नई दिल्ली (भाषा)। आईआईटी गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने सिल्क-प्रोटीन एवं बायोऐक्टिव ग्लास फाइबर से बनी कृत्रिम चटाई तैयार की है और उनका मानना है कि यह चटाई हड्डी की कोशिकाओं में वृद्धि कर गठिया के रोगियों में घिस चुके उनके जोड़ों की हड्डियों की मरम्मत कर सकती है।
अधिकतर घुटने, कूल्हे, हाथ, पैर एवं रीढ़ की हड्डी में जोड़ों को प्रभावित करने वाली इस बीमारी को अस्थि एवं उपास्थि के जोड़ के विकार से भी जाना जाता है। उपचार नहीं होने से यह भयंकर दर्द, सूजन पैदा कर सकता है और परिणामस्वरुप चलना फिरना सीमित हो सकता है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी (आईआईटीजी) से बिमान बी मंडल ने बताया, “मरम्मत प्रक्रिया में सहायक व्यवहार्य उत्तक विकल्प की कमी से वर्तमान में क्लिनिकल उपचार के तरीके सीमित हैं उपयुक्त उत्तक विकल्प विकसित करने के लिए वैज्ञानिकों ने ब्रिटेन में यूनीवर्सिटी कॉलेज लंदन से उन लोगों को भी शामिल किया जो मूल अस्थि-उपास्थि इंटरफेस पर नजर रखते हैं और उन्हें प्रयोगशाला की स्थितियों में कृत्रिम रुप से बनाने की कोशिश करते हैं।
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भारत में हड्डी एवं जोड़ों की बीमारी सबसे अधिक आम है। हालांकि मंडल ने यह उल्लेख किया कि मौजूदा क्लिनिकल निदान बेहद महंगा है।
मंडल ने बताया कि चटाई के लिये वैज्ञानिकों ने पूर्वोत्तर भारत में आसानी से मिलने वाले सिल्क के एक किस्म का इस्तेमाल किया। उन्होंने बताया, मूंगा (असम) सिल्क में ऐसे गुण विद्यमान हैं जो रोग से निदान की प्रक्रिया में तेजी लाते है।”
बहरहाल, मरीजों तक इसकी पहुंच सुलभ करने से पहले अभी इस चटाई का चूहों या सुअरों जैसे उपयुक्त पशुओं पर परीक्षण किए जाने की आवश्यकता है और फिर अंत में इसका मानव पर प्रयोग किया जाएगा।