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पोषण के लिए खाना खाएं विटामिन की गोलियां नहीं

#पोषण

क्या आपको पता है कि मल्टीविटामिन गोलियों को उन रोगियों के लिए बनाया गया था जो सर्जरी, लंबी बीमारी, बेहोशी वगैरह की वजह से मुंह के जरिए खाना नहीं खा सकते या जिन्हें पाचन संबंधी समस्या है। लेकिन आपके डॉक्टर, जिम ट्रेनर, दोस्त, फिटनेस के दीवाने पड़ोसी या विदेश में रहने वाले रिश्तेदार अक्सर आपको बेहतर स्वास्थ्य के लिए मल्टीविटामिन लेने की सलाह देते रहते हैं। लेकिन असलियत यह है कि दवाएं प्राकृतिक भोजन का विकल्प नहीं हो सकतीं। अमेरिका के हॉर्वर्ड मेडिकल स्कूल की शोधकर्ता जोआन्न ई मैंशन और शारी एस बासुक का साफ कहना है कि दवा बनाने वाली कंपनियां मल्टीविटामिन गोलियों के अंधाधुंध इस्तेमाल को बढ़ावा देकर अरबों डॉलर कमा रही हैं वहीं लोगों को गंभीर बीमारियों की ओर धकेल रही हैं।


विटामिन की गोलियां बन गईं प्रतिष्ठा का प्रतीक

हालांकि, विशेष परिस्थितियों में इन कृत्रिम पोषक तत्वों के सकारात्मक प्रभावों पर कोई संदेह नहीं है लेकिन हर रोज इनका इस्तेमाल चिंता की बात है। खासतौर पर जब मल्टीविटामिन गोलियों के इस्तेमाल को लोग अपनी प्रतिष्ठा के प्रतीक के रूप में देखने लगे हैं। जो लोग मुझसे पोषण से जुड़ी सलाह लेने आते हैं मैं हमेशा उनसे पिछले सभी दवाओं के पर्चे और दवाएं वगैरह लाने को कहती हूं ताकि मुझे उनकी मेडिकल हिस्ट्री की जानकारी हो सके। हैरान करने वाली बात यह है कि इन दवाओं के पर्चों में ढेरों मल्टीविटामिन लेने की सलाह होती हैं। अगर मरीज एक ही समय पर दो या तीन विशेषज्ञों से सलाह ले रहा है, तो अक्सर सभी पर्चों में आंख बंद करके एक ही जैसे विटामिन, जैसे कैल्शियम वगैरह लेने की सलाह दी जाती है, खासकर 40 से ऊपर की उम्र की महिलाओं को।

लंबे समय तक गोलियां लेने से बीमारियों का जोखिम

बहुत सारी वैज्ञानिक समीक्षाओं में कहा गया है कि इन गोलियों की अधिकता की वजह से कैंसर और मस्तिष्क आघात या स्ट्रोक जैसे खतरे बढ़ जाते हैं। कनाडा में महिलाओं पर हुई एक स्टडी में पाया गया कि जो महिलाएं मल्टीविटामिन लेती हैं उनमें तमाम रोगों के होने की आशंका बढ़ जाती है। एक और स्टडी में पता चला कि जो लोग मल्टीविटामिन गोलियां लेते हैं उनका बॉडी मास इंडेक्स या बीएमआई कम हो जाता है। वे ताजा फल, सब्जियां खाना छोड़ देते हैं पर क्या रसायनों की मदद से वजन कम करना क्या लंबे समय में स्वस्थ विकल्प है? वहीं यह भी ध्यान में रखना आवश्यक है कि जो लोग नियमित ताजे फल और सब्जियां खाते हैं वे आमतौर पर स्वस्थ रहते हैं, लंबा जीवन जीते हैं और उन्हें कम रोग होते हैं। यह एक सर्वमान्य वैज्ञानिक तथ्य है।

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हमारा शरीर प्राकृतिक भोजन के हिसाब से बना है

मुझे कई आधे-अधूरे ज्ञान वाले फिटनेस एक्सपर्ट्स से मिलने का मौका मिला है जो प्राकृतिक भोजन की तुलना में विटामिन की गोलियां खाने को तरजीह देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि गोलियों में नाममात्र की कैलोरी होती है और कथित तौर पर ढेर सारे पोषक तत्व होते हैं। इसलिए इन्हें खाने से जल्दी वजन घटाने में मदद मिलती है। लेकिन वे यह बात नहीं समझ पाते कि हमारा पाचन तंत्र प्राकृतिक भोजन के साथ बेहतर तरीके से काम करता है, जबकि रसायन हमारी आंतों की क्षमता को कम कर देती हैं। इसीलिए अस्पतालों में भर्ती मरीजों के लिए भी पोषण विशेषज्ञ और डॉक्टर प्राकृतिक भोजन कराने पर ही जोर देते हैं।

थोड़ी सी मेहनत से मिल सकती हैं जैविक फल-सब्जियां

आप में से बहुत से लोग सोचते हैं कि हमारा भोजन कीटनाशकों के अधिक प्रयोग की वजह से प्रदूषित हो चुका है और जरूरी मात्रा में पोषण नहीं दे सकता, इसलिए हमें विटामिन की गोलियां खानी चाहिए। यह सोच सही नहीं है। ठीक है कि विटामिन की गोलियां खाना जैविक फल-सब्जियां बेचने वाले दुकानदार या जैविक खेती करने वाले किसान को खोजने, घर में किचन गार्डन बनाकर उनमें ताजे फल-सब्जियां उगाने से कहीं ज्यादा आसान है। लेकिन इस तरह मिले भोजन को खाने के बाद जो स्वाद और सेहत मिलेगी वह बेशकीमती है। याद रखिए वास्तविक स्वास्थ्य वास्तविक भोजन को खाकर ही मिलेगा।

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हां, अगर आपकी सेहत ऐसी है कि आप नियमित रूप से भोजन नहीं ले सकते हैं तो ऐसे में किसी योग्य चिकित्सक की सलाह पर मल्टीविटामिन लेना फायदेमंद हो सकता है। लेकिन इन्हें भोजन के विकल्प के रूप में इस्तेमाल करना बंद कर दें। और अगर आपको डॉक्टरी सलाह पर मल्टीविटामिन खानी भी पड़ रही हैं तब भी अपने डॉक्टर से यह जरूर पूछें कि आपको कितने दिनों तक ये गोलियां खानी हैं। यह नुस्खा जिंदगी भर के लिए नहीं हो सकता, इन्हें नियत समय तक ही खाना चाहिए। अगर आसान शब्दों में कहें तो अगर आप स्वस्थ हैं तो स्थानीय ताजे फल-सब्जियां खाएं, समय पर भोजन लें, अपनी खुराक में सब्जियों को जरूर शामिल करें, हर रोज ताजे फल खाएं, दैनिक खानपान में स्थानीय अनाजों और दालों का प्रयोग करें। यानि, पोषण के लिए भोजन खाएं गोलियां नहीं।

(तनु श्री सिंह पोषण विज्ञान में यूजीसी की सीनियर रिसर्च फ़ेलोशिप द्वारा डॉक्टरेट हैं और पिछले 6 वर्षों से विभिन्न वर्गों की डाइट काउंसलिंग से जुड़ी हुई हैं) 

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