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खुद को नुकसान पहुंचाती है ईर्ष्या

ACTH or chemicals Kortisol

शाजिया सिद्दीकी

लखनऊ। व्यक्ति के लिए, गुस्सा और बदले की सोच नुकसानदेय होती हैं, इसके विपरीत इनको मन से निकाल देने और दूसरों की गलती माफ कर देने पर आपका मानसिक बोझ कम हो जाता है।

जो सुकून का एहसास व्यक्ति दूसरों को माफ करके महसूस करता है वह बदले की भावना से नहीं आता। ऐसा इसलिए क्योंकि माफ करने पर कमजोर की बजाए व्यक्ति ताकतवर महसूस करता है क्योंकि यह शक्तिशाली होने की निशानी है।

बहुत गुस्सैल या लम्बे समय तक भी दे रहे होते हैं। वहीं अगर हम ईर्ष्या, क्रोध, बदले की भावना छोड़ देते हैं तो हार्ट फेल, अवसाद जैसी कई बीमारियां होने की संभावनाएं घटने लगती हैं।

बदले या गुस्से की भावना से हमारे दिमाग में एसीटीएच या कोर्टीसोल रसायन पैदा होते हैं। यह रसायन तनाव के समय निकलते हैं और यह शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे शरीर कमजोर होता है, दिल और दिमाग पर भी बुरा असर पड़ता है।

जो समय हम किसी अच्छे काम में लगा सकते हैं वह समय हम दूसरों दिक्कत पहुंचाने की योजना बनाने में खराब कर देते हैं। इससे हो सकता है कि दूसरो को नुकसान हो भी जाए पर उससे बदला लेने वाले पर भी कोई बहुत अच्छा असर नहीं होता।

जब व्यक्ति अपने स्वभाव में क्रोध, ईर्ष्या बदला लेने की भावना को लम्बे समय तक रखता है, तो वह उसके दिल या दिमाग पर हावी रहता है। जब हमारे साथ कोई वह बुरा व्यवहार करने लगता है तो बदला लेने की भावना आना बहुत स्वाभाविक होती है।

ऐसे में खुद को भी सुकून की तलाश में या यह सोच कर कि दूसरों को नुकसान पहुचाने पर खुद को सुकुन मिलेगा, जबकि ऐसा नहीं होता है। गुस्सा करना, नाराज होना जैसी समस्याओं से इंसान जज़्बाती या बहुत उदास हो जाता है। इसको हर व्यक्ति अपने जीवन में महसूस करता रहता है। दिक्कत तब शुरू होती है जब यह भाव लम्बे समय तक आपके साथ होने लगे और आपके स्वाभाव के एक जरूरी हिस्सा बन जाए।

जो व्यक्ति स्वभाव से शांत होते हैं और अपने भावनाओं पर जिनका नियंत्रण नहीं होता है उनके लिए सामाजिक, व्यक्तिगत या कई बार संबंधियों को उनकी वजह से कई परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। ऐसे लोगों में निर्णय लेने की क्षमता लचर होती है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

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