नई दिल्ली(भाषा)। गंदगी और छोटे आकार के पिंजरों में रखे गए ब्रायलर मुर्गे के मांस और मुर्गियों के अंडों के सेवन से स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। प्रदूषण संबंधी शोध संस्था नीरी और सीएसआईआर की हाल ही में जारी रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अंतर्गत प्रदूषण संबंधी शोध संस्था नीरी और सीएसआईआर की हाल ही में जारी रिपोर्ट में हुए इस खुलासे के आधार पर कानून मंत्रालय से कुक्कुट पालन के लिये नये सिरे से नियम बनाने की सिफारिश की है।
राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग शोध संस्थान (नीरी) के निदेशक डॉ. राकेश कुमार की अगुवाई वाले दल ने हरियाणा स्थित देश के सात बडे कुक्कुट फार्म में पर्यावरण संबंधी हालात का अध्ययन किया। अध्ययन रिपोर्ट के अुनसार छोटे आकार के पिंजरों में रखे गये मुर्गे मुर्गियां भीषण गंदगी से फैलने वाले संक्रमण के शिकार होने के कारण इसका असर इनके अंडे और मांस में भी पाया गया है। वहीं, बड़े आकार वाले कुक्कुट फार्म में खुले में रखे गए मुर्गे मुर्गियां इस प्रकार के संक्रमण से बचे हैं।
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रिपोर्ट में छोटे पिंजरों की गंदगी के अलावा अंडे और मुर्गों को बाजार तक ले जाने के अमानवीय तरीके को भी इस समस्या का दूसरा प्रमुख कारण बताया गया है। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और सीरी की इस रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुये गृह मंत्रालय ने कानून मंत्रालय से कुक्कुट पालन संबंधी नियमों की समीक्षा कर अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक नए नियम बनाने को कहा है।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को लिखे पत्र में कुक्कुट पालन उद्योग में पक्षियों को भयंकर गन्दगी और दयनीय हालत में रखे जाने का हवाला देते हुये नियम बनाने का अनुरोध किया है। पत्र में रिजीजू ने इस साल तीन जुलाई को पेश विधि आयोग की 269वीं रिपोर्ट का भी जिक्र किया है। रिपोर्ट में आयोग ने कुक्कुट फार्म में विकसित किये जाने वाले ब्रायलर मुर्गे मुर्गियों के पालन, रखरखाव और मंडियों तक भेजने के दर्दनाक तरीकों का जिक्र करते हुये सरकार से व्यवस्थित नियम बनाने की सिफारिश की है। इस बारे में कानून मंत्रालय की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी।
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वहीं कुक्कुट पालन से जुडे विशेषज्ञ डॉ. संतोष मित्तल ने नीरी की रिपोर्ट में उजागर हुए तथ्यों को कुक्कुट पालन केंद्रों की जमीनी हकीकत बताया। डॉ. मित्तल ने बताया कि कुक्कुट पालन में पिंजरे के इस्तेमाल की अवधारणा यूरोप से ली गई है, जहां छोटे कुक्कुट पालन केंद्र होते है। जबकि भारत में अब काफी बड़ै पैमाने पर हजारों की संख्या में पक्षी रखे जाने वाले कुक्कुट पालन केंद्र कार्यरत हैँ, इसलिए भारत में कम से कम सौ से अधिक पक्षी वाले कुक्कुट फार्म में पिंजरे का इस्तेमाल न तो सुरक्षित है ना ही व्यहारिक है।
उन्होंने सरकार से इस दिशा में जल्द स्पष्ट कानून बनाने की अपील की जिससे पक्षियों और मनुष्यों की सेहत को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके। नीरी के वैज्ञानिकों ने इस साल फरवरी से मई तक करनाल और सोनीपत के तीन तीन तथा गुरग्राम के एक कुक्कुट फार्म का जायजा लिया। इनमें से सिर्फ गुरग्राम स्थित 24 एकड़ क्षेत्रफल में बने कुक्कुट फार्म में पक्षियों को बर्ड नेट और बडे पिंजरों में रखा गया है। शेष छह फार्म में बेहद छोटे पिंजरों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
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इसके अलावा पिंजरों में बंद पक्षियों के भोजन पानी में मल-मूत्र का मिलना और इससे उपजी भीषण दुर्गंध, संक्रमण की दूसरी वजह बन रहा है। यही स्थिति चूजों के पालन पोषण में भी देखी गयी है। रिपोर्ट के मुताबिक चूजों को दी जाने वाली जरुरी एंटीबायोटिक दवाओं में कमी और टीकाकरण का अभाव इनकी मृत्यु दर में 0.5 प्रतिशत का इजाफा कर रहा है।
छोटे पिंजरों में पक्षियों को भरकर बाजार भेजने के दौरान मुर्गे मुर्गियों को लगने वाली चोट पक्षियों की पीडा और संक्रमण की समस्या को चरम पर पहुंचा देती है। पक्षियों के जख्मी हालत में पाये जाने का सबूत इनके अंडों के खोल में लगे खून के धब्बों से भी मिलता है। इतना ही नहीं संक्रमण और जख्म से मरने वाले पक्षियों के शव को नष्ट करने में भी मानकों का पालन न होना कुक्कुट फार्म में प्रदूषण का कारण बन रहा है।
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रिपोर्ट के अनुसार संक्रमित और बीमार पक्षियों को दी जा रही एंटीबायोटिक दवाओं की अधिक मात्रा के नकारात्मक असर के खतरे की जद में कुक्कुट उत्पादों का उपभोग करने वाले भी है, खासकर तंग पिंजरों में गंदगी जनित संक्रमण के शिकार ब्रायलर चिकन और फार्म के अंडे खाने वालों में एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम होने का और संक्रमण से होने वाली बीमारियों का खतरा बताया गया है।
भारतीय मानकों के मुताबिक कुक्कुट फार्म में प्रत्येक मुर्गे के लिये कम से कम 450 वर्ग सेमी. जगह होना चाहिए। जबकि इन फार्मों में पिंजरों में बंद मुर्गे मुर्गियों मानक से पांच गुना कम जगह मिल पा रही है। नतीजतन भूसे की तरह पिंजरों में बंद पक्षी ठीक से गर्दन भी नहीं उठा पाते हैं। इससे न सिर्फ इनकी गर्दन की हड्डी टूटी पायी गयी बल्कि आपस में रगडने से पंख टूटने और इससे शरीर पर हो रहे जख्म पक्षियों में संक्रमक का कारण बन रहे हैं।