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बच्चों से जुड़े ये मिथक कहीं उनकी सेहत को खतरे में न डाल दें

Newborn Baby Care

लखनऊ। बच्चों के जन्म के बाद मां की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। वो अपने बच्चे की सेहत को लेकर सर्तक रहती है। ऐसे में कई लोग तरह-तरह की सलाह देते हैं और सुरक्षा और सेहत के लिए मांए उनको मान भी लेती हैं। लेकिन ये एक समझदार मां होने के नाते यह जरूरी है कि आप विशेषज्ञ की राय के अनुसार ही चले, क्योंकि एक छोटा सा निर्णय भी बच्चे के बढ़ने की उम्र पर असर डाल सकता है।

बच्चों के जन्म के बाद उनकी परवरिश को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं जिसपर डॉक्टर की राय अलग है। इसके बारे में लखनऊ की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ रूपा शर्मा का कहना जब भी बच्चा होता है खासकर अगर पहला है तो लोग सावधान रहते हैं कई तरह के रिवाज और गलत भ्रांतियां बच्चों की सेहत पर भी असर डाल सकते हैं। जैसे दूध पिलाने को लेकर भ्रांतियां। हमारे पास कई महिलाएं आती हैं जिन्हें लगता है कि दूध पिलाने से जज्यादा जरूरी बच्चे को पहले शहद चखाना है। जबकि सारे डॉक्टर ये राय देते हैं कि जन्म के छह माह तक बच्चे को मां का दूध ही दें।

दांत आने पर बुखार का आना

हर मां को यह गलतफहमी होती है कि जब भी बच्चे को बुखार आता है, तो वह दांत आने की वजह से हो रहा होता है, लेकिन सामान्यतौर पर दांत 6 से 24 महीने के बीच निकलते हैं। यह एक ऐसा समय होता है जब बच्चों में भी संक्रमण होने की आशंका होती है, इसलिए मांओं को अनुमान लगाने के बजाय ऐसे समय में डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

कान में संक्रमण होने पर मां का दूध डालना

कई लोगों की मान्यता है कि बच्‍चे के कान में किसी भी प्रकार का संक्रमण होने पर मां का दूध डाल देने से आराम मिलता है। ऐसा कतई न करें, ब्रेस्‍ट मिल्‍क से कान में और भयानक संक्रमण हो सकता है।

शिशुओं की मालिश सुबह ही करें

कई लोगों का कहना है कि बच्चे की मालिश करने का सही समय सुबह ही है। शाम को मालिश नहीं करनी चाहिए। यह सोच गलत है। प्रतिदिन दो बार मालिश से शिशु के शरीर में अधिक स्फूर्ति व ताकत रहेगी। साथ ही उसका वजन भी बेहतर बढ़ेगा। शाम की मालिश से उसे रात की नींद अच्छी आएगी। शाम की सर्दी के समय भी तेल की परत शिशु के शरीर की गर्मी बनाए रखने में उपयोगी होगी।

मालिश का समय।

नहाते समय पानी कान में जाने से इन्फेक्शन

बच्चे को नहलाते समय पानी कान में चले जाने के कारण बच्चों में कान का इन्फेक्शन हो जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है, कान के भीतरी भाग का इन्फेक्शन नाक/गले से होकर यूस्टेशियन ट्यूब से होकर कान तक पहुंचता है, न कि कान के बाहर से अंदर की ओर। पानी द्वारा कान का संक्रमण प्रदूषित जल में तैरने के समय ही हो सकता है। बच्चों में प्राय: यह इन्फेक्शन बोतल द्वारा दूध पिलाने या लेटकर स्तनपान कराने से होता है।

काजल लगाने की परंपरा

बच्चे की आंखों में काजल लगाना देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित एक सदियों पुराना रिवाज है। कहा जाता है इससे बच्चे को बुरी नजर नहीं लगती है और आंखें बड़ी हो जाती हैं। लेकिन कई सारी शोध व विशेषज्ञों ने इस बात को गलत साबित कर दिया है। काजल से बच्चों की आंखों में पानी और खुजली की परेशानी पैदा हो सकती है। यहां तक की कई बार उनकी आंखों में भंयकर एलर्जी भी हो जाती है।

काजल लगाने की परंपरा।

बालमृत्युदर का आंकड़ा

वर्ष 2012 में मातृ मृत्यु 292 से घट कर 2013 में 285 प्रति एक लाख जीवित जन्म हो गई है और शिशु मृत्यु दर वर्ष दर 2013 में 50 से घट कर 2014 में 48 प्रति एक हज़ार जीवित जन्म हो गई है। प्रदेश में होने वाली इन मृत्युओं का मुख्य कारण नए व्यवहारों को अपनाने में समस्या, समुदाय में स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति उदासीन मानसिकता इत्यादि हैं, जबकि हम इन्हें घर पर किये जाने वाले छोटे छोटे प्रयासों द्वारा रोक सकते हैं जिनमें से कुछ अहम प्रयास निम्न हैं।

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