हमारे देश के लगभग सभी प्रांतों में पान लोक संस्कृति का हिस्सा है। शौकिया तौर पर लोग भोजन के बाद पान चबाना आवश्यक मानते हैं।
पान भोजन के बाद मुंह के स्वाद को बदल देता है और माना जाता है कि भोजन पचाने के लिए पान का सेवन हितकारी होता है। कुछ लोग पान को व्यसन मानते हैं तो कुछ लोग स्वागत सत्कार के लिए इसे खाना आवश्यक समझते हैं।
पान, सुपारी, कत्था का नाम सुनकर लाल रंगे होंठ, स्वागत-सत्कार, किसी महफिल की याद या फिर मुंह से पिचकारी मारते लोग हमारी आंखों के सामने नजर आएंगे, लेकिन ये बात बहुत कम लोग ही जानते हैं कि पान और पान में इस्तेमाल होने वाली इन वनस्पतियों के कई तरह के औषधीय गुण हैं।
व्यवसायिक स्पर्धा के चलते अब पान को अलग-अलग फ़्लेवर्स और स्वाद के तौर पर प्रस्तुत करने के लिए कई अनावश्यक पदार्थों को इसमें मिला दिया जाता है जैसे रंगीन सौंफ, चासनी से लदी गुलकंद, मीठी चटनी, नारियल का चूरा, फ़्लेवर्ड तंबाकू, मीठी सुपारी या सिल्वर सुपारी आदि जिससे पान के असली गुण अवगुणों में बदलते देर नहीं लगती। पान का सेवन साधारण या पारंपरिक तौर तरीकों से ही होना चाहिए।
पान का पत्ता
पान एक लता होती है, जिसे भारत के अनेक हिस्सों में व्यवसायिक तौर पर उगाया जाता है। इसका वानस्पतिक नाम पाईपर बेटल है। पान के पत्रों का उपयोग पूजा-पाठ, हवन, सांस्कृतिक कार्यों आदि में भी खूब होता है। पान भारतीय संस्कृति का हिस्सा होने साथ एक महत्वपूर्ण औषधि भी है।
पान के पत्तों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज द्रव्य और टैनिन के साथ-साथ कैल्शियम, फॉस्फोरस, लौह, आयोडीन और पोटैशियम जैसे तत्व भी पाये जाते हैं। सर्दी खाँसी और जुकाम होने पर सेंकी हुई हल्दी का टुकड़ा पान में डालकर खाने से आराम मिलता है।
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साथ ही जिन्हें रात को अधिक खाँसी चलती हो उन्हे पान में अजवायन डालकर खाने से फायदा होता है, बच्चों को ज्यादा सर्दी लगी हो तो पान के पत्ते पर सरसों का तेल लगाकर हल्का गर्म करके सीने पर रखने से आराम मिलता है।
अंगुली की सूजन व दर्द, जिसे अंगुलबेल भी कहते हैं, कम करने के लिए पान के पत्तों को गर्म करके अंगुली पर लपेटने से लाभ मिलता है।
वनवासियों के अनुसार मुंह में छाले हो जाने पर पान की पत्ती को सुखाकर चबाएं तो फायदा होता है। पायरिया की शिकायत हो तो पान के एक पत्ते में मूँगफल्ली के दाने के बराबर मात्रा में कपूर का टुकड़ा डालकर चबायें और पीक को थूकते जायें, ये ध्यान रखना जरूरी है कि पान की पीक निगली ना जाये, काफी फायदा होता है।
पातालकोट में वनवासी मोच लगने पर पान के पत्ते पर सरसों का तेल लगाकर हल्का गर्म करके बांधते हैं। पान के पत्ते के साथ अजवायन के बीजों को चबाया जाए तो गैस, पेट में मरोड़ और एसीडिटी से निजात मिल जाती है।
डाँग- गुजरात के वनवासियों के अनुसार पान के पत्तों के साथ अशोक के बीजों का चूर्ण की एक चम्मच मात्रा चबाने से सांस फूलने की शिकायत और दमा में आराम मिलता है।
कत्था
पान के साथ कत्थे का इस्तेमाल जरूरी माना जाता है। खैर (अकैसिया कटैचू) बबूल की प्रजाति का एक पेड़ है, जो बबूल कत्था के नाम से भी जाना जाता है। इस वृक्ष की लकड़ी के टुकड़ों को उबालकर इसके रस से कत्था तैयार किया जाता है जिसे पान में चूने के साथ लगाकर खाया जाता है। मसूड़ों से खून आने पर कत्थे का चूरा लगाना चाहिए।
बवासीर के मरीजों के लिए डाँग के वनवासी कत्थे के बुरादे को रीठे की छाल की राख के साथ मिलाकर 15 ग्राम मक्खन में मिलाकर सुबह-सुबह लेने की सलाह देते हैं, उनके अनुसार इससे काफी आराम मिलता है। यह मिश्रण सात दिनों तक लगातार लेना होता है।
कत्थे का प्रयोग रक्तमेह, रक्तस्राव, सूजन, वमन, अतिसार, कीड़े, प्रमेह, रक्त प्रदर, श्वेत प्रदर आदि को दूर करने के लिए भी किया जाता है। ये दांतों के रोग, मूत्र रोगों और त्वचा रोगों में भी बहुमूल्य औषधि के रूप में काम आता है।
सुपारी
मुखवास और पान के साथ चबाए जाने के लिए मशहूर सुपारी (वानस्पतिक नाम: अरेका कटेचु) बेहद गुणकारी भी है। सुपारी के छोटे-छोटे टुकड़े लगभग 20 ग्राम को 250 मिली पानी में उबालें और जब पानी आधा रह जाए तो इसे छानकर पी लें, ऐसा सुबह-शाम रोजाना करने से आमाशय और आंतों की कमजोरी से होने वाले दस्त बंद हो जाते हैं।
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सुपारी के बारीक टुकड़ों को अच्छी तरह कुचल लिया जाए और हल्का सा भूनकर इसका चूर्ण बना लिया जाए और इस चूर्ण से दाँतों पर मंजन किया जाए तो दाँत दर्द में आराम मिलता है। पातालकोट के वनवासी मानते हैं कि इस चूर्ण से लगातार मंजन करने से दाँतों का सड़ना दूर होता है और दाँत चमकदार भी हो जाते हैं, ये वनवासी मानते हैं कि इस मंजन से रोजाना 2 बार दांत साफ करने से दांत व मसूड़ों के सभी रोग दूर हो जाते हैं।
डाँग- गुजरात के हर्बल जानकारों के अनुसार सुपारी के टुकड़ों को जलाकर राख तैयार कर ली जाए और इसे तिल के तेल में मिलाकर त्वचा पर लगाने से खुजली दूर हो जाती है। हमेशा ये ध्यान रखना जरूरी है कि सुपारी सड़ी या अंदर से काली ना हो।
सौंफ
भोजन संपन्न होने के बाद खाना पचाने के लिये खाई जाने वाली सौंफ (वानस्पतिक नाम- फीनीकुलम वलगेयर) गजब के औषधीय गुणों वाली होती है। सौंफ को लगभग हर भारतीय घरों में किचन में मसाले की तरह और पानदान में मुखवास की तरह देखा जा सकता है। सौंफ में कैल्शियम, सोडियम, फॉस्फोरस, आयरन और पोटेशियम जैसे कई अहम तत्व पाए जाते हैं।
वनवासियों का मानना है कि सौंफ के निरन्तर उपयोग से आखों की रोशनी बढ़ती है और मोतियाबिन्द की शिकायत नहीं होती। प्रतिदिन दिन में तीन से चार बार सौंफ के बीजों की कुछ मात्रा चबाने से खून साफ होता है और त्वचा का रंग भी साफ हो जाता है।
डाँगी वनवासी बताते हैं कि सौंफ के नित सेवन से शरीर पर चर्बी नही चढ़ती और कोलेस्ट्रॉल भी काफी हद तक काबू किया जा सकता है और इस बात की प्रमाणिकता आधुनिक विज्ञान भी साबित कर चुका है। अपचन और खाँसी होने की दशा में एक कप पानी में एक चम्मच सौंफ को उबालकर दिन में 3 से 4 बार पिया जाए तो समस्या समाप्त हो जाती है।
हाथ-पाँव में जलन की शिकायत होने पर सौंफ के साथ बराबर मात्रा में धनिया के बीजों और मिश्री को कूट कर खाना खाने के पश्चात 5-6 ग्राम मात्रा में लेने से कुछ ही दिनों में आराम हो जाता है।