शौक़ पूरे करने के लिए छात्र बन रहे अपराधी

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शौक़ पूरे करने के लिए छात्र बन रहे अपराधीgaonconnection

लखनऊ। बुधवार की रात लखनऊ के पॉश इलाके गोमती नगर में अंबेडकर पार्क के सामने कुछ लोगों ने एक आईस्क्रीम वाले को तमंचा दिखाकर लूट लिया। इस घटना में वहां मौजूद लोगों ने लूटेरों में से एक को दबोच लिया।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार तथाकथित रूप से दबोचा गया लूटेरा एक इंजीनियरिंग का छात्र था और पकड़े जाते ही करियर खराब होने के डर से जाने देने के लिए गिड़गिड़ाने लगा। सूचना मिलने पर पहुंची पुलिस उसे अपने साथ ले गई। अगले दिन पुलिस से पूछे जाने पर उसने ऐसी किसी भी घटना की आधिकारिक पुष्टि नहीं की। हालांकि गाँव कनेक्शन के पास घटना की तस्वीरें मौजूद हैं। 

यह लखनऊ शहर का ऐसा पहला वाकया नहीं है। शहर में अपराध का एक नया चलन सामने आ रहा है। बाहरी क्षेत्रों से यहां पढ़ने आए छात्र-छात्राएं शहरी चकाचौंध से उपजे शौकों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त पैसों के जुगाड़ में अपराध का सहारा ले रहे हैं।

इसी सप्ताह सोमवार को विभूतिखंड पुलिस ने दो छात्राओं और एक छात्र को चोरी के आरोप में गिरफ्तार किया, जबकि एक छात्र फरार है। गिरफ्तार आरोपी छात्राओं में मीनाक्षी पन्त, लखनऊ यूनिवर्सिटी में एमबीए की छात्रा है, उसके पिता एचसीसीएल छत्तीसगढ़ में एकाउंटेंट हैं। दूसरी आरोपी अंशिका ठाकुर, सेठ विशम्बरनाथ कॉलेज में बीबीए अंतिम सेमेस्टर की छात्रा हैं, उसके पिता की मौत हो चुकी है। अंशिका का भाई हरदोई जिले में ग्राम प्रधान है।  

जबकि तीसरा आरोपी छात्र श्रीधर, बाबू बनारसीदास कॉलेज का बीडीएस का थर्ड ईयर का छात्र है। उसके पिता केकेसी से रिटायर्ड लेक्चरार रहे हैं। चोरी के इस मामले में फरार शांतनु भी एमबीए का छात्र है। मीनाक्षी के पिता हर महीने उसे 25,000 रुपए भेजते हैं। वहीं, अंशिका का भाई उसे हर महीने 10,000 रुपए भेजता था। मिलती-जुलती आर्थिक स्थिति दोनों लड़कों की भी है। पुलिस के अनुसार इसके बाद भी ये युवा अपने शौक पूरे करने के लिए अक्सर चोरी किया करते थे।

इस तरह के मामलों के बारे में लखनऊ के डीआईजी आरकेएस राठौर ने कहा, “शिक्षा प्राप्त करने के लिये छात्र बड़े शहर आते हैं जो शहर की चकाचौंध और यहां के रहन-सहन को देखकर उसमें ढलने का प्रयास करने लगते हैं। लेकिन घर से अधिक रुपये नहीं मिलने के कारण और खर्च अधिक होने के कारण वह अपराध करने लगते हैं”। लखनऊ शहर के पूर्व एसएसपी राजेश पाण्डेय को भी अपने कार्यकाल में ऐसी कई घटनाओं का सामना करना पड़ा था। हलांकि वे एक पुलिस अधिकारी से ज्यादा अभिभावक के तौर पर बताते हैं, “मां-बाप को बच्चों की निगरानी करनी पड़ेगी। परिजनों के निगरानी नहीं करने से बच्चों के अंदर डर समाप्त हो जाता है। इससे वह अपराध करने लगते हैं”।

रिपोर्टर - गणेश जी वर्मा

 

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