लंदन। कई सेकंड हैंड खिलौने बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं क्योंकि प्लास्टिक अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा दिशानर्दिेशों को पूरा नहीं करता है। एक नये अध्ययन में इस बात का पता चला है। ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी ऑफ प्लाईमाउथ से वैज्ञानिकों ने इस्तेमाल किये गये 200 प्लास्टिक के खिलौनों का विश्लेषण किया।
इन खिलौनों को उन्होंने घरों, नर्सरी एवं चैरिटी दुकानों से प्राप्त किया था। इन खिलौनों में कार, ट्रेन, कंस्ट्रक्शन प्रोडक्ट, आकृतियां एवं पजल्स शामिल थे। इन सभी का आकार इतना था कि उन्हें छोटे बच्चे चबा सकते हैं। इन खिलौनों में उन्हें एंटीमोनी, बेरियम, ब्रोमाइन, कैडमियम, क्रोमियम, लेड एवं सेलेनियम सहित हानिकारक तत्वों की उच्च सांद्रता मिली थी। ये तत्व बच्चों के लिए लंबे समय तक जहरीले होते हैं। आगे की जांच में यह पता चला कि कई खिलौनों ने ब्रोमाइन, कैडमियम या लेड का स्त्राव किया, जो यूरोपीयन काउंसिल्स टॉय सेफ्टी डाइरेक्टिव द्वारा तय मानकों से अधिक हैं।
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यह अध्ययन एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजीह्ण नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ। अध्ययन में अनुसंधानकर्ताओं ने प्रत्येक खिलौने में इन तत्वों की मौजूदगी का विश्लेषण करने के लिए एक्स-रे फ्लोरेसेंस (एक्सआरएफ) स्पेक्ट्रोमीट्री का इस्तेमाल किया था। यूनिवर्सिटी ऑफ प्लाईमाउथ के एंड्रयू टर्नर ने कहा “सेकंड हैंड खिलौने परिवारों के लिए लुभावना विकल्प होते हैं क्योंकि इन्हें सीधे सीधे दोस्तों या रिश्तेदारों से अथवा बेहद सस्ती दर पर और चैरिटी दुकानों, छोटी मोटी दुकानों एवं इंटरनेट से आसानी से तुरंत प्राप्त किया जा सकता है।
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खिलौना उद्योग के संगठनों के आंकड़ों के अनुसार फिलहाल भारत में खिलौना उद्योग का मौजूदा कारोबार करीब 4,500 करोड़ का है। इस सेक्टर की वृद्धि दर सालाना 15 फीसदी आंकी जा रही है। खिलौना उद्योग से जुड़ी देशभर में करीब 1,500 कंपनियां संगठित क्षेत्र में जबकि लगभग 4,000 कंपनियां असंगिठत क्षेत्र में हैं।
(भाषा से इनपुट)