शारदा नदी ने किया अपनों से दूर

vineet bajpaivineet bajpai   19 Nov 2015 5:30 AM GMT

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शारदा नदी ने किया अपनों से दूरगाँव कनेक्शन

अन्धपुर (सीतापुर)। अन्धपुर गाँव शारदा नदी के एक तरफ लखीमपुर जि़ले की सीमा में बसा है, जबकि उनकी जि़न्दगी के सुख-दु:ख से वास्ता रखने वाले लोग और खेत-खलिहान नदी की दूसरी तरफ सीतापुर जि़ले से जुड़े हैं। कुछ साल पहले तक उनके अपने साथ में रहते थे, मगर शारदा की हिलोरें लेती लहरों ने इनके अपनों के साथ ही बस्तियों को भी जुदा कर दिया। ये लोग अब रहते तो लखीमपुर जि़ले में हैं लेकिन इनकी दिनचर्या शुरू होती है, शारदा नदी की दूसरी तरफ सीतापुर जि़ले से।

सीतापुर से करीब 75 किमी दूर रेउसा ब्लॉक के काशीपुर ब्लॉक का अन्धपुर गाँव वर्ष 1984-85 में नदी की कटान की वजह से कट कर लखीमपुर खीरी जि़ले के क्षेत्र में पहुंच गया था। तब से लेकर कर अब तक ये शारदा नदी अन्धपुर गाँव के विकास के लिये एक बाधा बनी हुयी है। अन्धपुर के आसपास के गाँव असईपुर और मूसेपुर भी नदी की कटान में कट गये थे।

अन्धपुर गाँव के मुरली यादव (60 वर्ष) बताते हैं, ''इतने साल हम लोगों को यहां रहते हुए हो गये हैं, लेकिन अभी तक यहां काम कुछ भी नहीं हुआ है। न तो गाँव की गलियों में खड़ंजा लगा है, न ही नालियां बनी हैं और न ही किसी को कॉलोनी मिली हैं।" करीब 500 लोगों की आबादी वाले इस पूरे गाँव में सारे घर झोपड़ी के बने हुये हैं। वो बताते हैं, ''हमारे यहां इस लिये कोई काम अभी तक नहीं हुआ क्योंकि अगर कोई जांच करने आता भी होगा तो वो नदी पार करके इस तरफ देखने आता ही नहीं हैं। इसलिए अभी तक यहां कोई काम नहीं हुआ है। हम लोगों को इतने साल यहां रहते हुए हो गये हैं अब तक कोई भी हमारी समस्या जानने नहीं आया। आप पहले हैं जो हमारी समस्याओं के बारे में जानने आए हैं।"

गाँव को नदी की दूसरी तरफ कट कर बसे करीब 30 साल हो गये है, उसके बावज़ूद उस गाँव  में अभी तक जरा सा भी काम नहीं हुआ है। पूरे गाँव में सरकार द्वारा कराए गए काम के तौर पर अब तक सिर्फ चार काम हुये हैं। पहला उस गाँव में तीन सरकारी नल लगे हैं, दूसरा गाँव के बाहर दो पुलिया बनाई गयी हैंं, तीसरा करीब पांच वर्ष पहले बिज़ली के खम्भे लगाए गये थे जिनमें अभी तक तार भी नहीं खींचे गये हैं और चौथा उस गाँव में एक प्राथमिक विद्यालय है, जिसके दो कमरों का इस्तेमाल गाँव के लोग जानवर बांधने में करते हैं। क्योंकि शिक्षक नदी की दूसरी तरफ के हैं, जो कभी-कभी ही स्कूल आते हैं।

उसी गाँव के भग्गू राजपूत (65 वर्ष) कहते हैं, ''हमारे खेत उधर ही हैं। इस लिये खेत में जब फसल होती है तो मचान बनाकर रात में वहीं रुक कर खेत की देखरेख करता हूं। नहीं तो नीलगाएं या फिर जानवर फसल को चर जाते हैं।"

अपनी ग्राम पंचायत के प्रधान के प्रति नाराजगी जताते हुए असईपुर ग्रामपंचायत के मूसेपुर गाँव के शिवभगवान (70 वर्ष) बताते हैं, ''मन तो नहीं करता किसी को वोट देने का, लेकिन फिर भी मजबूरी में वोट देते हैं क्योंकि हमारे वोट देने य ना देने से कोई फर्क तो पड़ेगा नहीं। कोई न कोई तो जीतेगा ही।" वो बताते हैं, ''इतने वर्षों में जितने भी प्रधान हुए हैं क्या उनको नहीं पता है कि यहां की हालत क्या है? लेकिन फिर भी किसी ने भी इधर ध्यान नहीं दिया।"

 

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