मेरे करीबी लोग कहते हैं कि मेरे पैरों में पहिए लगे हुए हैं और वो गलत भी नहीं हैं। अहमदाबाद शहर की ऊंची-ऊंची इमारतों में कबूतरखानों की तरह बने घर, सड़कों पर रफ्तार मारती गाड़ियां और हर तरफ एक अजीब सा कोलाहल..ये सब देखकर मेरा मन गाँव की तरफ भागने के लिए हमेशा आतुर रहता है।
कंक्रीट के जंगलों से बाहर निकलकर गाँव देहातों और जंगल की दुनिया का अनुभव हद से ज्यादा सुकून देता है। गाँव देहातों में हर पल सीखने के लिए नया होता है। कभी आप अहमदाबाद से राजकोट और जूनागढ़ होते हुए सोमनाथ तक की यात्रा करें तो जूनागढ़ से सोमनाथ के बीच की 90 किमी की दूरी में एक खास चीज पर जरूर गौर करियेगा। हर 200-300 मीटर की दूरी पर एक न एक बरगद का पेड़ जरूर दिखायी देगा। सड़क के दोनों बाजूओं की बात हो या बी़च सड़क में, लंबी-लंबी जटाओं को धरे ये वृक्ष जैसे आपके स्वागत के लिए हमेशा आतुर दिखायी देते हैं। आखिर इतनी ज्यादा संख्या में बरगद के वृक्षों को लगाया किसने होगा और बरगद के वृक्षों को लगाने के मायने क्या रहे होंगे?
कुछ वृक्ष तो पचासों साल पुराने दिखायी देते हैं। साधू संतों और वन संपदा से भरे जूनागढ़ के गिरनार पर्वत के किनारे से लेकर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ तक 90 किमी के रास्ते में इतने सारे बरगद वृक्षों को देखना मन को बड़ा सुकून देता है। एक समय था जब अक्सर गाँव में किसी तालाब या पोखर के किनारे अथवा गाँव के ठीक बीचों-बीच चबूतरा बना बरगद का एक विशालकाय वृक्ष जरूर दिखायी देता था। ये बड़ा सा बरगद जैव विविधता (बॉयोडायवर्सिटी) की दृष्टि से भी खास होता था। इसकी विशालकाय शाखाएं कई पक्षियों का आसरा होती हैं साथ ही इसकी छाँव किसी भी मुसाफिर को थकानभरे सफर में भरपूर आराम देने में भी सक्षम होती हैं।
जूनागढ़ हाईवे पर मुझे किसी ने जानकारी दी थी कि रिंग रोड और नेशनल हाईवे बनाते वक्त कई बरगद के वृक्षों को गिरा भी दिया गया था। सड़क चौड़ीकरण के नाम पर विशाल बरगद के पेड़ों को उखाड़ फेंकनें में कैसी समझदारी? एक वृक्ष के काटे जाने से सिर्फ एक वृक्ष का नुकसान नहीं होता है बल्कि इस पेड़ पर पक्षियों के घरौंदे टूट जाते हैं, पेड़ की जड़ों में बसा माइक्रोफ्लोरा भी खत्म हो जाता है।
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एक वृक्ष का काटा जाना हजारों लाखों जीवों की एक साथ निर्मम हत्या या उन्हें बेघर करने का कारण भी बनता है। एक बार एक वनविभाग के आला अधिकारी ने मेरे सवाल का जवाब देते हुए बताया कि एक पेड़ की कटाई के एवज में वो 5 नए पौधरोपण की पैरवी करते हैं। लेकिन ये नाकाफी है क्योंकि 15 से 20 साल की अधिक उम्र के उखाड़े गए पेड़ों की भरपाई नये पौधरोपण से कतई नहीं की जा सकती।
इंसान इंसानों की बनाई संपत्ति का विनाश करे तो दंगाई कहलाते हैं और प्रकृति का अतिदोहन कर उसका सत्यानाश करे तो इसे विकास कहा जाता है, विकास की ये ऐसी कैसी दौड़ है जिसमें हम इंसान अपनी सहूलियत के हिसाब से अपनी सुविधाओं को खोज निकालते हैं। खैर! अच्छी बात ये हैं कि हाईवे से सटे कई गाँवों के लोगों नें पेड़ों की अंधाधुंध कटाई का तगड़ा विरोध किया है और विरोध की वजह बरगद के इन पेड़ों से उनका लगाव होना है।
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शहरों की ऊंची-ऊंची इमारतों में बैठकर आप जमीनी हकीकत को समझ नहीं सकेंगे, जमीनी समस्याओं को समझने के लिए आपको जमीन पर आना होगा। ग्रामीण लोगों और हमारे समाज के बुजुर्गों की सोच और समझ कई डिग्रीधारियों और तथाकथित कमाऊ लोगों से ज्यादा बेहतर है।
(लेखक गाँव कनेक्शन के कंसल्टिंग एडिटर हैं और हर्बल जानकार व वैज्ञानिक भी।)