टीबी के डर से प्रसूताएं नहीं जा रहीं ठाकुरगंज सीएचसी

ठाकुरगंज संयुक्त अस्पताल

लखनऊ। दो साल हो गए टीबी अस्पताल का नाम बदले। इस अस्पताल का नाम बदलकर यहां पर सभी तरह का इलाज शुरू कराया गया था। दो साल में प्रचार प्रसार की कमी और टीबी नामक बीमारी का डर के कारण ठाकुरगंज संयुक्त अस्पताल में पिछले दो वर्षो में एक भी प्रसव नहीं हुआ है। ऐसा नहीं है कि अस्पताल में प्रसव की सुविधा नहीं है। दरअसल, महिलाएं टीबी अस्पताल के नाम से घबराती हैं।

तब हुआ ठाकुरगंज संयुक्त अस्पताल

ठाकुरगंज टीबी अस्पताल को लगभग दो वर्ष पूर्व तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन ने ठाकुरगंज संयुक्त अस्पताल में तब्दील किया था। इसके बाद से यहां टीबी के मरीजों के साथ अन्य मरीजों का भी इलाज किया जाने लगा। ओपीडी में मेडिसिन से लेकर, बाल रोग विशेषज्ञ, स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ से लेकर की सुविधा मिल रही है। अस्पताल में इन सब मरीजों का आना तो शुरू हो गया है, लेकिन अभी तक प्रसव और सिजेरियन केस शुरू नहीं हुए हैं।

ठाकुरगंज संयुक्त अस्पताल में बंद पड़ा लेबर रूम व महिला वार्ड होने का कारण महिलाओं में अभी भी टीबी अस्पताल के नाम का भय व्याप्त है, हालांकि हमारे यहां बोर्ड लगे हुए हैं। इसके बाद भी गर्भवती महिलाएं आने से कतराती हैं।

डॉ. आनंद बोध, सीएमएस, ठाकुरगंज हॉस्पिटल

दूसरे अस्पताल जा रही हैं गर्भवती

ठाकुरगंज संयुक्त अस्पताल लगभग साढ़े छह लाख लोगों की आबादी को कवर करता है। इतनी बड़ी आबादी में गर्भवती महिलाएं प्रसव के लिए ठाकुरगंज संयुक्त अस्पताल आने के बजाय मलिहाबाद सीएचसी, रानी लक्ष्मी बाई संयुक्त चिकित्सालय या क्वीनमेरी अस्पताल जा रही हैं। मात्र टीबी हॉस्पिटल के नाम से प्रसिद्ध होने की वजह से गर्भवती महिलाएं यहां आने से घबराती हैं।

नाम से घबराने की जरूरत नहीं

राजधानी के लगभग हर सरकारी अस्पताल में टीबी और डॉट सेंटर हैं। वहीं चिकित्सीय दृष्टि से भी ऐसी कोई गाइड लाइन नहीं है, जिसमें लिखा हो कि टीबी अस्पताल या विभाग के आस-पास कोई मातृ एवं शिशु अस्पताल या अन्य विभाग नहीं हो सकता है। केजीएमयू के उपचिकित्सा अधीक्षक और पल्मोनरी विभाग के डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि टीबी अस्पताल या विभाग के आस-पास अन्य अस्पताल या विभाग हो सकते हैं। इसमें मरीजों को किसी तरह से भी घबराने की जरूरत नहीं है, न ही इनसे संक्रमण फैलता है।

सर्जरी हुई शुरू

अस्पताल में ऑर्थोपेडिक सर्जरी और इलाज शुरू हो गया है। छोटी-मोटी सर्जरी भी शुरू कर दी गई है। मगर ओपीडी में आने वाली महिलाओं को जागरूक किया जाए तो यहां भी प्रसव शुरू हो सकते हैं।

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