स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। लखनऊ निवासी शुभम वर्मा (बदला हुआ नाम) (25 वर्ष) इन दिनों बैठे-बैठे हंसने लगते हैं, तो कभी रोने लगते हैं, ऐसा उनके साथ पिछले कुछ महीनों से हो रहा है, जबसे उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर चली गई है। शुभम डिप्रेशन के शिकार हैं।
राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के वरिष्ठ मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर देवाशीष शुक्ला बताते हैं, “बेजा महत्वाकांक्षा डिप्रेशन का कारण बन रही है। बदलती लाइफ स्टाइल और प्रतिस्पर्धा के दौर में हर कोई मानसिक दबाव में है। बच्चों से लेकर अधेड़, बुजुर्ग तक इसके शिकार हो रहे हैं। शुरुआत में जब मरीज आता है तो हमें सिर दर्द बताता है। वो कहता है कि काफी दिनों से सिर में दर्द हो रहा है, लेकिन जब उसकी जांच करते हैं तो पता चलता है कि वह डिप्रेशन का मरीज है।”
डॉक्टर देवाशीष शुक्ला बताते हैं “डिप्रेशन को समझने के लिए सबसे पहले हमें इसके लक्षणों को समझना होगा। इसके लक्षणों में से एक है जो डिप्रेशन से पीड़ित होता है वह अकेले रहना शुरू कर देता है, उसका गुस्सा रोजाना बढ़ता रहता है और उसके स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है। उसके सोने और उठने में काफी अंतर आ जाता है। वह अपने आप को अकेले रखना चाहता है।”
डॉक्टर शुक्ला आगे बताते हैं, “वो दूसरों से कट कर अपना ज्यादा से ज्यादा समय मोबाइल और टेलीविजन में बिताता है। डिप्रेशन काफी खतरनाक बीमारी है इसलिए डिप्रेशन से पीड़ित परिवार को थोड़ा सावधान रहना बहुत ही आवश्यक है, परिवार को भी इसके लक्षणों के बारे में ज्ञान होना जरूरी है।”
डॉ. शुक्ला बताते हैं, “जो व्यक्ति डिप्रेशन से पीड़ित है वह शुरू में अपनों से अपनी समस्या का जिक्र जरूर करता है। वह घरवालों से अपनी पसंद-नापसंद, अपनी भावनाओं को बताता है लेकिन माता-पिता दोनों अपनी दिनचर्या इतनी व्यस्त होते हैं कि वो बच्चों की बातों पर ध्यान नहीं देते है व बच्चों की सही और गलत सभी जरूरतों को पूरा कर देते हैं। बच्चों से भावनात्मक रूप से जुड़ नहीं रखते हैं।”
डॉक्टर देवाशीष कहते हैं, “डिप्रेशन में आते ही मानसिक रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए इसका इलाज करवाना चाहिए। डिप्रेशन का व्यक्ति पर गंभीर असर पड़ता है, इसलिए सतर्क रहना और सही निदान और उपचार पाना जरूरी है। पर समाज में जागरूकता कम होने से लोग अक्सर इसे पहचान नहीं पाते और डॉक्टर की सलाह नहीं लेते।”
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बच्चों में बढ़ रही बीमारी
डॉक्टर देवाशीष शुक्ला बताते हैं, “मानसिक रोग के कारण आत्महत्या करते हैं, आजकल बच्चों में आत्महत्या काफी बढ़ गई है। आत्महत्या की वजह उनके परिवार का टुकड़ों में बंट जाना है। भौतिकवादी युग यानी कि आज के युग में पति और पत्नी दोनों ही नौकरी करते हैं, बच्चे को नौकर के सहारे या फिर टेलीविजन और मोबाइल के सारे छोड़ देते हैं और जब वह वापस आते हैं तो उस बच्चे के लिए न यानि किसी चीज के लिए मना करना खत्म हो जाता है। इससे जब बच्चा बड़ा हो जाता है तो वह न शब्द सुनना नहीं चाहता है। वास्तविक समझ बहुत कम हो जाती है। न शब्द कभी उसने सुना नहीं है। इसलिए जब उसे कोई न कहता है या उसको किसी बात के लिए मना करता है तो वह उसको स्वीकार नहीं कर पाता है। बच्चों को सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाता है जिससे आगे चल कर वह धीरे-धीरे डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। कभी-कभी यह आत्महत्या का कारण बन जाती है।”
2020 तक हार्ट अटैक के बाद सबसे ज्यादा मृत्यु का कारण होगा डिप्रेशन
डॉक्टर देवाशीष शुक्ला आगे बताते हैं “आत्महत्या की मुख्य वजह है इमोशंस की कमी, परिवार एक साथ रहते नहीं है हर व्यक्ति एक दूसरे से दूर व्यस्त रहता है जिस कारण आत्महत्या बढ़ रही है।” डॉक्टर देवाशीष शुक्ला, मानसिक रोग विशेषज्ञ बताते हैँ, “विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक हार्ट अटैक के बाद सबसे ज्यादा मृत्यु का कारण डिप्रेशन होगा। डिप्रेशन का इलाज पूर्णतया संभव है कहीं-कहीं पर डिप्रेशन को दूसरे नजरिए से देखा जाता है कहीं पर लोग कहते हैं भूत-प्रेत का साया है तो कहीं पर कहते हैं इनके ऊपर कुछ आ गया है लेकिन इन बातों से बिल्कुल दूर रहना चाहिए और जल्द से जल्द उसे मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास लाना चाहिए जिससे उसका जल्दी इलाज करवा कर उसके डिप्रेशन को खत्म करवाया जा सकता है।”
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दो तरीके से होता है इलाज
डिप्रेशन का इलाज दो तरीकों से करवाया जा सकता है या फिर दो तरीकों से किया जाता है, एक तो साइकोथेरेपी- इस इलाज में पीड़ित की काउंसलिंग की जाती है, काउंसलिंग के द्वारा उसके डिप्रेशन को खत्म करने की पूरी कोशिश की जाती है।
दूसरा फाइमैकोथैरिपी इसमें मरीज को दवाइयों के द्वारा सही किया जाता है, वर्तमान समय में हर 10 में से चार लोग डिप्रेशन का शिकार होते हैं विश्व स्वास्थ्य संगठन 2017 के अनुसार एक टैग लाइन डिप्रेशन के ऊपर दी गई है “ इए डिप्रेशन पर चर्चा करें।”
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पांच करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन को शिकार
भारत में डिप्रेशन के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। यहां 5 करोड़ से ज्यादा लोग इस विकार से पीड़ित हैं। यह संख्या दक्षिणपूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में सबसे ज्यादा है। इस बात का खुलासा डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट में किया गया है, जिसका शीर्षक ‘डिप्रेशन एवं अन्य सामान्य मानसिक विकार-वैश्विक स्वास्थ्य आकलन’ था।
इस रिपोर्ट से पता चलता है कि चीन और भारत डिप्रेशन से बुरी तरह प्रभावित देशों में शामिल हैं। दुनिया भर में डिप्रेशन से प्रभावित लोगों की संख्या करीब 32.2 करोड़ है, जिसका 50 फीसदी सिर्फ इन दो देशों में हैं। डब्ल्यूएचओ के डेटा से पता चलता है कि दुनिया भर में डिप्रेशन के शिकार लोगों की अनुमानित संख्या में 2005 से 2015 के बीच 18.4 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई।