गोलमाल तरीकों से क्यों हो गुप्त रोगों की बात?

गोलमाल तरीकों से क्यों हो गुप्त रोगों की बात?

डॉक्टर से भी गुप्त रोगों के बारे में खुलकर बातें नहीं करते मरीज, इसे पेशे से जुड़े डॉक्टर्स का कहना है भारत में सेक्स से जुड़े मुद्दों और समस्याओं पर बात करने में हर वर्ग के लोग कतराते हैं।

गुप्त रोग भारत में एक ऐसा शब्द है, जिसे सुनते ही लोग बगले झांकने लगते हैं। आपस में बात करना तो दूर, लोग डॉक्टर से इस बारे में खुलकर बात नहीं करते। इसे पेशे से जुड़े डॉक्टर्स का कहना है भारत में सेक्स से जुड़े मुद्दों और समस्याओं पर बात करने में हर वर्ग के लोग कतराते हैं।

लोग यहां गुप्त रोगों का इलाज भी गुप्त तरीकों से करवाते हैं, जबकि यह आवश्यक नहीं कि गुप्त रोग सिर्फ लैंगिक समस्याएं होती हैं बल्कि गुप्त रोगियों में अवसाद और कुंठा आम तौर पर देखी जा सकती है और इसके परिणाम बेहद घातक साबित हो सकते हैं।

समय-समय पर अलग अलग संचार माध्यमों के जरिये सेक्स से जुड़ी समस्याओं को लेकर जिक्र किया जाता है बावजूद इसके आज भी हमारा समाज सेक्स से जुड़ी समस्याओं और रोगियों को एक अलग नज़रिये से देखता है।


जागरुकता के अभाव में होते हैं अन्य बीमारियों के शिकार

आज भी हमारे देश में सेक्स से जुड़ी समस्याओं पर खुलकर संवाद नहीं होता है, यहाँ तक कि रोगी अपनी समस्याओं के बारे में अपने डॉक्टर से बात करने में भी कतराते हैं, जो कि चिंताजनक है। लोग इस विषय की अज्ञानता और जागरुकता के अभाव में कई अन्य बीमारियों के भी शिकार हो जाते हैं।

देश के कई जाने-माने डॉक्टरों से बात करने के बाद हमारे सामने ऐसी कई कहानियां आईं, जो परत दर परत सेक्स एजुकेशन की जरूरत पर जोर देती हैं। एक 17 साल का लड़का मास्टरबेशन (हस्तमैथुन) की आदत को अपनी जिंदगी खत्म करने से जोड़ लेता है और पढ़ाई के लिए मिलने वाले सारे पैसे ताकत की दवाएं खाने में लगा देता है।

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एक 23 साल की लड़की शादी के एक साल तक अपने पति से संबंध नहीं बना पाती, क्योंकि उसे ये डर है कि पति से शारीरिक संबंध के दौरान उसे चोट लगती है या असहनीय पीड़ा होगी। करीब 45 साल की एक महिला मेनोपॉज (रजोनिवृति) के दौरान सिर्फ इसलिए डिप्रेशन (अवसाद) में चली जाती है, क्योंकि उसे लगता है कि अब वह शारीरिक संबंध बनाने में असफल रहेगी और शायद अपने पति को इस सुख से वंचित कर देगी।

डॉक्टर्स के लिए होती है चुनौती

अनेक डॉक्टर्स और एक्सपर्ट्स ने हमें बताया कि सेक्स से जुड़ी समस्याओं के चलते जब रोगी इनसे मुलाकात करते हैं तो रोगी अपनी समस्याओं के बारे में खुलकर बात नहीं कर पाते। रोगियों के गोलमोल शब्दों और संकोची स्वभाव की वजह से डॉक्टर्स के लिए यह चुनौती हो जाती कि रोगी की समस्या को किस तरह से डिकोड किया जाए ताकि असल समस्या समझ आ सके।

ज्यादातर समस्याओं का आसान हल हमारे इर्द-गिर्द ही होता है और सेक्स से जुड़ी ज्यादातर समस्याएं दरअसल समस्याएं नहीं होती हैं। कुंठित होकर रहना, संवाद ना करना, इंटरनेट या झोलाछाप जानकारियों को आजमाना घातक हो सकता है।

डॉ. शालिनी अनंत, कंसल्टिंग सायकोलॉजिस्ट

आखिर क्यों इस तरह की समस्याओं को लेकर रोगियों के विचारों में खुलापन नहीं होता है? मुंबई में कार्यरत कंसल्टिंग सायकोलॉजिस्ट डॉ. शालिनी अनंत बताती हैं, "सेक्स समस्याएं सिर्फ एक समस्या नहीं है, इसकी वजह सेअनेक दूसरी समस्याएं रोगियों को अपनी गिरफ्त में ले लेती हैं, कई बार रोगी बुरी तरह से अवसादग्रस्त भी हो जाते हैं और कई मामलों में आत्महत्या तक कर लेते हैं।"

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डॉ. शालिनी आगे बताती हैं, "ज्यादातर सेक्स से जुड़ी समस्याओं के मामलों में सही जानकारी का अभाव होना देखा जाता है, हस्थमैथुन कोई रोग नहीं है, रजोनिवृत्ति कोई रोग नहीं हैं, ये सामान्य घटनाएं हैं जिन्हें लेकर अक्सर रोगी परेशान हो जाते हैं।"

डॉ. अनंत ने इस विषय पर बतौर एक्सपर्ट तीन किताबें भी लिखी हैं जिन्हें 'लाल किताब', 'नीली किताब' और 'पीली किताब' के शीर्षक से प्रकाशित किया गया है। डॉ. अनंत बताती हैं, "बच्चियों में माहवारी, असमय प्रेगनेंसी के अलावा युवा-युवतियों में सेक्स से जुड़े तमाम तरह के भ्रम को दूर करने के लिए इन किताबों को अलग-अलग रंगों के नाम से लिखा गया।"

'ज़्यादातर समस्याओं का आसान हल हमारे इर्द-गिर्द'


पेशे से क्लिनिकल सायकोलॉजिस्ट डॉ. अनंत का कहना है, "सेक्स से जुड़ी समस्याओं के चलते नीम-हकीमों की तरफ भागने के बजाए अपने माता-पिता या परिवार में अपनी उम्र बड़े सदस्य से खुलकर बात किया जाना चाहिए। ज्यादातर समस्याओं का आसान हल हमारे इर्द-गिर्द ही होता है और सेक्स से जुड़ी ज्यादातर समस्याएं दरअसल समस्याएं नहीं होती हैं। कुंठित होकर रहना, संवाद ना करना, इंटरनेट या झोलाछाप जानकारियों को आजमाना घातक हो सकता है।"

मैंने आज से 45 साल पहले भारत में सेक्स समस्याओं पर अपना पहला लेक्चर दिया था। मैं आपको बताना चाहता हूं कि इतने सालों में भी कुछ नहीं बदला है। हम बहुत अवेयर हुए हैं, बहुत मॉर्डन हुए हैं, लेकिन सेक्स से जुड़ी समस्याओं को लेकर लोगों का ना बोलना बरकरार है। और साथ ही बरकरार हैं उनकी समस्याएं, जो ना बोलने की वजह से सामने आती हैं। अपने गुप्त रोगों को गुप्त रखकर ही उनका इलाज करवाने निकलते हैं और कई बार परेशानियों में पड़ जाते हैं।

डॉ. प्रकाश कोठारी, मशहूर सेक्सोलॉजिस्ट

शहरों से लेकर गाँव और कस्बों तक सेक्स संबंधी मामलों की हकीकत यही है। इस हकीकत से खुद जाने-माने सेक्सोलॉजिस्ट प्रकाश कोठारी परदा उठाते हैं।

डॉ. कोठारी बताते हैं, "सेक्स के बारे में बात करने को लेकर सिर्फ गरीब और ग्रामीण तबके के लोगों में ही नहीं, अपितु पढ़े-लिखे लोग भी इस बारे में बात करने में काफी हिचकिचाते हैं। एक बार एक शायर अपनी महिला मित्र के साथ मेरे पास आए। उनकी महिला मित्र उनसे उम्र में काफी छोटी थी। जब मैंने उनसे परेशानी पूछी, तो समस्या बताने के दौरान दोनों अपनी बगलें झांकते दिखे और अपनी बात को शायराना अंदाज़ में बयाँ करते दिखे, दरअसल इन्हें शीघ्रपतन की समस्या थी।"

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डॉक्टर्स से सीधे तरीके से संवाद ना हो पाने की वजह से कई बार रोगों की सटीक पहचान भी मुश्किल हो जाती है। डॉ. प्रकाश कोठारी बीते 45 सालों से प्रैक्टिस कर रहे मशहूर सेक्सोलॉजिस्ट हैं, बताते हैं, "मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि रोगी की बातों, इशारों और उसकी समस्याओं को सही तरीके से डिकोड कर पाऊं, अलग-अलग तबके, जाति और भाषा के लोग अपनी बात अपने ही अलग अंदाज में कहते हैं।"

'क्लीनिक आने के बाद नहीं कह पा रही थी कुछ'

गुप्त रोग, सेक्स आदि को लेकर पुरुष और महिलाओं दोनों में जागरुकता का अभाव उन्हें कई दिक्कतें देता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ में बीते 25 सालों से मेरठ में प्रैक्टिस कर रहीं गाइनोकॉलोजिस्ट डॉ. अनुपमा सिरोही बताती हैं, "मेरठ के ही देहात क्षेत्र से एक महिला मेरे पास आई। उसकी शादी को एक साल हो चुका था, लेकिन उसके अपने पति के साथ रिलेशन नहीं हुए थे। इस बात से वो परेशान थी, लेकिन क्लीनिक में आने के बाद भी वो कुछ कह नहीं पा रही थी।"

"उसने कहा, मेरे पति मुझसे नाराज रहते हैं, शायद मुझे कोई बीमारी हो गई है। मैं ठीक नहीं हूं, आप मेरा चेकअप कर लीजिए। जब उसका चेकअप किया, तो सब कुछ नॉर्मल था। काफी देर बात करने पर उसने बताया कि उसे डर लगता है कि पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से उसे दर्द होगा,"डॉ. सिरोही बताती हैं।

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महिलाओं में इस तरह की समस्याओं से जुड़ी तीन अवस्थाएं होती हैं। पहली टीनएज, दूसरी शादी और शादी के बाद और तीसरी जब महिलाओं को मेनोपॉज शुरू होता है। इन तीनों ही पड़ावों पर उन्हें अलग-अलग तरह की उलझनें होती हैं और वो अपनी-अपनी तरह से अपनी परेशानी बताती हैं। कई बार सच में ऐसे मामले सामने आते हैं कि हैरानी होती है।

'लोगों को सेक्स एजुकेशन की बहुत ज़रूरत'


डॉ. अनुपमा अपने अनुभव साझा करती हैं, "ऐसे मामले देखकर लगता है कि लोगों को सेक्स एजुकेशन की बहुत जरूरत है। इस तरह के मामलों में अक्सर लोग बिना किसी बीमारी के भी मरीज बन जाते हैं। उन्हें डिप्रेशन और एंग्जाइटी जैसी समस्याएं घेर लेती हैं। लेकिन बात ना करने की झिझक को वो छोड़ नहीं पाते हैं, इस वजह से हमें एक लंबा वक्त उनकी समस्या को डीकोड करने में लग जाता है।"

इस तरह के मामलों में अक्सर लोग बिना किसी बीमारी के भी मरीज बन जाते हैं। उन्हें डिप्रेशन और एंग्जाइटी जैसी समस्याएं घेर लेती हैं। लेकिन बात ना करने की झिझक को वो छोड़ नहीं पाते हैं, इस वजह से हमें एक लंबा वक्त उनकी समस्या को डीकोड करने में लग जाता है। डॉ. अनुपमा सिरोही, गाइनोकॉलोजिस्ट

ऐसा ही एक मामला डॉ. अनुपमा के सामने तब आया जब एक 45 साल की महिला उनके सामने काफी बुरी हालत में पहुंची। वो मानसिक तौर पर काफी परेशान थीं। एंग्जाइटी, डर और चिड़चिड़ाहट के लक्षण उनमें साफ नजर आ रहे थे। जब उनसे समस्या के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि पेट में दर्द रहता है, चक्कर आते हैं, कमजोरी लगती है। मन अच्छा नहीं रहता। कुछ करने का जी नहीं चाहता।

डॉ. अनुपमा बताती है, "महिला गोल गोल बातें कर रही थी, या फिर उसे खुद समझ नहीं थी, दरअसल वो मेनोपॉज से गुजर रही थी। उसके तनाव की वजह उसके दिमाग में डाली गई गलत जानकारी थी। उसे लगता है कि मेनोपॉज के बाद वो अपने पति के साथ नहीं रह पाएगी। मतलब वो किसी तरह के शारीरिक संबंध नहीं बना पाएगी। उसके आसपास के लोग और उसके पति की भी यही राय है। इसका तनाव उसे बीमार कर रहा था।"

'इन मुद्दों पर बात करना आज भी समझते हैं वर्जित'

दिल्ली के मौलाना आजाद हॉस्पिटल में कम्युनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर और हेड डॉ. जुगल किशोर बताते हैं कि भारतीय लोग सेक्स से जुड़े मुद्दों पर बात करना आज भी वर्जित ही समझते हैं। एक 17 साल के लड़के का जिक्र करते हुए जुगल किशोर बताते हैं, "वो लड़का अखबार में मेरा एक आर्टिकल पढ़ने के बाद मुझे खोजते हुए हॉस्पिटल तक पहुंचा। यहां जब मैंने उसकी परेशानी पूछी, तो उसने चार लाइनें कहीं- मेरे पेट में बहुत दर्द रहता है। मैं बहुत कमजोर महसूस करता हूं। मेरा सारा पैसा खत्म हो गया है। मेरे पास कुछ नहीं बचा है।"

सेक्स से जुड़ी भ्रांतियों और लोगों के टैबू की ओर इशारा करते हुए डॉ. किशोर कहते हैं, "उस लड़के ने शुरुआती बातों में कहीं असल समस्या का जिक्र नहीं किया था। मगर सालों की प्रैक्टिस हमें यही बताती है कि ज्यादातर लोग अपनी सेक्सुअल समस्याओं को इसी तरह बताते हैं। काफी देर तक उनसे उनकी मेडिकल हिस्ट्री के बारे में बात करने के बाद वास्तविक समस्या सामने आती है। इस लड़के के मामले में भी ऐसा ही हुआ।"

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लड़के की असल समस्या के बारे में बात करते हुए डॉ. किशोर कहते हैं, "दरअसल वो हर रोज सुबह-शाम हस्तमैथुन करता था। इससे उसे लगता था कि उसे कमजोरी महसूस हो रही है। ये एक बीमारी है। इसके चलते वो दीवारों पर लिखे हर नीम-हकीम के पते पर पहुंचा और उसने कई ताकत की दवाइयां खाईं और इसके चलते कई रुपयों का नुकसान भी हुआ।"

डॉक्टर के मुताबिक ताकत की दवाएं खाने से उसे गैस (गैसेट्राइटिस) की समस्या हो गई और वो अपने पेट को लेकर काफी परेशान हो गया। डॉ. किशोर बताते हैं, "मुझे ना सिर्फ उसे दवाई देकर बल्कि काफी काउंसलिंग करके सही बात समझानी पड़ी। अगर उसे सेक्स एजुकेशन मिली होती, तो वो मास्टरबेशन को बीमारी या कमजोरी का कारण नहीं समझता। क्योंकि ये उतना ही कॉमन है, जितना कि सर्दी-जुकाम।"

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