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तनाव दूर करने में मददगार हैं कद्दू के बीज

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पेड़ पौधों के हर एक हिस्से के अपने औषधीय महत्व हैं, ये बात अलग है कि हम इनमें से अधिकतर गुणों से परिचित नहीं। जानकारी के अभाव की वजह से अक्सर हम पौधों के कई हिस्सों को बेकार मानकर फेंक देते हैं। कद्दू या कुम्हड़े को कौन नहीं जानता? हर भारतीय रसोई में इसे एक महत्वपूर्ण और स्वादिष्ट सब्जी के तौर पर पकाया, खाया और सराहा जाता है।

कद्दू की सब्जी बनाते समय इसे काटे जाने के बाद फल के अन्दर से जो बीज निकलते हैं, अक्सर उन्हें फेंक दिया जाता है। कद्दू के बीजों की खासियत इसमें पाए जाने अनेक महत्वपूर्ण पोषक तत्व और रसायन है जो हमारी सेहत को बेहतर बनाने के लिए कई मायनों में असरकारक होते हैं। इसके बीजों के औषधीय गुणों की वकालत आधुनिक विज्ञान भी खूब कर रहा है।

कद्दू की खेती हिन्दुस्तान के लगभग हर प्रांतों मे की जाती है। इसके फलों में मुख्य रूप से बीटा केरोटीन पाया जाता है, जिससे विटामिन ए मिलता है। पीले और संतरी कद्दू में केरोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत ज्यादा होती है, बीटा केरोटीन एंटीऑक्सीडेंट होता है जो शरीर में फ्री रैडिकल से निपटने में मदद करता है। कद्दू के एक फल के भीतर असंख्य बीज पाए जाते हैं जिनमें अनेक प्रकार के कार्बनिक रसायन, पोषक तत्व और खनिज लवण पाए जाते हैं और बगैर इन आधुनिक और वैज्ञानिक जानकारियों के भी आदिवासी अंचलों में इन बीजों को तमाम रोगोपचारों के लिए सदियों से अपनाया जाता रहा है। इस लेख में बताए हर्बल नुस्खों या तरीकों को क्लिनिकल तौर पर भी प्रमाणित किया जा चुका है।

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पोषक तत्वों की उपस्थिती और उनकी उपयोगिता के आधार पर जो शोध की गयी है उसके प्राप्त परिणामों के अनुसार कद्दू के एक कप बीजों में सामान्य तौर एक दिन के लिए आवश्यक (डेली वेल्यु या DV) जिंक की 44% मात्रा, तांबा 22% , 42% , मैग्नेशियम, 16% मैगनीज, 17% पोटेशियम, और करीब 17% लौह तत्वों की उपस्थिती होती है और माना जाता है कि लौह तत्वों की कम से होने वाली रक्त अल्पता यानि एनिमिया के लिए ये सबसे उत्तम औषधि हो सकते हैं। बीजों में पाए जाने वाले पोषक तत्वों के अलावा इससे प्राप्त तेल और बीजों से बने व्यंजनों में भी रोग निवारक गुणों की भरमार होती है।

प्रोस्टेट वृद्धि: टेस्टोस्टेरोन प्रेरित प्रोस्टेट वृद्धि को रोकने के लिए कद्दू के बीजों को काफी कारगर माना जाता है। यूरोलोजिया इंटरनेशनालिस नामक जर्नल में 2008 में प्रकाशित शोध रिपोर्ट के अनुसार कद्दू के बीजों से प्राप्त तेल से प्रोस्टेट वृद्धि को कम होते पाया गया है। माना जाता है कि प्रोस्टेट ग्रंथी के वृद्दि से परेशान रोगी को प्रतिदिन कम से कम 4-5 ग्राम बीजों का सेवन जरूर करना चाहिए।


रजोनिवृति और उससे जुड़ी समस्याएं: विज्ञान के प्रचलित जर्नल फाईटोथेरापी रिसर्च में सन 2008 में प्रकाशित एक क्लिनिकल रिपोर्ट के अनुसार जिन महिलाओं को कद्दू के बीजों के तेल (2 मिली) का सेवन 12 हप्तों तक कराया गया उनमें रजोनिवृति पर होने वाली स्वास्थय समस्याओं जैसे ब्लड प्रेशर बढ़ना, HDL कोलेस्ट्राल का बढ़ना, होर्मोन की कमी होना आदि में काफी सुधार देखा गया। इसके अलावा रजोनिवृति पर हृदयविकारों और रक्त प्रवाह से जुड़ी अन्य समस्याओं में कद्दू के बीजों से प्राप्त तेल को बेहत कारगर बताया गया है।

पथरी या किडनी स्टोन: सन 1987 में अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्युट्रिशन में प्रकाशित एक शोध रपट के अनुसार जिन बच्चों की पेशाब परिक्षण सैंपल में कैल्शियम ओक्सेलेट के कण पाए गए, उनके भोजन शैली में कद्दू के बीजों को सम्मिलित कर इस समस्या को काफी हद तक कम होते देखा गया। कैल्शियम ओक्सेलेट दरअसल किडनी में पथरी का निर्माण करते हैं।

हृदय और यकृत रोग: अलसी और कद्दू के बीजों की समान मात्रा (करीब 2 ग्राम प्रत्येक) प्रतिदिन एक बार ली जाए तो माना जाता है कि यकृत की कमजोरी और हृदय की समस्याओं के निपटारे के लिए अतिकारगर होते हैं। जर्नल ऑफ फूड केमिस्ट्री एंड टोक्सिकोलोजी में प्रकाशित 2008 की एक शोध रिपोर्ट भी इस तरह के दावों को सही ठहराती है।

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रासायनिक दवाओं का दुष्प्रभाव: कद्दू के बीजों से प्राप्त प्रोटीन कई खतरनाक दवाओं के साईड इफेक्ट को कम करने में मददगार होता है। देखा गया है कि एसिटामिनोफेन जैसी दवाओं के सेवन का बुरा असर सीधे यकृत पर होता है, इस दवा के सेवन किए जाने के बाद कद्दू के बीजों या तेल की कुछ मात्रा के सेवन से दवा के बुरे असर को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसके अलावा कार्बन टेट्राक्लोरायड की वजह से यकृत में होनी वाली हानि को कम करने के लिए भी ये अत्यंत कारगर है।

जोड़ दर्द या आर्थरायटिस: सन 1995 में जर्नल ऑफ फार्मेकोलोजिकल रिसर्च की एक शोध रपट के अनुसार ड्रग इंडोमेथासिन, जो आर्थरायटिस के रोगियों को दी जाती है, के समतुल्य कद्दू के बीजों से प्राप्त तेल का असर होता है, और तो और कृत्रिम ड्रग की तरह इन बीजों का मानव कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है।

उच्च रक्तचाप या हाईपरटेंशन: कद्दू के बीजों में प्रचुर मात्रा में एंटीओक्सीडेंट्स पाए जाते हैं जो उच्च रक्तचाप को कम करने में बेहद कारगर साबित हुए हैं। जिन्हें उच्च रक्तचाप की समस्या हो उन्हें कद्दू के बीजों को अपनी आहार शैली का हिस्सा जरूर बनाना चाहिये।

पेट के कीड़े: आधुनिक शोधों से प्राप्त जानकारियों पर यकीन किया जाए तो समझ आता है कि इन बीजों को चबाए जाने और निगलने से पेट और छोटी आंत के परजीवियों का नाश हो जाता है और आदिवासी अंचलों में भी यही मान्यता है कि पेट के कीड़ों को मार गिराने के लिए कद्दू के बीज बेहद असरकारक होते हैं।

अनिद्रा, चिंता और तनाव (डिप्रेशन): कद्दू के एक ग्राम बीजों में करीब 22 मिलीग्राम ट्रिप्टोफान प्रोटीन पाया जाता है जिसे नींद का कारक भी माना जाता है। कनाडिअन जर्नल ऑफ फिजिओलोजी में सन 2007 में प्रकाशित एक शोध के परिणामों पर गौर करा जाए तो जानकारी मिलती है कि ग्लुकोज़ के साथ कद्दू के बीजों का सेवन करने वाले अनिद्रा से ग्रस्त रोगियों को आमतौर पर साधारण दिनों की तुलना में बेहतर नींद आती है। ग्रामीण इलाकों में जी मचलना, थकान होना या चिंतित व्यक्ति को कद्दू के बीजों को शक्कर के साथ मिलाकर खिलाया जाता है।

साभार: इटरनेट

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हाथ- पैरों में जलन: हाथ पैरों में जलन होने पर कद्दू के बीजों को पीसकर इसका लेप जलन वाले हिस्सों पर करें, तुरंत राहत मिलती है। आदिवासियों का मानना है कि लेप के सूख जाने के बाद हाथ पैर या जलन वाले अंग को नमक के घोल से धो लिया जाए, और भी तेजी से आराम मिलता है।

घावों का होना: शरीर के जिन हिस्सों पर घाव पक चुके हैं या किसी तरह से संक्रमित हो चुके हैं, उन जगहों पर सूखे बीजों का चूर्ण या ताजा बीजों को कुचलकर प्राप्त रस को लगा देने से आराम मिल जाता है।

दांतों की समस्याएं: 2 ग्राम लहसून की कच्ची कलियां और करीब 6 ग्राम कद्दू के सूखे बीज लिए जाएं और इन्हें एक कप पानी में उबाला जाए और छानकर ठंडा होने पर इससे कुल्ला किया जाए। माना जाता है कि ऐसा करने से दांतों का दर्द दूर हो जाता है और दांतों में किसी तरह का कोई सूक्ष्मजीवी संक्रमण हो तो वह भी समाप्त हो जाता है।

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