सोनारी (सीतापुर)। ‘कभी ये सोचा ही नहीं था कि डॉक्टर ऐसे भी इलाज कर सकते हैं।’ ये शब्द हैं सौरभ के जिन्होंने हाल ही में बंगलुरू में बैठे एक डॉक्टर से इलाज करवाया है वो भी सीतापुर के अपने गाँव में बैठे-बैठे। लखनऊ से उत्तर दिशा में 65 किमी दूर सिधौली-बिसवां हाईवे पर स्थित सोनारी गाँव में बैठकर सौरभ (26) ने अपनी पेट की बीमारी का इलाज बंगलुरू के एक डॉक्टर से कराया। डॉक्टर साहब ने कम्प्यूटर के माध्यम से सौरभ की बीमारी का सफल इलाज किया। दरअसल, डॉक्टर जब कम्प्यूटर के माध्यम से दूर बैठे किसी मरीज का इलाज करते हैं, उसे टेलीमेडिसिन कहते हैं।
सिर्फ 35 हज़ार में तैयार होता है टेलिमेडिसिन सेंटर
एक टेलीमेडिसिन सेंटर को शुरू करने के लिए 35 हजार तक का खर्च आता है, जिसमें एक कम्प्यूटर और स्वास्थ्य संबंधी उपकरण शामिल है। अगर हम किसी भी पंचायत भवन, आंगनबाड़ी केन्द्र या स्कूल में सेंटर खोलें तो भवन निर्माण का खर्च बचेगा। सेंटर को चलाने का काम किसी एनएएम, आशा बहू या किसी अन्य मेडिकल वर्कर को दिया जा सकता है, जिन्हें सरकार पहल से मानदेय दे रही है। यूपी का 2014-15 का परिवार एवं स्वास्थ बजट 14,377 करोड़ रुपए है। अगर प्रदेश की 58,000 ग्राम पंचायतों में एक-एक टेलीमेडिसिन सेंटर खोला जाए तो लगभग 20 करोड़ 30 लाख रुपए का खर्च आएगा, जो प्रदेश के स्वास्थ्य बजट के परिवार स्वास्थ्य कल्याण को दिए गए लगभग 5 हजार करोड़ रुपए का 40 फीसदी है। लेकिन इस तरह हर ग्राम पंचायत में विशेषज्ञ डॉक्टरों की चिकित्सकीय सुविधा पहुंच पाएगी।
हर पंचायत तक पहुंचने का समय हो निर्धारित
ये सेंटर सप्ताह में दो दिन हर पंचायत पर संचालित हो, जिससे छोटी मोटी समस्याओं के लिए मरीज उन दो दिनों में पहुंचकर परामर्श ले लें। इससे मरीजों को बेहतर इलाज समय पर मिल पाएगा और उन्हें छोटी-मोटी समस्याओं के लिए गाँव से बहुत दूर तक जाने की दिक्कत नहीं रहेगी। बंगलुरू में टेली रेडियोलाजी सल्यूशंस कंपनी के टेलीमेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. श्रीकृष्णन कहते हैं, ”भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी पैथॉलाजी या क्लिनिकल सेंटर नहीं है, जिससे गाँवों में लोगों को बेहतर इलाज नहीं मिल पाता। टेलीमेडिसिन से ग्रामीणों को उनके गाँव में ही बैठे-बैठे अच्छा इलाज मिल जाता है।”
आशा बहू और एनएएम को सौंपी जाए जिम्मेदारी
इन सेंटरों को संचालित करने के लिए पहले से मेडिकल क्षेत्र से जुड़े सोशल वर्कर की सहायता ले सकते हैं। उन्हें पहले से सरकार पैसा दे रही है इस तरह वेतन का खर्चा भी कम होगा और इन वर्कर्स की अहमियत बढ़ेगी। ये लोग पहले से इस क्षेत्र से जुड़े हैं तो उनके पास अनुभव भी होगा जिससे उन्हें ज्यादा प्रशिक्षित करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
सोनारी में टेलीमेडिसिन सेंटर के ऑपरेटर हर्ष (24) बताते है, ”यहां हमारे पास ईसीजी मशीन, स्पाय्रो मीटर, एनआईबीपी और पल्स चेक करने की मशीन है। जिससे चेक करने के बाद उचित सलाह दी जाती है।” सोनारी से 2 किमी दूर जगदीशपुर गाँव के रवि बाजपेई (22) कहते है, ”हमारे पेट में हमेशा जलन बनी रहती थी। फिर यहां के बारे में पता चला, डॉक्टर साहब हमसे कम्प्यूटर पर दिक्कत पूछी और 5 दिन की दवा बताई। हमने दवा खरीद ली, जिससे आराम मिल गया।”
कैसे होता है टेलीमेडिसिन से इलाज
सोनारी में लैपटॉप पर टेली मेडिसिन से इलाज का तरीका समझाते हुए वीरेन्द्र यादव (23) कहते हैं, ”वीडियो कॉलिंग के लिए स्काइप सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा क्योरडॉक और क्योरक्लाइन्ट नाम के दो सॉफ्टवेयर और इस्तेमाल करते है, जिसमे मरीज़ की पूरी रिपोर्ट सुरक्षित रहती है। इन्ही दो सॉफ्टवेयर से बाहर के डॉक्टर भी जुड़े रहते है, मरीजों की रिपोर्ट इन्ही सॉफ्टवेयर से भेजी जाती है।” सामने मेज़ पर रखे एक चौकोर सफ़ेद डिब्बे और नीले रंग की एक लीड को हाथ में उठाकर वीरेन्द्र बोलते हैं, ”ये एनालेसिस मीटर है। यह मरीज़ के जांच की रीडिंग को कम्प्यूटर में भेजता है। इससे सभी मशीनें जुड़ जाती हैं।”