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प्रसव को गंभीरता से लें आखिर सवाल है दो जिंदगियों का

India

जब राधा की सास उसे चेकअप कराने डॉक्टर के पास ले गई तो उसका एक ही सवाल था -’क्या राधा का प्रसव नार्मल डिलीवरी द्वारा हो जाएगा?’

चार माह की गर्भवती राधा का यह पहला गर्भ था और डॉक्टर के पास ऐसा कोई तरीका नही था जो यह जवाब दे सके। हर माह बस एक ही सवाल। हमारे गाँव देहात में यह मानसिकता बन चुकी है कि जो भी हो प्रसव नार्मल डिलीवरी से ही होना चाहिए! राधा के परिवार की भी यही सोच थी। पर होना कुछ और था। नवें महीने में पता चला कि बच्चा उल्टा है और डॉक्टर ने प्रसव ऑपरेशन से करने की सलाह दी। ज्ञान के आभाव में वे उसे दाई के पास ले गए जहाँ बच्चे को सीधा करने का प्रयास किया गया। इस गलत निर्णय का बड़ा ही दुखद अंत हुआ। बच्चे को खोना पड़ा और माँ की जान भी बड़ा ऑपरेशन कर के बड़ी मुश्किल से बचायी जा सकी।

कितनी विडम्बना है! शहर की पढ़ी लिखी महिलाएं नार्मल प्रसव पीड़ा से बचना चाहती हैं और डॉक्टर से ऑपरेशन की ज़िद करती हैं। दूसरी और गाँव देहात की महिला व उसके रिश्तेदार हर हालात में ऑपरेशन द्वारा प्रसव से बचना चाहते हैं।

इन सभी पूर्वाग्रह के बीच क्या किसी ने यह जॉनने की कोशिश की कि आखिर सही क्या है?

मेडिकल साइंस के अनुसार 90-92 फीसदी प्रसव नार्मल वेजाइनल डिलीवरी से संभव हैं। लेकिन कुछ प्रसव जटिल  होते हैं जैसे उल्टा बच्चे, जुड़वां बच्चे, माँ की पेल्विस की हड्डी छोटी होना, आड़ा बच्चा, माँ को रक्तचाप या जिगर का रोग होना आदि। इन स्थितियों में नार्मल प्रसव माँ और बच्चे के लिए खतरनाक होता है। इसीलिए कई सौ साल पहले रोम में सीज़ेरियन ऑपरेशन ईजाद हुआ था। कहते है महान सम्राट जूलियस सीज़र भी इसी ऑपरेशन द्वारा पैदा हुआ था।

प्रसव जीवन की एक ऐसी घटना है जो आपको बेहद प्रभावित करतीं है और 2 ज़िंदगियाँ इस पर आधारित होती हैं। इसे गंभीरता से लेना चाहिए। यहां माँ व रिशतेदारों की पसंद का सवाल नही है। जो बच्चा नार्मल डिलीवरी द्वारा हो ही नही सकता है उसे ऑपरेशन द्वारा बचाया जाता है। अब तो यह ऑपरेशन मामूली हो चला है। कई डॉक्टर तो पेट को आड़ा खोलकर सिर्फ एक टाँका ही लगाते हैं। 2-3 दिन में प्रसूता अपने घर होती है और सामान्य जीवन जीती है। माँ बनना ईश्वर का अनमोल अनुदान है। ज्ञान के अभाव में यह अनुदान श्राप न बन जाए। कृपया यह निर्णय अपने स्त्री रोग विशेषज्ञ पर ही छोड़ें।

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