आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक अस्पताल को है इलाज की जरूरत

Neeraj TiwariNeeraj Tiwari   3 Oct 2016 3:42 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक अस्पताल को है इलाज की जरूरतयह उजाड़ सा दिखने वाला भवन ही आयुर्वेदिक चिकित्सालय है। 

सतीश कश्यप (कम्यूनिटी जर्नलिस्ट)

बाराबंकी। जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था का बुरा हाल है। आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक विभाग की हालत बद से बद्तर नजर आती है। इमारत तलाशने पर भी नहीं दिखती जबकि दवाओं के लिए शीशी तक खुद खरीदनी पड़ती है।

यह दुर्गम सा दिखने वाला मार्ग ही अस्पताल को जाने वाला रास्ता है।

झाड़ियों से होकर गुजरता है रास्ता

यह दास्तान है जिले में लखनऊ-सुल्तानपुर राष्ट्रीय राज्यमार्ग पर स्थित राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय दहिला मोड़ की। पहली नजर में तो यह कोई वीरान, बेजान, खंडहर सा दिखता है। मगर आपको आश्चर्य होगा कि यह जिलों के लोगों का दवाखाना है। आलम यह है कि ब्लॉक त्रिवेदीगंज में बने इस आयुर्वेदिक राजकीय चिकित्सालय तक पहुंचने के लिए झाड़ियों से होकर गुजरना पड़ता है। इलाज कराने के लिए आने वालों को तो इस भवन को करीब से देखने के बाद इसके चिकित्सालय होने का आभास होता है।

लोगों के बताने पर ही विश्वास होता है कि यह एक स्वास्थ्य केंद्र है।

बदहाली की होती है चर्चा

सूबे की राजधानी से करीब 50 किमी की दूरी तय करते ही बाराबंकी के भिलवल चौराहे से आगे बढ़ते ही दहिला मोड़ चौराहा पड़ता है। सच तो यह है कि इस स्वास्थ्य केंद्र में मिलने वाले इलाज के लिए नहीं बल्कि लोग इसकी बदहाल इमारत और व्यवस्था को देखकर इसकी चर्चा करते हैं।

मरीजों को इलाज पाने के लिए करनी पड़ती है कड‍़ी मेहनत।

स्टाफ की सेवा भावना में है कमी

वैसे इस सरकारी चिकित्सालय में चिकित्साधिकारी डा. बिन्दु वर्मा तैनात हैं लेकिन लखनऊ से उनका आना-जाना यहां लगा रहता है। जोगेन्दर प्रसाद यहां के फार्मासिस्ट है जबकि शियाराम यहां के वार्ड ब्याय है। साथ ही, भानमऊ निवासी मनीष कुमार शर्मा यहां अतिरिक्त कर्मचारी हैं जो पार्टटाइम पर काम करते हैं। कुल मिलाकर यहां चार लोगों का स्टाफ है। मगर इनकी सेवा भावना भी मरीजों के प्रति नौकरी के घंटे पूरे करने में ज्यादा नजर आती है।

दवा देने से पहले खरीदवाते हैं शीशी

चिकित्साधिकारी डा. शांता राय का मानना है कि यह दिक्कत प्रदेश के सभी सरकारी चिकित्सालयों की है सिर्फ उनके अस्पताल की नहीं।

उधर, जिला होम्योपैथिक अस्पताल की बात की जाए तो यहां भी मुसीबतों के बीच मरीज को दवाइयां उपलब्ध हो पाती हैं। दवाओं को लेने के लिए बाहर से प्लास्टिक की शीशियां खरीदनी पड़ती हैं जबकि कुछ दवाइयां भी बाहर से मंगवानी पड़ती हैं। चिकित्साधिकारी डा. शांता राय का कहना है, "ये समस्या सिर्फ बाराबंकी जिले में ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में है।"

    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.