लखनऊ। दुनिया में आए दिन किसी न किसी नई बीमारी का जन्म होता रहता है और कुछ दिन के बाद वह बीमारी भारत में दस्तक दे देती है। भारत में एक नई बीमारी अब दस्तक दे रही हैं जो (ओसीडी) ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर एक नाम से जानी जाती है। इस बीमारी में लोगों को कोई भी काम बार-बार करने की आदत हो जाती है।
मनोविज्ञान में इस स्थिति को ओसीडी (ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर) के नाम से जाना जाता है जो एक चिंता और वहम की बीमारी है, जिसमे कुछ गैर जरूरी विचार या आदतें किसी इंसान के दिमाग में कुछ इस तरह जगह बना लेते हैं कि वह इंसान चाहकर भी उन पर काबू नहीं कर पाता। आपका दिमाग किसी एक बात को बार बार सोचता रहेगा या फिर आप किसी एक काम को बार बार करते रहेंगे जब तक आपके मन को चैन नहीं मिलेगा।
कैसे पता करें कि आपको ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर है या नहीं
लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. देवाशीष शुक्ला बताते हैं, “ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर जैसा की नाम से ही है, ऑब्सेसंस हो जाना ओब्सेसन किसी काम से प्रति हो जाए किसी व्यक्ति के प्रति हो जाए प्राय: इस बीमारी के मरीज के ही चीज को बार-बार दोहराते हैं। एक ही काम को बार-बार करना, बार-बार हाथ धुलना, घन्टों बाथरूम में बैठे रहना, टॉयलेट में ज्यादा समय व्यतीत करना, अपने घर का ताला बंद करने के बाद कई बार चेक करना। छोटे-छोटे ओब्सेसन्स हर व्यक्ति के जीवनकाल में होते हैं। ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर किसी भी इंसान को किसी भी उम्र मे हो सकता है। लक्षण समय के साथ आ और जा सकते हैं। इस बीमारी का पहला पड़ाव है 10 से 12 साल के बच्चों का और दूसरा 20-25 वर्ष पर शुरू हो जाता है।”
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भारत में हर सौ लोगों में 2-3 व्यक्तियों को अपने जीवनकाल में ओसीडी है
राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल के अनुसार, भारत में सामान्य आबादी में ओसीडी का जीवनकाल 2-3% है, जिसका मतलब है कि हर सौ लोगों में 2-3 व्यक्तियों को अपने जीवनकाल में ओसीडी है। यह पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से प्रभावित करता है। यह आम तौर पर 20 साल की उम्र से शुरू होता है, लेकिन यह किसी भी उम्र में हो सकता है, जिसमें बच्चों में 2 वर्ष की उम्र के रूप में शामिल है। संयुक्त राज्य अमेरिका में करीब 3.3 मिलियन लोगों को ओसीडी कहा जाता है।
होम्योपैथिक इलाज से भी संभव है इलाज
होम्योपैथिक डॉ रवि सिंह बताते हैं, “ओसीडी को ओसीएन (ऑब्सेसिव कंपल्सिव न्युरोसिस) भी कहते हैं, अगर ओसीएन के लक्षण किसी इंसान मे छह महीने से ज्यादा समय से है और अगर इस से उनकी दिनचर्या मे कोई प्रभाव पड़ रहा है तो उन्हे अॅब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर हो सकता है। लेकिन अगर किसी इंसान का दोहराने वाला व्यवहार खुशी देने वाला है तो यह ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर नहीं होता जैसे, जुआ खेलने की आदत, ड्रग्स लेना या शराब पीना।”
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क्यों होता है ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर
डॉ. सिंह बताते हैं, “ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर होने हा मुख्य कारण है मष्तिष्क में कुछ खास किस्म के रसायनों के स्तर में गड़बड़ी होना है, जैसे कि सेरोटोनिन आदि। रिसर्च मे पाया गया है की ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी मे आता है। अगर किसी के माता पिता को ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर है तो उनके बच्चों को भी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर होने की संभावना होती है।”
क्या है इलाज़ ?
डॉ. देवाशीष आगे बताते हैं, ”सामान्य तौर पर ये बीमारी उलझन से होने वाली बीमारी है। इस बीमारी को जल्दी लोग समझ नहीं पते हैं। किसी भी काम को बार-बार करने से ये आदत के रूप में बदल जाती है और बीमारी बन जाती है। इस आदत को छुड़ाने के लिए मानसिक रोग विशेषज्ञ का सहारा लेना पड़ता है मनोवैज्ञानिक का सहारा लेना पड़ता है। यह बीमारी ठीक हो जाती है अगर शुरुआत होने पर इसे पहचान लिया जाए।”
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आजकल ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के इलाज़ के आधुनिक तरीकों से मरीजों को काफी राहत देना संभव है। हां, इसके इलाज का असर का पता चलने में 6-7 हफ्ते या उससे ज्यादा समय भी लग सकता है। इसके इलाज़ में जितना दवाइयो का महत्व है उतना ही महत्व मनोवैज्ञानिक पद्धति से इलाज का है जिसे सायकोथेरेपी कहा जाता है।
क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक
वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ. नेहा आनंद बताती हैं, “इस बीमारी में जो बार-बार दोहराने की आदत पड़ जाती है। जिस की आदत पड़ गई है जब वह काम नहीं करता है तो उसकी चिंता बन जाती है। किसी भी काम करने से कोई भी मतलब नहीं निकलता है। इसके उपचार की दो प्रक्रिया होती हैं। पहली प्रक्रिया में दवाई के साथ-साथ संज्ञानात्मक व्यवहारवादी रोगोपचार का प्रयोग करते हैं। इसमें अनावरण और प्रतिक्रिया रोकथाम दो तकनीकि का प्रयोग करते हैं। यह प्रक्रिया बहुत ही प्रभावी होता है। सामान्य आरामदायक तकनीकी से चिंता को दूर करने का प्रयास किया जाता है। इस बीमारी में चिकित्सा और दवाई दोनों की जरुरत होती है।”
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