कई लोगों की आदत होती है कि वो चाक, कुल्हड़, नाखून जैसी चीजें खाते हैं और ये आदत सिर्फ बच्चों में नहीं बल्कि बड़ों में भी होती है। तो इसे सिर्फ आदत न समझिए बल्कि ये एक मनोबीमारी है जिसे पिका भी कहते हैं।
पिका नामक बीमारी से ग्रस्त लोगों को इसी तरह की चीज़ें खाकर संतुष्टि मिलती है। इसके बारे में मनोवैज्ञानिक डा विवेक अग्रवाल बताते हैं, इसमें मरीज वो चीजें खाता है जो खाने वाली नहीं होती है। ऐसे लोग चाक, मिट्टी, धूल, पेंसिल जैसी चीजें खाते हैं।
पिका लैटिन शब्द ‘फ़ॉर मैगपाई’ से बना है, यह एक ऐसे पक्षी का नाम है जो कुछ भी खा सकता है। पिका से वे लोग भी पीड़ित हो सकते हैं, जिनके साथ बचपन में कोई बुरा हादसा हुआ हो, जैसे-मां का प्यार न मिलना, माता-पिता का अलगाव, उपेक्षा, उत्पीड़न आदि।
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डॉ अग्रवाल ने बताया “जिन लोगों के शरीर में खनिज तत्वों की कमी होती हैं उनमें ये आदत होती है लेकिन अब इसे मनोरोग के रुप में भी देखा जा रहा है। पिका से पीड़ित व्यक्ति के केस को पूरी तरह समझने के लिए सिर्फ़ पौष्टिक तत्वों की कमी की जांच ही नहीं, बल्कि उसके मानसिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि को भी समझना ज़रूरी है।’’
लक्षण
- इस तरह के नॉन फ़ूड आइटम्स खाने से गले में अवरोध के अलावा क्रॉनिक कब्ज़ की समस्या भी हो सकती है। पिका से पीड़ित व्यक्तियों को निम्न समस्याएं हो सकती हैं।
- जब बहुत सारी नहीं पचनेवाली चीज़ों पेट में इकट्ठा होना।
- यदि व्यक्ति दूषित मिट्टी का सेवन करता है।
- अंतड़ियों में अवरूद्धता।
मनोवैज्ञानिक डॉ कविता धींगरा बताती हैं, “ पिका की पुष्टि करने के लिए कोई भी टेस्ट उपलब्ध नहीं है और अगर किसी व्यक्ति के पिका से ग्रस्त को होने की आशंका हो तो उसके परिवारवालों को ध्यान रखना चाहिए कि वो किस तरह के नॉन फ़ूड आइटम्स खाता है। यदि कोई व्यक्ति एक महीने से अधिक समय तक ऐसी चीज़ें खाता है तो वह पिकाग्रस्त कहा जा सकता है।’’
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पिका होने की एक वजह शरीर में पोषक तत्वों की कमी और कुपोषण भी होती है, इसलिए ख़ून में आयरन और ज़िंक के स्तर का पता लगाकर भी पिका का उपचार किया जा सकता है। एनीमिया का पता लगाने के लिए किए जानेवाले ब्लड टेस्ट से भी पिका के उपचार में मदद मिलती है, ये बच्चों के केस में ज़्यादा असरकारी होता है।