लखनऊ। विश्वभर में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस प्रतिवर्ष 10 अक्टूबर को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य बेहतर मानसिक स्वास्थ्य के लिए मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता प्रसारित एवं सहयोग प्रदान करना है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ ने वर्ष 1992 में जागरूकता दिवस स्थापित किया था और तब से प्रतिवर्ष 10 अक्टूबर को विश्वभर में लोग विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मना रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व स्तर पर लगभग 45 करोड़ लोग मानसिक विकार से पीड़ित हैं। विश्व में चार लोगों में से एक व्यक्ति अपने जीवन के किसी मोड़ पर मानसिक विकार या तंत्रिका संबंधी विकारों से प्रभावित होता है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण, वर्ष 2015-16 के अनुमान के अनुसार भारत में 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के 10.6 प्रतिशत लोग मानसिक अस्वस्थता अथवा विकृति से ग्रसित है।
राजस्थान में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थान आरोग्यसिद्धि फाउंडेशन के जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ भूपेश दीक्षित ने बताया, “वर्ष 2018 में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की थीम “युवा लोग और बदलती दुनिय में मानसिक स्वास्थ्य” है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 15-29 वर्ष की आयु वर्ग के लगभग 42 करोड़ युवा रहते है जो कि भारत की कुल आबादी का 35 फीसदी हिस्सा है। तेजी से बदलती दुनिया में स्कूल, कॉलेज और घरों में बढ़ रही हिंसा और धमकी, साइबर धमकी, लिंग पहचान को लेकर असहजता, प्राकृतिक या मानव जनित आपदा, हिंसा, बेरोजगारी, असुरक्षा, वैवाहिक जीवन में अनबन, ब्रेकअप्स अथवा प्रेम-प्रसंग, विवाह व बच्चे पैदा करने के लिए दबाब डालने के कारण युवाओं में नकारात्मक वातावरण, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो रही है।”
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एक सर्वे के अनुसार भारत के लगभग 20 फीसदी युवा मानसिक अवसाद का सामना कर रहे है, जिसका असर उनकी काम करने की क्षमता, उत्पादकता और जीवनशैली पर पड़ रहा है। मनोरोग विशेषज्ञों का मानना है कि कम से कम 50 प्रतिशत मानसिक स्वास्थ्य विकार 14 वर्ष से कम उम्र तक और लगभग 75 प्रतिशत वर्ष की उम्र में दिखाई दे जाते है। सितम्बर 2018 में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् व पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के लांसेट पत्रिका में प्रकाशित हुए अध्ययन के अनुसार भारत में 15-29 वर्ष की आयु वर्ग के व्यक्तियों में होने वाली मौतों में से सबसे ज्यादा मृत्यु आत्महत्या के कारण है।
अध्ययन के मुताबिक 15-29 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं में भी होने वाली सभी प्रकार की मौतों में से सबसे ज्यादा मृत्यु आत्महत्या के कारण हो रही है। आत्महत्याओं के वर्ष 1990 से 2016 तक के आंकड़ों के अध्ययन के अनुसार भारत में 15-29 वर्ष की आयु वर्ग के व्यक्तियों में पुरूषों के मुकाबले महिलाएं अधिक आत्महत्याएं कर रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की ‘एडीएसआई’ रिपोर्ट के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि भारत में वर्ष 2011 से 2015 के बीच 246922 युवाओं ने अपनी जिंदगी खुद छीन ली जिसमें 141842 पुरुष, 105062 महिलाएं व 18 ट्रांसजेंडर है जो कि बेहद ही भयावह, चिंताजनक और दुखद स्थिति को दर्शाता है।
अगर समय रहते युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति ध्यान नहीं दिया गया, उनकी समस्याओं को नहीं सुना गया तो आने वाले समय में हालत और भी बदतर हो सकते है। ऐसे में समय की मांग है कि स्कूल और कॉलेज में मानसिक स्वास्थ्य व जीवन कौशल शिक्षा को प्राथमिकता व प्रमुखता देते हुए पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए व काउंसलर्स भी नियुक्त किए जाएं। इसके अलावा सरकार और सामाजिक संस्थाएं साथ मिलकर समाज में सोहार्दपूर्ण सामाजिक माहौल और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सामाजिक कलंक को मिटाते हुए युवाओं में जागरूकता पैदा करें तभी समय रहते सभी के सम्मलित प्रयासों से आत्महत्याओं को कम किया जा सकेगा और देश का भविष्य सुरक्षित रहेगा।
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मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए ये करें
मन की बात साझा करें
नियमित रूप से व्यायाम, ध्यान एवं योग करें ।
संतुलित एवं पौष्टिक आहार लेवें ।
खाना खाने एवं सोने का उचित समय निर्धारित करें व उसका पालन करें ।
अपने परिवार व मित्रों के साथ सतत संपर्क में रहें ।
शराब व अन्य मादक पदार्थों का सेवन ना करें । यह मानसिक परेशानियों को और अधिक बढ़ातें है । अतः इनसे दूर रहें ।
आत्महत्या के अथवा नकारात्मक विचार आने पर तुरंत विशेषज्ञों की मदद लेवें ।
याद रखने योग्य
मानसिक रोग कोई अभिशाप नहीं है। समय पर लक्षणों की पहचान, जांच व चिकित्सकीय परामर्श से मानसिक बीमारियां का इलाज है। अपना समय-धन झाड-फूँक, बाबा, तांत्रिक, ओझा, भोपा में व्यर्थ ना करें।