दीपांशू मिश्रा, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। पिछले कुछ वर्ष में बढ़ते प्रदूषण के चलते तेजी से अस्थमा के मरीज बढ़े हैं, यही नहीं दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में भारत के 13 शहर शामिल हैं। कानपुर नगर के रहने वाले दिनेश कटियार (45 वर्ष) को पिछले कुछ वर्षों में अस्थमा की परेशानी बढ़ गई है। दिनेश कटियार बताते हैं, “मुझे कई वर्षों से अस्थमा की परेशानी है, लेकिन आजकल प्रदूषण के चलते परेशानी कुछ ज्यादा बढ़ गई है। इस समय तो धूल की वजह से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है।”
भारत में पिछले कुछ वर्षों में अस्थमा के मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी देखी गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु प्रदूषण डेटाबेस के मुताबिक, दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत के 13 शहर शामिल हैं। हवा में कई सारे छोटे-छोटे कण होते हैं, जो फेफड़ों में घुस कर काफी नुकसान पहुंचाते हैं।
अगर आकड़ों की बात करें तो भारत में अस्थमा के कुल रोगी 15 से 20 करोड़ हैं। बदलते लाइफस्टाइल के चलते ये बीमारी बच्चों में भी फैल रही है। मौजूदा वक्त में कुल 12 प्रतिशत शिशु अस्थमा से पीड़ित हैं। साल 2016 में आयी एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में अस्थमा के मरीजों के कुल 10 फीसद मामले अकेले भारत में हैं।
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प्रदूषण के चलते अस्थमा के मामले बढ़ रहे हैं, इससे बचने के लिए इसके मरीजों को जागरूक होना पड़ेगा। घर से बाहर निकलते वक्त मास्क लगाकर निकलें।
डॉ. एमपी यादव, अस्थमा विशेषज्ञ, लखनऊ
लखनऊ के अस्थमा विशेषज्ञ डॉ. एमपी यादव बताते हैं, “जेनेटिक यानी माता-पिता में से किसी एक के इस बीमारी के शिकार होने पर उनके बच्चों को अस्थमा होने की आशंका बनी रहती है। ऐसे लोगों को शुरू से ही सावधानियां बरतनी चाहिए।
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यह एक जेनेटिक बीमारी है आमतौर पर लोग बचपन में ही इसके चंगुल में फंस जाते हैं। नियमित रक्त परीक्षण और छाती के एक्स-रे द्वारा इसकी पहचान की जाती है। प्रदूषण व जेनेटिक क्रिया के कारण लोगों में यह बीमारी देखी जाती है। सांस में सूजन व इसके छिद्रों के बंद पड़ने से अस्थमा की समस्या देखी जाती है। सांस लेने में तकलीफ, सांस छोड़ते समय आवाज निकलना, अत्यधिक खांसी का होना इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं।”
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