लखनऊ। बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं और चिकित्साकर्मियों की कमी के चलते पंजाब सरकार सीएचसी और पीएचसी में पीपीपी मॉडल अपनाना चाहती है। स्वास्थ विभाग ने एक सार्वजनिक नोटिस के माध्यम से ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और शहरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को चलाने के लिए निजी डॉक्टरों और अस्पतालों से प्रस्ताव आंमत्रित किया है। राज्य सरकार के इस फैसले का कुछ लोग विरोध भी कर रहे हैं। लोगों को कहना है कि सरकारी अस्पतालों के निजी हाथों में जाने से इलाज महंगा हो जाएगा।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रहे कम्युनिटी हेल्थ सेंटर व प्राइमरी हेल्थ सेंटर जल्द ही निजी हाथों में चले जाएंगे। पंजाब सरकार ने इन सेंटरों को पब्लिक पार्टनरशिप मोड के अंतर्गत संचालित करने का फैसला कर लिया है। यदि यह व्यवस्था लागू हो जाती है तो इन सेंटरों का संचालक लगभग प्राइवेट कंपनी के हवाले हो जाएगा। संभावना है कि लोगों को सेहत सेवाएं हासिल करने के लिए मोटी कीमत भी चुकानी पड़े।
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पंजाब के हेल्थ और फैमिली वेलफेयर डिपार्टमेंट ने इस संबंध में सर्कुलर जारी कर दिया है। हेल्थ डायरेक्टर द्वारा जारी आदेश के अनुसार चयनित होने वाली कंपनियां स्वास्थ्य केंद्रों में कर्मचारी मुहैया कराने के साथ-साथ उन्हें संचालित करेंगी और उनकी देखरेख करेंगी। मरीजों से कितनी फीस वसूलनी है यह स्वास्थ विभाग तय करेगा। व्यय और आय के बीच की कमी राज्य सरकार द्वारा वार्षिक अनुदान के माध्यम से पूरी की जाएगी।
पंजाब सरकार ने प्रदेश के ज्यादातर यूसीएचसी, सीएचसी एवं पीएचसी को पीपीपी मोड पर देने के लिए टेंडर जारी कर दिया है। जो लोग इन अस्पतालों का संचालन करना चाहते हैं उन्हें बाकायदा नीलामी देनी होगी। हालांकि सरकार ने स्पष्ट किया है कि जो डॉक्टर निजी अस्पताल संचालित कर रहे हैं केवल वही आवेदन कर सकते हैं। सरकार ने आवेदन की अंतिम तिथि 4 फरवरी निर्धारित की है।
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वहीं सरकार द्यारा स्वास्थ सेवाओं को निजी हाथों में देने की चर्चा के बाद विपक्ष ने सरकार पर हमला बोल दिया है। आम आदमी पार्टी ने कहा है शिक्षा और सेहत सेवाओं का निजीकरण बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन है।
Former minister S. @bsmajithia today said that the Congress decision to privatise rural healthcare will increase indebtedness & push more farmers into committing suicide. He said that SAD would launch an agitation to ensure this anti-people move was not put into operation. pic.twitter.com/pw3HeEVHyg
— Shiromani Akali Dal (@Akali_Dal_) January 21, 2019
शिरोमणि अकाली दल के माहसचिव विक्रम मजीठिया ने ग्रामीण हेल्थ सेवाओं के निजीकरण से कर्ज और बढ़ेगा। 426 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 90 कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर और 14 शहरी कम्यूनिटी सेंटरों को निजी हाथों में देना घातक होगा।
वहीं पंजाब के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री मोहिंद्रा ने कहा,” कांग्रेस सरकर जनहितैषी सरकार होने के नाते ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं को निजी हाथों में सौंपने का सवाह नहीं उठता है।” उन्होंने मीडिया में छपी खबरों का खंडन करके कहा कि पंजाब सरकार का सरकारी अस्पतालों को प्राइवेट हाथों में देने का कोई इरादा नहीं है।
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उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग ग्रामीण विकास एवं पंचायत विभाग में काम करते 750 रुरल् मैडीकल अफसरों (आरएमओ) को स्वास्थ्य विभाग में लाने के लिए पूरे यत्न कर रहा है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य विभाग में अब भी 373 स्पैशलिस्ट और 256 मैडीकल अफसरों की पद खाली पडें हैं और जिन्हें जल्द ही भर लिया जायेगा। उन्होंने कहा कि 190 सब -सैंटर और 239 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में हैल्थ और वैलनैस्स सैंटर खोले गए हैं।
No move to hand over rural #health centres to private players in #Punjab, says health minister #BrahmMohindra.
Photo: Brahm Mohindra. pic.twitter.com/82HtqxdA3x
— IANS Tweets (@ians_india) January 21, 2019
असल में पंजाब सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा इन स्वास्थ्य केंद्रों को पीपीपी मोड पर देकर इनकी व्यवस्थागत खामियां दूर करने की कोशिश की जा रही हैं। पीपीपी मोड में जाने के बाद इन केंद्रों में स्टाफ की नियुक्ति, रखरखाव का जिम्मा, मरीजों के उपचार की फीस भी निजी कंपनी ही वसूल करेगी। इससे एक बात साफ है कि स्वास्थ्य विभाग इन कमियों को दूर करने में असफल रहा है। विभाग को डॉक्टर नहीं मिल रहे। वहीं सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा उपकरण भी खराब पड़े हैं। सवाल यह है कि क्या सरकार अपने दम पर इन स्वास्थ्य केंद्रों का संचालन करने में असमर्थ है?
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Punjab govt handing over govt health centres to pvt sector? A govt which can’t run its schools and hospitals has no reason to continue in power. https://t.co/VQJeqtBwbM
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) January 20, 2019
पंजाब सिविल मेडिकल सर्विसेज एसोसिएशन ने इस कदम का कड़ा विरोध किया है। एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ गगनदीप सिंह ने कहा है, स्वास्थ्य केंद्रों से पल्ला झाड़कर सरकर अपनी जिम्मेवारी से हट रही है। लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना सरकार का जिम्मा है। वर्ष 2006 में पंजाब सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित डिस्पेंसरियों में डॉक्टरों की भर्ती थी। सरकार का यह प्रयोग असफल रहा। सीएचसी व पीएचसी के निजी हाथों में चले जाने के बाद सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में कॉरपोरेट सेक्टर का कब्जा हो जाएगा।”
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पीएचसी का पीपीपी मॉडल
कर्नाटक में 1997 में पीपीपी मॉडल पर राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल शुरू किया गया था। लेकिन देखा गया कि हर साल यहां इलाज कराने वालों में गरीब मरीजों की संख्या घटती चली गई है। उत्तराखंड सरकार ने भी कई सामुदायिक अस्पतालों को पीपीपी मॉडल के हवाले कर दिया था। अब वहां कई जगह पीएचसी को पीपीपी मॉडल से हटाने के लिए आंदोलन हो रहे हैं। नीति आयोग जिला अस्पतालों की जमीन और बिल्डिंग भी निजी अस्पतालों को लीज पर देने के लिए विचार कर रही है।
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एक अध्ययन के अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं के महंगे खर्च के कारण भारत में प्रतिवर्ष 4 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं। रिसर्च एजेंसी ‘अर्न्स्ट एंड यंग’ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 80 फीसदी शहरी और करीब 90 फीसदी ग्रामीण नागरिक अपने सालाना घरेलू खर्च का आधे से अधिक हिस्सा स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च कर देते हैं।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के आधार पर जहां प्रति 1,000 आबादी पर 1 डॉक्टर होना चाहिए, वहां भारत में 7,000 की आबादी पर मात्र 1 डॉक्टर है। दीगर ग्रामीण इलाकों में चिकित्सकों के काम नहीं करने की अलग समस्या है। यह भी सच है कि भारत में बड़ी तेज गति से स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण हुआ है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश में निजी अस्पतालों की संख्या 8 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 93 प्रतिशत हो गई है, वहीं स्वास्थ्य सेवाओं में निजी निवेश 75 प्रतिशत तक बढ़ गया है। इन निजी अस्पतालों का लक्ष्य मात्र मुनाफा बटोरना रह गया है। दवा निर्माता कंपनी के साथ सांठगांठ करके महंगी से महंगी व कम लाभकारी दवा देकर मरीजों से पैसे ऐंठना अब इनके लिए रोज का काम बन चुका है।
इनपुट एजेंजी