्चों की पढ़ाई के लिए तत्पर हैं।
सात साल का सचिन डॉक्टर बन कर अपनी माँ साधना की पैरों के इलाज में मदद करना चाहता है। साधना आसपास के छह घरों में खाना बनाना और साफ़-सफाई का काम करती हैं और फिर शाम को घर पहुंच कर सचिन को भी पढ़ा लेती हैं। वह बताती हैं, "मैं ज़्यादा पढ़ी-लिखी तो नहीं हूं, लेकिन अभी सचिन पहली कक्षा में है तो पढ़ा लेती हूं।" आगे बताती हैं, "मैं आठवीं तक पढ़ी हूँ और उसके आगे नहीं पढ़ पाई। पर सचिन आगे डॉक्टर बन ना चाहता है और अब यही मेरे जीवन का भी लक्ष्य है।"
वहीं कविनगर प्राइमरी स्कूल की ही छात्रा सपना अपने तीन बहनों और एक भाई में सबसे बड़ी है और टीचर बन कर अपने छोटे भाई-बहनों को पढ़ाना चाहती है। पांचवी में पढ़ने वाली सपना, हर-रोज़ अपने पिता के साथ स्कूल आती है और फिर छुट्टी क बाद उनके ही साथ वापस घर लौट जाती है। सपना के पिता रिक्शा चलाकर गुज़र बसर करते हैं। पिता रमेश बताते हैं, "सपना जहाँ तक चाहेगी हम उसे पढ़ाएंगे। हम तो पढ़ नहीं पाए लेकिन सारे बच्चों को पढ़ाएंगे ताकि किसी को रिक्शा न चलाना पड़े।"
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