सहकारी समितियों को दोबारा जि़ंदा करें

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
सहकारी समितियों को दोबारा जि़ंदा करेंगाँव कनेक्शन

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सात हज़ार से भी ज्यादा 'साधन सहकारी समितियां' हैं, जिनसे एक करोड़ से भी ज्यादा किसान सदस्य के रूप में जुड़े हैं। इन समितियों को खाद और कृषि ऋण बांटने के अलावा कीटनाशक व कृषि उपकरण बांटने के भी काम दिए जाएं, सहायता राशि सीधे किसान के खाते में पहुंचे। 

''समितियां अपने-अपने क्षेत्र में बहुत अच्छा काम कर सकती हैं यदि उन्हें किसान की हर ज़रूरत पूरा करने वाला एकल कार्यालय बना दिया जाए। ऐसा करने का प्रयास वर्ष 2005-06 में सरकार ने किया था लेकिन वो कभी ज़मीन पर नहीं आ पाया।" उत्तर प्रदेश सहकारी समिति कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष मोहनलाल गौड़ आगे कहते हैं, ''समितियों को एक समान रूप से यदि कोटे के तहत राशन बांटने और कृषि उपकरण बेचने का काम दे दें तो हालत कुछ सुधर जाएगी। इतना ही हो जाए कि कई वर्षों से रुका कर्मचारियों का वेतन निकल पाए।"

उत्तर प्रदेश सहकारी विभाग से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 7,400 साधन सहकारी समितियां हैं जिससे प्रदेश के लगभग एक करोड़ तीस लाख किसान जुड़े हैं।

''ग्रामीणों को जितना समितियों पर विश्वास है उतना तो नए खुले बैंकों पर भी नहीं है, फिर भी इनकी ओर सरकार ध्यान नहीं दे रही। उर्वरक और ऋण से पूरा नहीं पड़ रहा, हमें कृषि की अन्य वस्तुओं जैसे कीटनाशक, बीज और उपकरणों को बेचने की भी अनुमति दी जानी चाहिए ताकी मुनाफा बढ़े" बाराबंकी जिला मुख्यालय के दक्षिण में लगभग 10 किमी दूर सरीफाबाद गाँव की साधन सहकारी समिति के सचिव आशाराम ने बताया। 

''प्रदेशभर की सारी समितियों में अभी एक समान कृषि के सारे काम नहीं हो पा रहे। हमें अभी तक दवाओं का लाइसेंस नहीं मिल पाया है। ट्रैक्टर, कल्टीवेटर, हैरो जैसे उपकरण ही बेचने को उपलब्ध करा देती सरकार" मोहनलाल आगे बताते हैं, ''कृषि में आमतौर पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला उपकरण दवा छिड़कने की मशीन है। वो लगभग 1200 रुपए की आती है, पर सब्सिडी के बाद 600-700  की मिलती है, यही बेचने की अनुमति समितियों को दे दें तो सब्सिडी से समितियों को अच्छा कमीशन मिलेगा, कुछ तो हालत सुधरेगी।"

समितियों को राशन का कोटा देने के बारे में गौड़ कहते हैं, ''प्रदेश सरकार ने हाल ही में कोटा देते समय समितियों को प्राथमिकता देने की बात कही है। लेकिन उससे कोई निर्धारित तो नहीं होता की कोटा मिलेगा ही। उन्हें चाहिए कि जो भी बड़ी ग्राम पंचायतें हैं वहां के कोटे से कुछ कार्ड काटकर समितियों को दे दें। कोटे का जो गेहूं आएगा उसी से 20-25 रुपए का कमीशन समितियों को मिल सकता है।" 

साठ के दशक में बनीं इन साधन सहकारी समितियों का उद्देश्य था कि निजी या पूंजीवादी और सार्वजनिक भागीदारी से किसानों को खाद और कृषि ऋण उपलब्ध कराया जा सके।

सरकार को गाँव कनेक्शन सुझाव : 

समितियों को कीटनाशक, लेवी खरीद व उपकरण की जि़म्मेदारी दें

समितियों को खाद और ऋण के साथ-साथ कीटनाशक, लेवी खरीद, राशन कोटा व कृषि उपकरण बेचने जैसी जिम्मेदारियां भी दी जाएं। अभी ये जि़म्मदारियां एक समान सारी समितियों को नहीं मिलीं। उदाहरण के तौर पर कृषि में आमतौर पर सबसे ज्य़ादा इस्तेमाल होने वाला उपकरण दवा छिड़कने की मशीन है। वो लगभग 1200 रुपए की आती है, पर सब्सिडी के बाद 600-700  की मिलती है, यही बेचने की अनुमति समितियों को दे दें तो सब्सिडी से समितियों को अच्छा कमीशन मिलेगा, और हालत सुधरेगी।

रिकवरी से जुड़े सरकारी काम भी समिति को दें

समितियों को बिजली का बिल व अन्य ऐसी सुविधाएं जिनकी रिकवरी का सरकार के पास कोई माध्यम नहीं, रिकवरी का काम समितियों को कमीशन पर दे सकते हैं। रिकवरी की जानकारी समिति के ही कम्प्यूटर से फीड करवा सकते हैं। प्रदेश भर में समितियों के पास 20 हज़ार से ज्यादा कर्मचारियों की फौज मौजूद है जिसके पास ज्यादा काम नहीं।

बेरोज़गारी भत्ता समाप्त करके कम्प्यूटर देकर समितियों पर तैनात करें

हर समिति पर एक कम्प्यूटर और ऑपरेटर उपलब्ध कराया जाए, जो समिति के व्यापार को ऑनलाइन करे और किसान पंजीकरण, जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र, खसरा-खतौनी के प्रिंट दे, जिनके लिए किसान को अभी तक सीधे ब्लॉक या तहसील जाना होता है। इसके ज़रिए सरकार न सिर्फ युवाओं को रोज़गार उपलब्ध कराएगी, बल्कि हर न्याय पंचायत पर अपना खुद का तकनीकी जानकारी रखने वाला एक व्यक्ति बिठा पाएगी, जो उसकी तमाम योजनाओं को लोगों तक पहुंचा सके। 

युवाओं को चुनने में सरकार प्राथमिकता उन नौजवानों को दे सकती है, जिन्हें बरोज़गारी भत्ता दिया जा रहा है। इससे चुनने की पूरी प्रक्रिया खत्म हो जाएगी, बस एक परीक्षा लेनी होगा।

किसानों को समूह बनाकर खरीदने दें सोलर पंप

ज्य़ादातर जि़लों में सरकार से किसानों को 80 फीसदी तक की सब्सिडी पर सोलर पम्प के लक्ष्य उपलब्ध कराए गए हैं। लेकिन अभी बहुत से जि़लों में लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है। कारण यह है कि ज्य़ादातर किसान एक अकेले एक लाख रुपए तक की राशि नहीं दे सकते। सोलर पम्प पर सरकारी सहायता किसी एक किसान द्वारा इसकी खरीद करने पर ही मिलती है। इसमें किसानों के समूह को भी जोड़ जाना चाहिए। कई किसान इच्छुक हैं कि वे समूह बनाकर पम्प ले पाएं लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। इसके लिए किसानों को छूट दी जानी चाहिए कि वे समूह को पंजीकृत कराकर सोलर पम्प की खरीद कर सकें। 

कृषि में सरकारी सहायता का लक्ष्य ब्लॉकवार तय करें

उत्तर प्रदेश सरकार कृषि उपकरण, कृषि सब्सिडी, सोलर पम्प आदि जैसी जितनी भी योजनाएं संचालित कर रही है उनका लक्ष्य अभी जिलावार निर्धारित किया जाता है। ऐसा बंद करके लक्ष्य ब्लॉक स्तर पर या कम से कम तहसील स्तर पर निर्धारित करें। उदाहरण के तौर पर अगर आठ ब्लॉक वाले एक जि़ले में 20 सोलर पंप दी हैं तो कई बार ऐसा होता है कि दूर-दराज़ के ब्लॉक वाले किसान को जानकारी मिलते-मिलते या आवेदन देते-देते देरी हो जाती है और 20 का लक्ष्य खत्म हो जाता है। लक्ष्य को ब्लॉकवार बांटकर एक समय सीमा निर्धारित कर दें। अगर उस समय-सीमा में आवेदन न आए तो ब्लॉक का लक्ष्य उस ब्लॉक को जि़ला कृषि अधिकारी के माध्यम से ट्रांसफर करवा दें, जहां मांग ज्यादा है।

नहरों की रोस्टर प्रक्रिया में कृषि विभाग भी हो शामिल

ऐसी शिकायतें आम हैं कि सिंचाई के लिए नहरों पर निर्भर किसानों को बुवाई के समय नहरों से पानी नहीं मिल पाता। ऐसा इसलिए क्योंकि पानी उपलब्धता के हिसाब से आमतौर पर सिंचाई विभाग अपना रोस्टर तैयार करके प्रशासन को भेजता है। रोस्टर यानी किस जि़ले में किस नहर में कब पानी छोड़ा जाएगा। 

इस रोस्टर को बनाने में कृषि विभाग को भी शामिल किया जाना चाहिए। इससे ये फायदे होंगे कि कृषि विशेषज्ञ यह बता पाएंगे कि किस समय कहां पानी पहुंचना बहुत ज़रूरी है। यानी फसलों की बुवाई के आधार पर रोस्टर बने, न कि रोस्टर के आधार पर फसल बुवाई टाली जाए। 

इससे मजबूरी में प्राइवेट ट्यूबवेलों का सहारा लेने वाले किसानों को सिंचाई के भारी भरकम खर्च से काफी राहत मिल सकती है।

 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.