भारतवासी प्राचीन काल से दवा की तरह बाँस का उपयोग करते रहे हैं। बाँस का वानस्पतिक नाम बैंबूसा अरंडिनेसीया है। पातालकोट के आदिवासी मानते है कि बाँस के ताजा हरे पत्तों (50 ग्राम) को 600 मिली पानी में डालकर काढ़ा बनाया जाए और उन स्त्रियों को दिया जाए जिन्हें मासिक-धर्म रुका हुआ होने की शिकायत है, एक सप्ताह के भीतर ही समस्या का निवारण हो जाएगा। पशुओं के कई रोगों में भी बांस की पत्तियां उपयोगी है, सामान्य तौर पर मवेशियों में दस्त को दूर करने, प्राथमिक उपचार के रूप में बांस की मुलायम पत्तियों को खिलाने की सलाह दी जाती है। इन फार्मुलों पर आधुनिक विज्ञान के प्रमाणित दावे भी उपलब्ध हैं।