नई दिल्ली (भाषा)। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने आज कहा कि लोगों द्वारा निर्वाचित सरकार अपने नागरिकों के स्वास्थ्य के बारे में कोई चिंता नहीं करती और इसने कई निर्देश पारित किए जिनमें केंद्रीय और राज्यस्तरीय निगरानी समितियों का गठन करना भी शामिल है ताकि प्रदूषण से मुकाबले के लिए कार्ययोजना तैयार की जा सके। इसने उत्तर भारत के चार राज्यों से कहा कि पुराने डीजल वाहनों को प्रतिबंधित करने पर विचार करें ताकि पर्यावरणीय आपातकाल से निपटा जा सके।
एनजीटी ने उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान को दस वर्ष पुराने डीजल के वाहनों के चलने पर रोक लगाने का विचार करने को कहा। इसने कहा, ‘‘वक्त आ गया है कि सभी संबंधित अधिकारी अपने राज्यों में हवा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए चिंता दिखाएं।” एनजीटी ने निर्देश दिया कि हर राज्य समिति को पहली बैठक में एक जिला को अधिसूचित करना चाहिए जहां कृषि का भूमि उपयोग ज्यादा है और इसे पराली जलाने से रोकने के आदेश लागू करने के लिए मॉडल जिला बनाया जाए।
नागरिकों को क्यों झेलना पड़ा इतना प्रदूषण
एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘मूलभूत सवाल यह है कि क्या राज्य सरकार और खासकर दिल्ली सरकार वैज्ञानिक औचित्य बता सकती है कि राष्ट्रीय राजधानी के लोगों को इस तरह के गंभीर प्रदूषण का सामना क्यों करने दिया जाए। लोगों द्वारा निर्वाचित सरकार को कम से कम अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की चिंता करनी चाहिए।”
पीठ ने पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर को 431 और 251 से ऊपर पाते हुए इसे प्रदूषण का ‘‘खतरनाक” स्तर वाला करार दिया। पीठ ने कहा, ‘‘जब वायु प्रदूषण का स्तर ‘खतरनाक’ हो जाता है तो पर्यावरणीय आपातकाल के लिए त्वरित कदम उठाने की जरूरत है। विशेषज्ञों के मुताबिक जब पीएम 10 और पीएम 2.5 क्रमश: 431 और 251 प्रति माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से ज्यादा हो जाते हैं तो यह हवा में खतरनाक आपातकालीन स्थिति होती है।”