लखनऊ। अगर आप प्लास्टिक से बनी बोतल, चाय के गिलास या फिर उसमें रखी हुई सब्जी या फलों का इस्तेमाल करते हैं तो वक्त रहते इसे बंद कर दीजिए वरना आप तो इसकी कीमत चुकाएंगे ही पर्यावरण और पशु पक्षी भी इसके बुरे प्रभाव से बच नहीं पाएंगे।
जिस प्लास्टिक बैग का हम इस्तेमाल करते हैं वो नॉन बायोडिग्रेडेबल है। एक प्लास्टिक बैग को पूरी तरह से खत्म होने में 1000 साल लगते हैं। जिसकी वजह से पर्यावरण दूषित हो रहा है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार भारत में हर रोज 24,940 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। किसी कानून को लागू करके या जुर्माना लगाकर पर्यावरण को नहीं बचाया जा सकता है। इसके लिए लोगों की आदत में आना बहुत जरूरी है कि पॉलिथीन का इस्तेमाल नहीं करना है। पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए आशीष पिछले पांच वर्षों पहले आई केयर इंडिया की शुरूआत की थी। आशीष मौर्या ने गाँव कनेक्शन को बताया कि हमारी संस्था स्कूल के बच्चों के साथ काम कर रही है क्योंकि नींव मजबूत होगी तभी बदलाव संभव है। आशीष लखनऊ के कई सरकारी स्कूलों में प्लास्टिक को खत्म करने की मुहिम चला रहे हैं।
आशीष ने बताया सरकार अगर प्लास्टिक पर बैन नहीं लगा सकती है तो पॉलिथीन के दामों को बढ़ा दे ताकि दुकानदार खरीद ही न सके। अगर दो बार दुकानदार समान नहीं देगा तो लोग खुद ब खुद कपड़े के बैग का इस्तेमाल करने लगेंगे। उत्तराखंड और सिकिक्म से हमें सीखना चाहिए।
वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम के अनुसार दुनियाभर में जितना कूड़ा सालाना समुद्र में डम्प किया जाता है उसका 60 प्रतिशत भारत डम्प करता है और भारतीय रोजाना 15000 टन प्लास्टिक कचरें में फेंक देते हैं। प्लास्टिक प्रदूषण के कारण पानी में रहने वाले करोड़ों जीव-जन्तुओं की जान जाती है, यह धरती के लिए काफी हानिकारक है।
प्लास्टिक के इस्तेमाल से शरीर में पड़ने वाले असर के बारे में लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के श्वसन विभाग और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ सूर्यकांत त्रिपाठी बताते हैं, प्लास्टिक एक सिंथेटिक मेटेरियल है, ये केमिकल से बना हुआ है। अगर आप एक घंटे से ज्यादा इसमें कोई भी चीज(सब्जी, फल, चाय, पीने का पानी) रखते हैं तो इन केमिकल से प्री रेडिकल जनेरेट होते हैं जो हमारे शरीर के टिशू लेवल(अंदरूनी भाग) पर हानि पहुंचाते हैं । उससे आगे चलकर कैंसर, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक जैसी बीमारियां होती हैं।
डॉ त्रिपाठी आगे बताते हैं, प्लास्टिक हमारे स्वास्थ्य, खेती, जल, मृदा सबको प्रदूषित करता है। इस पर पूरी तरह बैन हो जाना चाहिए। बैग की बजाय कागज या कपड़े से बने बैग का इस्तेमाल करें। पानी के बोतल का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
राष्ट्रीय रासायनिक लैबोरट्ररी, एनसीएल से प्राप्त डेटा के मुताबिक भारत में सबसे ज्यादा प्लास्टिक कचरा प्लास्टिक बोतलों से ही आता है। 2015-16 में करीब 900 किलो टन प्लास्टिक बोतल का उत्पादन हुआ था।
पॉलीथीन से बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए पॉलीथिन की थैलियों (कैरी बैग) के इस्तेमाल पर 21 जनवरी 2016 को प्रतिबंध लगा दिया गया था। पॉलीथिन का इस्तेमाल, निर्माण, स्टोर, बेचना, बाहर से मंगाना अपराध की श्रेणी में था। इसका उल्लंघन करने पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 की धारा 19 के तहत पांच साल की सजा या एक लाख रुपये जुर्माना या दोनों लगाया जाने का प्रावधान था। लेकिन सब्जी के ठेलों से लेकर बड़ी-बड़ी दुकानों तक खुलेआम पॉलीथीन का प्रयोग हो रहा है।
पॉलीथिन का इस्तेमाल पर्यावरण के लिए कितना हानिकारक है इस बारे में डॉ. भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी के एनवायरमेंटल माइक्रो बायोलॉजी विभाग के हेड नवीन अरोरा बताते हैं पॉलीथिन प्लास्टिक से बनता है, जिसे कभी भी खत्म नहीं किया जा सकता। पॉलीथिन बैग्स करीब 500 या 600 सालों में गलते हैं। कई बार तो ये एक हजार साल तक नहीं गलते। इससे बड़ा नुकसान यह होता है कि जब ये गलते हैं तो मिट्टी में कई तरह के हानिकारक रसायन छोड़ देते हैं जो बाद में नदी-नालों से होते हुए समुद्री जीव जंतुओं के लिए जानलेवा साबित होता है।
पशुओं के लिए भी खतरा
पॉलीथिन से गाय को होने वाले नुकसान के बारे में पशुचिकित्सक डॉ आनंद सिंह बताते हैं, ज्यादातर लोग पॉलीथिन में बांधकर खाने की चीजे सड़कों पर फेंक देते है। गाय को पॉलीथिन समेत खा जाती है। जब तक पॉलीथिन उनके पेट में रहती है तब तक उसको कोई नुकसान नहीं है लेकिन जब वहीं पॉलीथिन उसकी आंतों में पहुंच जाती है। उससे उसकी मौत हो जाती है। इसके लिए लोगों को जागरुक होना भी जरुरी है। राज्य पशु चिकित्सा विभाग और पशु कल्याण संगठन के मुताबिक राज्य की राजधानी लखनऊ शहर में अंदाज़न हर साल 1000 गायें पॉलीथिन खाकर मर जाती हैं। इसमें मरने वाली गायों की तादाद कहीं ज़्यादा है। पॉलीथिन खाने से कुछ समय बाद गायों के अंग काम करना बंद कर देते है।
प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए भारत सरकार कर रही प्रयास
प्लास्टिक कचरे को निपटाने के लिए भारत सरकार ने कई कदम उठाए हैं, जिसमें जैविक और अजैविक कचरे को अलग-अलग इकट्ठा करना सबसे महत्वपूर्ण है। भारत में सार्वजानिक स्थानों पर दो तरह के कूड़ापात्र रखना अनिवार्य किया गया है। भारत सरकार के साथ-साथ कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्लास्टिक प्रदूषण रोकने के लिए प्लास्टिक के बैग पर पूरी तरह पहले से ही रोक लगा रखी है। इन उपायों से प्लास्टिक कचरे से निपटने में बहुत मदद मिली है।
दिल्ली सबसे ज्यादा प्लास्टिक कचरा पैदा करने वाला शहर
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार दिल्ली सभी महानगरों में सबसे ज्यादा प्लास्टिक कचरा पैदा करने वाला शहर है। 2015 के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में 689.52 टन, चेन्नई में 429.39 टन, मुंबई में 408.27 टन, बंगलोर में 313.87 टन और हैदराबाद में 199.33 टन प्लास्टिक कचरा तैयार होता है। ये शहर देश में सबसे अधिक प्लास्टिक कचरा पैदा करते हैं।
इन बातों को हमेशा रखे ध्यान
जब भी समान लेने के लिए कपड़े के बैग को साथ ले जाएं।
अपना पानी खुद साथ लेकर निकले, प्लास्टिक बोतल न खरीदे।
प्लास्टिक के बर्तनों का प्रयोग न करें।
सड़कों पर पड़े प्लास्टिक सामान को कूड़ेदान में डालें। ताकि पशु न खाये।
घर का बचा खाना प्लास्टिक में न फेकें।
फ्रिज में प्लास्टिक बोतल की बजाय कांच की या फिर तांबे का प्रयोग करें।
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