आखिर क्यों बच्चों की लंबाई तो बढ़ रही लेकिन वजन नहीं?

Malnutrition

लखनऊ। हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के जारी हुए ताजा आंकड़ों ने बाल पोषण पर एक दिलचस्प पहेली उजागर की है। इसके अनुसार, पिछले कुछ दशक से विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के तय मानकों के आधार पर पांच साल की उम्र तक पहुंचते बच्चों की लंबाई तो अच्छी बढ़ जाती है लेकिन उनके वजन में ही समान विकास नहीं दिख रहा है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य के आंकड़े 2015 से 2016 के बीच हुए सर्वे पर आधारित हैं। एक बड़े स्तर पर हुए यह सर्वे इसमें शामिल परिवारों से प्राप्त जानकारी पर कराया जाता है।

इससे पहले यह सर्वे 2005-06 में कराया गया था। 2005-06 में हुए सर्वे से प्राप्त आंकड़ों में 48 प्रतिशत बच्चों की लंबाई उनकी उम्र के हिसाब से कम पाई गई थी। हालिया सर्वे में ये आंकड़े घटकर 38.4 प्रतिशत तक पहुंच गए।

बच्चों में नियमित पोषण की कमी से सबसे पहले लंबाई बढ़ना बंद हो जाती है और लंबे समय तक उचित पोषण न लेने से वजन गिरना भी शुरू हो जाता है। थोड़े और पोषण के साथ बच्चों में लंबाई बढ़ना फिर से शुरू हो जाती है और तभी बच्चा उम्र के अनुसार आवश्यक वजन ग्रहण करना भी शुरू करता है। स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़ों से यह पता चलता है कि अब बच्चे पहले से ज्यादा भोजन ग्रहण करने लगे हैं। इसी वजह से उनमें लंबाई अपनी उम्र के अनुसार बढ़ती जा रही है।

बच्चों में नाटापन (उम्र के हिसाब से कम लंबाई) भरपूर भोजन के सेवन में कमी, अक्सर लंबे समय तक भूखे रहने को दिखाता है। बच्चों में कमजोरी और थकान इन 10 वर्षों में काफी बढ़ी है। इस वजह से बच्चों के वजन में कमी आई है और यह भुखमरी को बढ़ावा दे रही है।

2005-06 में सर्वे में शामिल लगभग 20 प्रतिशत बच्चों में कमजोरी (लंबाई के अनुसार कम वजन) पाई गई थी जबकि इनमें छह प्रतिशत से अधिक बच्चों में यह समस्या गंभीर रूप से थी। 2015-16 में कमज़ोर बच्चों और गंभीर रूप से कमजोर बच्चों का अनुपात क्रमश: 21 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत रहा। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, पांच साल से कम उम्र के बच्चों में कमजोरी होना मृत्यु दर को बढ़ा सकता है।

पीपुल्स हेल्थ मूवमेंट के एसोसिएट ग्लोबल को-ऑर्डिनेटर अमित सेनगुप्ता कहते हैं कि यह डाटा बच्चों में पोषण संकट के महत्वपूर्ण समय की तरफ संकेत करता है। बच्चों में शारीरिक रूप से कमजोरी पोषण संबंधी विकट स्थिति को दिखाता है।

जेएनयू के कम्युनिटी मेडिसिन डिपार्टमेंट के डॉ. राजीब दासगुप्ता ने भी महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा कराए गए रैपिड सर्वे ऑफ चिल्ड्रेन 2013-14 में कुछ इसी तरह के तथ्यों पर गौर किया था। वह कहते हैं, ‘जब बच्चों में नाटापन (उम्र के हिसाब से कम लंबाई) कम होता है तो इसका मतलब है कि स्थिति में कुछ हद तक सुधार हुआ है। यह दिखाता है कि बच्चों में पोषण संबंधी संकट अभी उतनी बदतर स्थिति में नहीं है।’

बच्चों में नियमित पोषण की कमी से सबसे पहले लंबाई बढ़ना बंद हो जाती है और लंबे समय तक उचित पोषण न लेने से वजन गिरना भी शुरू हो जाता है। थोड़े और पोषण के साथ बच्चों में लंबाई बढ़ना फिर से शुरू हो जाती है और तभी बच्चा उम्र के अनुसार आवश्यक वजन ग्रहण करना भी शुरू करता है। स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़ों से यह पता चलता है कि अब बच्चे पहले से ज्यादा भोजन ग्रहण करने लगे हैं। इसी वजह से उनमें लंबाई अपनी उम्र के अनुसार बढ़ती जा रही है।

चावल व गेहूं के साथ डाइट में शामिल करें अंडे फल

हाल ही में हैदराबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशियन की पूर्व डिप्टी डायरेक्टर डॉ. वीणा शत्रुगुप्ता के अनुसार, ‘अगर बच्चा पहले दो वर्षों में और शरीर के विकास से समय अच्छी तरह भोजन कर रहा है तो उनकी लंबाई में इसका असर वजन की तुलना में ज्यादा दिखता है।’

यह डाटा यह बताता है कि बच्चों में वजन बढ़ाने के लिए उनकी डाइट में गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार होना जरूरी चाहिए। इसके लिए उन्हें न सिर्फ चावल और गेहूं बल्कि दूध, अंडे, फल, ड्राइफ्रूट्स और सब्जियां भी देना चाहिए।

पिछले दिनों एकीकृत बाल विकास योजना के तहत सरकार के पूरक भोजन कार्यक्रम में स्वस्थ आहार की आवश्यक खाद्य विविधता की कमी पाई गई है। बेंगलुरू में स्वास्थ्य कार्यकर्ता सिलविया करपाकम कहती हैं कि कुल मिलाकर बच्चों को पका हुआ भोजन देना चाहिए लेकिन ज्यादातर राज्य इस मिशन के तहत पैकेज्ड फूड देते हैं जिससे बच्चो‍ं को जरूरी पोषण नहीं मिल पाता है।

अभी भी स्थिति उतनी ठीक नहीं

भले ही राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़ों में पिछले दस वर्षों में बच्चों में नाटेपन की कमी पाई गई है लेकिन फिर भी उनकी संख्या थोड़ी निराशाजनक है। श्रीलंका में पांच साल से कम 15 फीसदी बच्चे में उम्र के हिसाब से लंबाई कम है और यह संख्या भारत के आंकड़ों की आधी है।

अपनी उम्र से लंबाई कम होने की वजह से बच्चों के कॉग्निटिव फंग्शनिंग में गड़बड़ी आ जाती है और स्कूल में उनके परफॉर्मेंस में भी कमी आती है। इस वजह से शिशु मृत्यु दर में भी इजाफा होता है।

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