जब से आदिवासी महिलाओं ने थामी बागडोर, शिक्षा के स्तर में आ रहा सुधार

ललितपुर जिले की आदिवासी महिलाएं अपनी ज़िम्मेदारी समझ रहीं हैं, गाँव में जाकर हर एक अभिभावक को समझाती हैं, कि बच्चों को पढ़ने के लिए भेजें, इसका असर भी दिख रहा है।

Divendra SinghDivendra Singh   30 July 2018 7:40 AM GMT

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जब से आदिवासी महिलाओं ने थामी बागडोर, शिक्षा के स्तर में आ रहा सुधार

ललितपुर। पचिया सहरिया (40 वर्ष) ख़ुद तो कभी पढ़-लिख नहीं पाईं, लेकिन जब से उन्हें विद्यालय प्रबंधन समिति का अध्यक्ष बनाया गया, उन्हें शिक्षा का महत्व समझ में आया, बस उसी दिन से अपने जैसे दूसरे लोगों की सोच बदलने में जुट गईं।

पचिया सहरिया बुंदेलखंड के ललितपुर ज़िले के विरधा ब्लॉक के सहरिया आदिवासी बाहुल्य कपासी गांव की रहने वाली हैं। कपासी गांव के ज्यादातर लोग मजदूरी करते हैं, जिससे अपने बच्चों पर न के बराबर ध्यान देते। ऐसे में एक्शन ऐड ने जब ऐसे गांव में प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की तो पचिया भी उसमें शामिल हुई। इसी दौरान प्राथमिक विद्यालय कपासी में उन्हें विद्यालय प्रबंधन समिति का अध्यक्ष बनाया गया।

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सहरिया समुदाय के लोग जंगलों में ही रहा करते हैं और मजदूरी कर खर्च चलाते हैं, ज्यादातर लोग मजदूरी के लिए शहरों में पलायन करते हैं। ऐसे में जब साई ज्योति संस्था, ललितपुर ने सन 2011 से एक्शन ऐड के सहयोग से जिला ललितपुर के विकासखण्ड बिरधा के 34 गाँव में सहरिया समुदाय के लोगों के साथ मिलकर काम करना शुरू किया। इससे शिक्षा से लेकर कृषि क्षेत्र में लोग जागरूक होना शुरू हुए हैं। लोगों को शिक्षा के स्तर में सुधार आ रहा है।


ललितपुर ज़िले में 1024 प्राथमिक विद्यालय ग्रामीण और 25 शहरी क्षेत्रों में हैं, साथ ही ज़िले में 484 पूर्व माध्यमिक ग्रामीण व 9 शहरी क्षेत्रों में हैं। जिलाधिकारी व दूसरे अधिकारियों के सहयोग से यहां पर पिछले कुछ वर्षों में बुंदेलखंड के ललितपुर जिले में प्राथमिक शिक्षा के स्तर में सुधार आया है। साथ यूनिसेफ व एक्शन ऐड ने प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में विद्यालय प्रबंधन समितियों को प्रशिक्षण दिया गया है, जिससे अभिभावक अपनी जिम्मेदारियों को समझ रहे हैं।

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पचिया बताती हैं, "मुझे अच्छा लगता है कि हम अब अच्छे से समझ पाते हैं, कि हमारे बच्चों के लिए पढ़ाई कितनी जरूरी है, अब हम सब मिलकर स्कूल में ध्यान देते हैं कि बच्चों को खाना मिल रहा है कि नहीं, बच्चे हर दिन स्कूल आ रहे हैं कि नहीं।"

एसएमसी के सहयोग से बन गईं स्कूल की नई बिल्डिंग

अब इस स्कूल में बच्चों को साफ पानी, बालक बालिकाओं के लिए अलग शौचालय, चारदीवारी जैसी सुविधा हो गई है। पचिया की तरह ही कुसुमाबाई, चंदा, सुखवती जैसी दूसरी महिलाएं भी अपनी ज़िम्मेदारी समझ रहीं हैं, गाँव में जाकर हर अभिभावक को समझाती हैं, कि बच्चों को पढ़ने के लिए भेजें। स्कूल में बड़ी लड़कियां पढ़ती थी, उन्हें बाहर जाना पड़ता था। प्रधानाध्यापक, ग्राम प्रधान और विद्यालय प्रबन्धन समिति के अध्यक्ष ने मिलकर शौचालय निर्माण के पैसे जमा किए। शौचालय निर्माण विद्यालय प्रबन्धन समिति का यह पहला काम था, अब तो इस स्कूल में बच्चों की सुविधाओं को लेकर किसी भी चीज की जरूरत पड़ती है, हेडमास्टर और विद्यालय प्रबन्धन समिति के सदस्य इसे आसानी से पूरा कर लेते हैं।

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विद्यालय प्रबंधन समिति की दूसरी सदस्य कुसुमाबाई बताती हैं, "पहले हम लोगों के साथ बच्चे भी मजदूरी करने जाते थे, स्कूल न जाने पर भी हम लोग कुछ नहीं कहते थे, लेकिन जब से हम लोगों को समझाया गया की पढ़ाई लिखाई कितनी जरूरी है, हम अपने बच्चों को तो भेजने ही लगे हैं, गाँव के दूसरे लोगों को भी कहते हैं कि बच्चों को स्कूल भेजा करो।"

स्कूल चलो अभियान में रहती है सक्रिय भूमिका

एसएमसी के सदस्य गाँव के एक घर घर में जाकर शिक्षा के महत्व को समझाते हैं कि पढ़ाई कितनी जरूरी है, इनके प्रयासों से विद्यालय में नामांकन भी बढ़े हैं, आदिवासी जनजाति सहरिया के लोग भी अपने बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं।

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