नहीं लेते हैं पूरी नींद ? खुद को ही खाने लगेगा आपका दिमाग

वैज्ञानिकों का मानना है कि जब शरीर में इकट्ठी ऊर्जा ख़त्म होने लगती है तो शरीर थकना शुरू हो जाता है और उसे नींद की ज़रूरत होती है। सोते समय शरीर का पूरा तंत्र बहुत तेज़ी से काम करता है और आवश्यक ऊर्जा भी पैदा कर लेता है।
Sleeping Disorder

क्या आपको नींद न आने की समस्या है? अगर हां तो ये आपके दिमाग के लिए ख़तरनाक हो सकता है। ज़्यादातर चिकित्सकों का यही मानना है कि स्वस्थ शरीर के लिए कम से कम 8 घंटे की नींद बहुत ज़रूरी होती है। नींद पूरी न होने के कई बुरे प्रभाव भी शरीर पर होते हैं लेकिन हाल ही में हुए एक शोध में ये बात सामने आई है कि अगर आप पूरी नींद नहीं लेते तो आपका दिमाग खुद को ही खाना शुरू कर देता है। इससे अल्ज़ाइमर और मस्तिष्क संबंधी अन्य बीमारियां पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि जब शरीर में इकट्ठी ऊर्जा ख़त्म होने लगती है तो शरीर थकना शुरू हो जाता है और उसे नींद की ज़रूरत होती है। सोते समय शरीर का पूरा तंत्र बहुत तेज़ी से काम करता है और आवश्यक ऊर्जा भी पैदा कर लेता है। शरीर को अगले दिन फिर से सुचारू रूप से चलाने के लिए जितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती है उसे बनने में कम से कम 8 घंटे का समय लगता है। हालांकि ये समय अलग – अलग उम्र में अलग – अलग होता है लेकिन एक व्यस्क शरीर में ये औसत 8 घंटे ही माना जाता है।

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शोधकर्ताओं ने अपने शोध में पाया कि लगातार ख़राब नींद लेने से दिमाग न्यूरॉन्स और सिनैप्सिस कनेक्शन के कुछ हिस्सों को खत्म करने लगता है और अगर आप सोचते हैं कि आप बाद में अपनी नींद पूरी कर लेंगे तो इससे जो ख़राबी हो चुकी होती है, वो ठीक नहीं होती। आठ घंटे से कम नींद लेने से आपके अंदर विचारों की पुनरावृत्ति भी उसी तरह बढ़ जाती है जैसा तनाव और घबराहट के मरीज़ों में होता है जिससे एकाग्रता में कमी होती है व दूसरे कई मनोरोग हो जाते हैं।

आगरा के मनोवैज्ञानिक डॉ. सारंग धर बताते हैं, ”ये बात बिल्कुल सही है कि नींद कम लेने से इसका सबसे बुरा असर दिमाग पर ही पड़ता है और उससे कई दूसरी बीमारियां जैसे अल्ज़ाइमर, तनाव, अवसाद, मोटापा जन्म लेती हैं। इसलिए ये ज़रूरी है कि आठ घंटे की नींद ली जाए। कोशिश करनी चाहिए कि रात में 11 बजे से पहले ही सो जाएं।”

इटली के मार्के पोलीटेक्नीक विश्वविद्यालय में अनुसंधानकर्ताओं ने चूहों के दो समूहों को विशेष परिस्थितियों में रखकर उनके मस्तिष्क का अध्ययन किया। चूहों के एक समूह को उनकी इच्छा के अनुसार जब तक चाहे सोने दिया गया और दूसरे समूह को पांच दिन तक लगातार जगाकर रखा गया।

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उन्होंने अध्ययन में पाया कि अच्छी नींद लेने वाले चूहों के मस्तिष्क के साइनैप्स (synapse) में एस्ट्रोसाइट (astrocytes) करीब छह फीसदी और एस्ट्रोसाइट करीब आठ फीसदी सक्रिय पाए गए। वहीं बिल्कुल नहीं सोने वाले चूहों में यह स्तर 13.5 प्रतिशत रहा। एस्ट्रोसाइट मस्तिष्क में अनावश्यक अंतर्ग्रंथियों यानि सिनेप्सिस को अलग करने का काम करता है। मार्के पोलीटेक्नीक विश्वविद्यालय की मिशेल बेलेसी ने कहा, हमने पहली बार दिखाया है कि नींद की कमी के चलते एस्ट्रोसाइट वास्तव में साइनैप्सेज़ के हिस्सों को खाने लगते हैं।

उन्होंने कहा, कम अवधि में इस प्रक्रिया से निश्चित रूप से लाभ मिल सकता है, लेकिन लम्बी अवधि में यह आदत अल्ज़ाइमर और अन्य मस्तिष्क विकारों के खतरे को बढ़ा देती है। इस अध्ययन को ‘न्यू साइंटिस्ट’ जर्नल में प्रकाशित किया गया था। हाल ही में इसका वीडियो फेसबुक पेज – साइंस नेचर पेज पर अपलोड किया गया है।

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