हिन्दुस्तान के मौसम और जलवायु के भी अपने अलग-अलग अंदाज हैं। कभी कहीं घनघोर बारिश होती है, तो कहीं आसमान से बर्फ गिरती रहती है। एक तरफ समंदर है, तो दूसरी तरफ रेगिस्तान भी। मौसम के बदलते मिजाज की वजह से अक्सर लोग परेशान हो जाते हैं, कहीं ठंड से ठिठुरकर मौत गले लग जाती है तो कभी सूरज की तपिश राह चलते लोगों को उसी जगह पर गिरने पर मजबूर कर देती है। हम शहरी लोग ना जाने क्यों इसे मौसम की मार समझते हैं, जबकि ये तो मौसम के अपने ही अंदाज हैं, और यदि ये मौसम की मार है तो कसूरवार भी हम लोग ही हैं।
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हर आदमी छाँव में अपनी कार को पार्क तो करना चाहता है लेकिन मजाल है कि वो एक पौधे का रोपण करने की इच्छा रखता हो। आमतौर पर तबियत बिगाड़ते शहरी लोगों के पास सिवाय चिकित्सकों के दरवाजों को खटखटाने के कोई और उपाय नहीं है, दूसरी तरफ, सुदूर ग्रामीण अंचलों में लोग अपने आस-पास के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर मौसम के अलग-अलग रंगों में भी हंसते हुए जी लेते हैं।
फिलहाल हम गर्मी की बात करते हैं, गर्मी की तपिश जोरों पर है और चारों तरफ गर्मी की मार पड़ रही है, ऐसे में जरूरत है कुछ सावधानियों की और कुछ देसी उपायों को अपनाने की, जिनकी मदद से आप अपने शरीर को चुस्त और दुरुस्त बनाए रख सकते हैं।
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आमतौर पर गर्मियों की मार से लू लगना, बुखार आना, पेशाब में जलन होना, दस्त, उल्टियाँ होना और नाक से खून निकलना जैसी समस्याएं आम होती हैं। हम मौसम को कोसते फिरते हैं लेकिन जाने अनजाने में हम भूल जाते हैं कि मौसम के भारी परिवर्तन या मौसम की मार आखिर किन वजहों हो रही है?
तेज गर्मियों की मार पड़ने से बच्चों को अक्सर नाक से खून आने की शिकायतें होती है। डाँग- गुजरात में आदिवासी लाल भाजी की जड़ों को कुचलकर रस निकालते हैं और इसकी दो-दो बूँद नाक में टपकाने की सलाह देते हैं। ऐसा तीन दिन तक लगातार दिन में दो बार किया जाए तो आराम मिल जाता है। वैसे इसी फार्मूले का इस्तेमाल नकसीर की समस्या के समाधान के लिए भी किया जाता है।
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पातालकोट (मध्य प्रदेश) के अनेक हिस्सों में ग्रामीण लोग धनिया की ताजी पत्तियों का रस तैयार करते हैं, इसमें कुछ मात्रा कर्पूर की मिला दी जाती है और इस मिश्रण की 2-2 बूँदें नाक के दोनों छिद्रों में दिन में दो से तीन बार टपकाई जाती है। बचे हुए मिश्रण को ललाट पर लगा दिया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से नाक से खून का रिसना बंद हो जाता है और गर्मी की मार भी कम हो जाती है।
लू लगना
आदिवासी कमरख नामक फल के रस को तैयार करते हैं और स्वादानुसार शक्कर के साथ मिलाकर लू की चपेट में आए व्यक्ति को दिन में कम से कम 2 बार अवश्य पिलाते हैं। करौंदा का जूस भी लू के थपेड़ों से राहत दिलाने के लिए बेहतर माना जाता है। करौंदा का जूस लगभग 250 मिली तैयार किया जाए, इसमें शक्कर और इलायची भी डाल दी जाए और लू से ग्रस्त रोगी को दिन में कम से कम 3 बार दिया जाए, लू का असर कम हो जाता है।
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डाँग में आदिवासी बथुआ की भाजी को पीसकर लेप तैयार करते हैं और सलाह देते हैं कि पैर के तालुओं और हथेली पर लगाने से लू में काफी तेजी से आराम मिलता है।
मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में आदिवासी टमाटर के फलों को लू के उपचार के लिए उत्तम मानते हैं। टमाटर के फलों को काट लिया जाए और नमक व शक्कर मिलाकर उबाला जाए और जब यह ठंडा हो जाए तो लू से ग्रस्त व्यक्ति को प्रतिदिन कम से कम 2 बार दिया जाना चाहिए। वैसे भोजन के बाद 100 ग्राम जामुन फल का सेवन भी गर्मियों से जुड़े कई विकारों में बहुत फायदेमंद साबित होता है।
मध्य प्रदेश के बालाघाट और मंडला जिले के आदिवासी गर्मियों में घर से निकलने से पहले तेंदु के पके फलों को खाते हैं ताकि गर्मी के प्रकोप से इनकी सेहत को कोई नुकसान ना हो। यहाँ लू लग जाने पर हाथ, पैर और तालुओं में कच्चे प्याज के रस को लगाया जाता है, माना जाता है कि ऐसा करने से लू में तुरंत आराम मिल जाता है।
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गर्मियों का बुखार
डाँग गुजरात के आदिवासियों के अनुसार लू लगने पर अक्सर तेजी से बुखार भी आ जाता है। कच्चे नारियल का पानी लू, बुखार और कमजोरी आने पर पिलाया जाना चाहिए। प्रतिदिन सुबह शाम तीन दिनों तक कच्चे नारियल का पानी पीने से राहत मिल जाती है।
बेल के फलों का जूस लू और लू के बाद आए बुखार के नियंत्रण के लिए भी अति कारगर माना जाता है। बेल का जूस तैयार किया जाता है और इसमें शक्कर और इलायची मिलाकर रोगी को दिया जाए तो असरकारक होता है।
कमजोरी और थकान
केवकंद वनों में पाए जाने वाली ऐसी वनस्पति है जिसे ताकत और ऊर्जा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। केवकंद के कंदों को सुखा लिया जाता है और इसका चूर्ण बनाकर इसमें धनिया के बीजों का चूर्ण और शक्कर मिलाकर फाँकी लेनी की सलाह दी जाती है, माना जाता है कि ये चूर्ण पेट में ठंडक लाता है और लू की चपेट में आए व्यक्ति को थकान और कमजोरी से अतिशीघ्र राहत दिलाता है।
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गर्मियों के पके पपीते को खाना हितकर माना जाता है, इसके जूस को पीने से शरीर में ताजगी और स्फूर्ति बनी रहती है और चिलचिलाती गर्मी में भी यह शरीर के तापमान को नियंत्रित किए रहता है।
पातालकोट के बुजुर्ग आदिवासियों के अनुसार कटहल के पके हुए फलों को खाने से शरीर को ताजगी मिलती है और यह गर्मियों में लू के दुष्प्रभावों को नियंत्रित करने में बेहद कारगर होता है। पके हुए कटहल के गूदे को अच्छी तरह से मैश करके पानी में उबाला जाए और इस मिश्रण को ठंड़ा कर एक गिलास पीने से जबरदस्त स्फ़ूर्ति आती है, वास्तव में यह एक टॉनिक की तरह कार्य करता है। आधुनिक विज्ञान भी इस तथ्य की पैरवी करता है।
दस्त और उल्टियाँ
आँवलों को उबाल लिया जाए और अच्छी तरह से मैश किया जाए, मैश करते वक्त इसके बीजों को अलग कर लिया जाए। मैश करने के बाद आवलों में शक्कर और शहद मिलाया जाए और अच्छी तरह से फेंट लिया जाए और रेफ़्रिजरेट कर लिया जाए। इस मिश्रण की लगभग 5 ग्राम मात्रा दिन में कम से कम 5-6 बार देने से गर्मियों की मार से होने वाली दस्त, उल्टी और बुखार में तेजी से फायदा होता है।
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पेट की जलन
शहतूत के फलों को पीसकर रस तैयार किया जाए और प्रतिदिन दिन में दो बार दिया जाए, तीन दिनों के भीतर बुखार, लू की समस्या और पेट की जलन जैसी शिकायतें दूर हो जाती है। शहतूत और बेल का रस भी पेट की जलन को शांत करता है। बेल के रस में कच्चा जीरा का चूर्ण मिलाकर सेवन किया जाए तो पेट की जलन, एसिडिटी जैसी समस्या से निजात मिल जाती है।
पेशाब में जलन
गर्मियों में अक्सर होने वाली पेशाब की जलन में तेंदु के पके फलों का रस बेहद फायदा करता है। डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार ठंडे दूध का सेवन और समय-समय पर नारियल का पानी देने से रोगी को आराम मिल जाता है।
नींबू का रस, शक्कर और चुटकी भर नमक मिलाकर पीने से पेशाब की जलन में आराम मिलता है। मध्य प्रदेश में आदिवासी हर्बल जानकार नाभि पर चूना लेपित कर देते हैं और रोगी को ज्यादा से ज्यादा पानी पीने की सलाह देते हैं।
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हाथ- पैर में जलन
हाथ-पैर, तालुओं और शरीर में अक्सर जलन की शिकायत रहती हो, उन्हें कच्चे बेल फल के गूदे को नारियल तेल में एक सप्ताह तक डुबोए रखने के बाद, इस तेल से प्रतिदिन स्नान से पूर्व मालिश करनी चाहिये, जलन छूमंतर हो जाएगी।
कच्चे आलू को कुचलकर हथेली और तालुओं पर लगाया जाए तो ठंडक मिलती है और हाथ-पैर में जलन कम हो जाती है। प्याज के रस और मक्खन का मिश्रण भी इस जलन में राहत दिलाने का काम करता है। पातालकोट में आदिवासी गाय के घी को हाथ पैर में लगाने की सलाह देते हैं।
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गर्मी की मार कम करते कुछ पारंपरिक पेय
कच्चे आम का पन्हा (आम रस) लू और गर्मियों के थपेड़ों से बचने का एक कारगर देसी फार्मूला है। कच्चे आम को पानी में उबाला जाता है और इसे मैश करके इसमें पुदिना रस, जीरा, काली मिर्च, चुटकी भर नमक और स्वादानुसार शक्कर मिलाकर रेफ़्रिजरेट किया जाता है। एक गिलास रस का सेवन करने से लू की समस्या में राहत मिल जाती है और ये पारंपरिक पेय स्वाद में भी अव्वल होता है।
महाराष्ट्र के मेलघाट वनांचल में बसे कोरकु जनजाति के लोग घुरिया नामक एक पारंपरिक पेय तैयार करते हैं। यह एक ऐसा हर्बल पेय है जिसमें आम, पुदीना, नींबू, अदरक और धनिया जैसी सामान्य वनस्पतियों को प्रयोग में लाया जाता है। आदिवासियों के अनुसार इस पेय का एक गिलास दोपहर खाने के बाद पीने से लू लगने पर अति शीघ्र आराम दिलाता है।
ताजे पके बेल के फल का लगभग 250 ग्राम गूदा लेकर 500 मिली पानी में अच्छी तरह से मसल लिया जाता है और इसमें 2 चम्मच नींबू रस मिला लिया जाता है और स्वादानुसार शक्कर और नमक भी डाल दिया जाता है। मध्य प्रदेश के आदिवासियों के अनुसार इस रस को यदि लू से ग्रसित रोगी सुबह या शाम एक गिलास प्रतिदिन पीये तो अति शीघ्र लू का प्रभाव खत्म हो जाता है।
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महाराष्ट्र में कोंकणी आदिवासी 4 नींबू लेकर इनसे रस निचोड़ लेते हैं, इस रस में लगभग 4 मिली अंगूर का रस भी मिला लिया जाता है। इस मिश्रण में लगभग 2 ग्राम सोंठ पावडर और 2 चम्मच शक्कर भी मिला ली जाती है और पूरी तरह से घोल लिया जाता है। बाद में इसे लगभग आधा लीटर पानी में उड़ेल दिया जाता है और अच्छी तरह से घोलकर, ठंडा-ठंडा पिलाया जाता है।