भारत में ह्रदय रोगों से होनी वाली मृत्यु में 34 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। आप सोचते होंगे कि दिल की बीमारियां पिज़्ज़ा, बर्गर, कोल्ड्रिंक वाली जनरेशन को ही होती है, तो आप सरासर गलत हैं। ह्रदय रोग हमारे यहां महामारी की तरह फैल चुका है, ख़ासकर, उच्च रक्तचाप या हाई बीपी तो जैसे फैशन ही हो गया हो।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक ह्रदय रोग के लिए अनुवांशिकता एक कारक है इसीलिए कुछ विशेष क्षेत्र के लोग इसकी चपेट में ज्यादा आते हैं, जिसमें भारत प्रमुख है। लेकिन ह्रदय रोग का सबसे बड़ा कारण जो सामने आया, वह है जीवनशैली। यदि हम अपनी जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव लाएं तो अपने ह्रदय रोगी होने की संभावना को 50 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं। लेकिन आदतों के ढ़र्रे से बाहर आना हम लगभग असंभव मानते हैं, जबकि जीवनशैली में लाए गए कुछ सामान्य परिवर्तन भी हमारे शरीर को ठोस रूप से बेहतर बना सकते हैं। ऐसे ही कुछ परिवर्तन हैं:
शारीरिक सक्रियता बढ़ाएं: मनुष्य ने ज़िन्दगी जितनी आसान बनाने की कोशिश की, उसकी परेशानियां उतनी ही बढ़ गईं। हम जितने अब आलसी हैं उतने पहले कभी नहीं रहे। अब हम टीवी/मोबाइल/वीडियो/ देखते हुए सोफे/बेड पर कई घंटे बिताने लगे, पास की दुकान जाने तक के लिए बाइक या कार का प्रयोग करने लगे, नतीजा 40 की उम्र में बीपी की दवा आम बात हो गई है।
तो सबसे पहले खुद से वादा करें के जब तक कोई गंभीर दिक्कत न हो तब तक आप अपने शरीर का अधिक से अधिक प्रयोग करेंगे, लिफ्ट/स्वचालित सीढ़ियों की बजाय साधारण सीढ़ियों का प्रयोग करेंगे। जितना संभव हो पैदल चलेंगे पेट्रोल का दाम चाहे जो भी हो, सोफे पे चिपके रहने की बजाय पार्क में घूम कर आएंगे, सब्जी और परचून के सामान लेने के लिए पैदल ही निकलेंगे।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि महज़ 30 मिनट का तेज़ पैदल चलना आपको न सिर्फ स्वस्थ बनाता है बल्कि भविष्य में आपके ह्रदय रोगी होने की आशंका को भी कम करता है।
ज्यादा नमक खाने की आदत है बुरी : हम भारतीयों को खाने की मेज़ पर नमक की डिब्बी सजाना बहुत पसंद है साथ ही हर चीज़ में ऊपर से नमक छिड़कने का भी। यह आदत भारत के मानव संसाधन को काफी क्षति पहुंचा रही है क्यूंकि हम उम्र से पहले ही बूढ़े हो रहे हैं।
सबसे पहले ऊपर से नमक छिड़कने की आदत आज से ही छोड़िए, नमक की डिब्बी खाने की मेज़ पे न रखें। जी हां ये छोटी-छोटी बातें ही बड़े परिवर्तन लाती हैं।
सिर्फ 7 दिन में आपको कम नमक खाने की आदत पड़ सकती है, मतलब आपको कम नमक का खाना बेस्वाद नहीं लगेगा। सोच कर देखिए सिर्फ 7 दिन का संघर्ष, उम्र भर के हॉस्पिटल और दवाइयों कि लड़ाई से कितना आसान है।
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डिब्बाबंद और पैकेटबंद खाने की अधिकता से बचें: डिब्बाबंद और पैकेटबंद खाद्य पदार्थों जैसे आचार, पापड़, सॉस, बिस्कुट, चिप्स, बेकरी पदार्थ, पैक्ड सूप, डब्बा बन्द भोजन आदि में प्रिजरवेटिव के रूप में सोडियम की मात्रा आवश्कता से कहीं अधिक होती है। नियमित रूप से इनका प्रयोग दिल के लिए हानिकारक है। इनसे परहेज रखने के लिए बीपी रोगी बनने का इंतज़ार न करें।
स्थानीय और प्राकृतिक भोजन ज्यादा बेहतर: भोजन को जितना हो सके प्राकृतिक और स्थानीय बनाएं। बाजार में दिखाए जाने वाले विज्ञापनों के बहकावे में न आएं। कम वसा वाला दूध, दही, चीज़ एक ढकोसला है, विश्व भर के शोध ये बताते हैं के लो फैट पदार्थ का ह्रदय रोग में कोई खास फर्क नही पड़ता।
इसी तरह विदेशी फल सब्जियां भी मार्केट का शोर और जेब की डकैती भर हैं, याद रखिये जो भी चीज़ बहार से आयात होगी उसे स्थानीय वातावरण में बनाये रखने के लिए केमिकल का प्रयोग होगा, तो ब्राकली खाएं या फूल गोभी, पास के खेत की हो तो बेहतर होगी।
तेल, घी, मक्खन भी जरूरी लेकिन सही मात्रा में: वसा एक पोषक तत्व है, हमारे शरीर की आवश्यकता है लेकिन इसका ज़रूरत से ज्यादा प्रयोग हमें न सिर्फ मोटापा देता है बल्कि लीवर और ह्रदय रोग भी। रिफाइंड तेल से बेहतर आपके क्षेत्र का फ़िल्टर किया हुआ तेल होता है। कुछ लोग ये मानते हैं के अगर ओलिव ऑयल खा रहे हैं तो कितना भी खा सकते या फिर सिर्फ ओलिव आयल ही खाना सही होता है, इसी चक्कर में वो अपना महीने भर का बजट तक बिगाड़ लेते हैं। ध्यान रहे तेल चाहे जो भी हो, होता वसा का ही रूप है, इसलिए निर्धारित मात्रा में ही प्रयोग होना चाहिए और तेल जितना अधिक रिफाइंड होगा उतना कम पौष्टिक होगा।
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मछली और अखरोट बचाते हैं रोगों से: ह्रदय रोग पर वर्ष 2016 में जारी यूरोपियन दिशा निर्देशों में, मछली सेवन को ह्रदय रोग निवारण नीति का हिस्सा बनाया गया है। कई शोधों में पाया गया कि जो समुदाय हर रोज ताजी मछली खाते हैं उनमें ह्रदय रोग न के बराबर होते हैं। यदि आपके आस-पास ताज़ी मछ्ली मिलती है और आप मांसाहारी हैं तो इसे अपने आहार का हिस्सा बनाएं। शाकाहारी व्यक्ति अलसी, अखरोट से काम चला सकते हैं। कुछ ही समय पहले प्रकाशित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट बताती है कि बाज़ार में मिलने वाले ओमेगा 3 कैप्सूल और फिश ऑयल के कोई लाभ नही हैं इसलिए इन्हें खरीद कर अपनी जेब न कटाएं।
एक बात जो सबसे ज्यादा याद रखने वाली है वह यह कि दिल का ख्याल जितनी युवा अवस्था में रखना शुरू करेंगे परिणाम उतने ही आश्चर्यजनक होंगे और जिस तरह मशीन प्रयोग न करने पर वह जाम हो जाती है उसी तरह शरीर भी, बिना स्वास्थ्य के मॉडर्न और स्मार्ट बनने से शायद ही कोई फायदा हो आपको।
(तनु श्री सिंह पोषण विज्ञान में यूजीसी की सीनियर रिसर्च फ़ेलोशिप द्वारा डॉक्टरेट हैं और पिछले 6 वर्षों से विभिन्न वर्गों की डाइट काउंसलिंग से जुड़ी हुई हैं)