विश्व स्तनपान सप्ताह: शिशु के जीवन की नींव है माँ का पहला पीला दूध

विश्व स्तनपान सप्ताह हर वर्ष एक से सात जुलाई को मनाया जाता है, इसकी शुरुआत 1991 में महिलायों के बीच स्तनपान को लेकर जागरूकता फैलाने से हुई थी। हर वर्ष इसे एक नए विषय के साथ मनाया जाता है, इस वर्ष 'स्तनपान: जीवन की नींव' इस विषय के साथ मनाया जा रहा है।
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शेफाली त्रिपाठी

लखनऊ। पिछले दिनों हुए परैसो फैशन फेयर में एक मॉडल मारा मार्टिन अपने पांच महीने के बेटी को स्तनपान कराते हुए रैंप वाक कर एक अलग ही उदाहरण को दुनिया के सामने पेश किया। ऐसा ही उदाहरण कुछ साल पहले लारिसा वाटर्स ने ऑस्ट्रेलियाई संसद के कार्यवाही के दौरान अपने दो माह की बच्ची को स्तनपान के द्वारा दिया था। ये कुछ ऐसे उदाहरण है जो यह बताते हैं कि महिलाएं स्तनपान को लेकर जागरूक हो रही हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कोलेस्ट्रम यानि माँ का पहला पीला गाढ़ा दूध शिशु के लिए एक उत्तम आहार होता है। नियमित रूप से कराया गया स्तनपान शिशु को कई तरह के संक्रमण से बचाता है।

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विश्व स्तनपान सप्ताह हर वर्ष एक से सात जुलाई को मनाया जाता है, इसकी शुरुआत 1991 में महिलायों के बीच स्तनपान को लेकर जागरूकता फैलाने से हुई थी। हर वर्ष इसे एक नए विषय के साथ मनाया जाता है, इस वर्ष ‘स्तनपान: जीवन की नीव’ इस विषय के साथ मनाया जा रहा है।

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्तनपान न करने वाले शिशुओं में मौत का खतरा स्तनपान करने वाले शिशुओं की तुलना में छ: गुना ज्यादा होता है।

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की रिटायर प्रोफेसर अर्चना कुमार ने बताया, “माँ का दूध बच्चों के लिए बहुत उपयोगी होता है। शून्य से तीन माह के शिशु को हर दो से तीन घंटे पर माँ का दूध पिलाना आवश्यक होता है। हालांकि बच्चों के बढ़ने पर उन्हें स्तनपान उनके जरूरत के हिसाब से कराना चाहिए। माँ के दूध को फ्रिज में भी रखा जा सकता है, जिससे की इसे जरूरत पड़ने पर बच्चों को पिलाया जा सके।”

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किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के एंडोक्राइन सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. आनंद मिश्रा ने गाँव कनेक्शन को बताया, ”स्तनपान एक जरुरी प्रक्रिया है, माँ के शरीर में रहते हुए बच्चे को हर तरह का पोषक पदार्थ मिलता रहता है, शरीर के भीतर वह एक अगल वातावरण में रहता है ऐसे में शरीर से बाहर आने के बाद उसे इन्फेक्शन होने का खतरा होता है। माँ का दूध शिशुओं के लिए एक सम्पूर्ण आहार होता है। इसमें मौजूद एंटीबॉडीज शिशुओं को होने वाली बीमारियों से बचाते हैं। छ: महीने तक शिशुओं को केवल माँ का दूध ही देना चाहिए। शिशु के जरुरी प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट, पानी ये सारे पदार्थ उसे माँ के दूध में ही मिल जाते है, अगर कोई माँ बच्चे को अपने दूध के अलावा कुछ और देती है तो इससे बच्चे में डायरिया होने का खतरा बढ़ जाता है।”

“स्तनपान कराने से महिलायों मे स्तन कैंसर का खतरा कम हो जाता है, महिलायों के शरीर से हर महीने होने वाले हार्मोनल बदलाव के कारण उनके स्तन में भी बदलाव होते है लेकिन गर्भावस्ता के दौरान माहवारी बंद होने के कारण हार्मोनल बदलाव नहीं हो पाता है, ऐसे में अगर माँ अपने बच्चे को स्तनपान कराती है तो उनमें स्तन कैंसर का खतरा कम हो जाता है।”, डॉ आनंद ने बताया। 

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