सहफसली खेती किसानों के लिए लाभदायक

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सहफसली खेती किसानों के लिए लाभदायकgaonconnection

लखनऊ। मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जि़ले के करताज गाँव के किसान राकेश दूबे गन्ने की खेती करते हैं, चीनी मिलों को गन्ना बेचने के बजाय वो गुड़ बनाकर बेचते हैं। इस बार राकेश ने महाराष्ट्र की गन्ना लगाने की विधि अणसाली से भी गन्ना लगा रहे हैं। राकेश दूबे गाँव कनेक्शन के पाठकों से अपनी बातें साझा कर रहे हैं।

किसानों को सबसे अधिक समस्या अपने उत्पाद बेचने में होती है, हम अपने उत्पाद सीधे नहीं बेच पाते हैं। बिचौलियों के चक्कर में हमें नुकसान सहना पड़ता है। हम गन्ने की ही खेती करते हैं और अपना गन्ना चीनी मिलों को बेचने के बजाए गुड़ बनाकर बेचते हैं।

बचपन से ही मैं पढ़ाई के सिलसिले में गाँव से बाहर ही रहा हूं, क्योंकि मेरे पापा की नौकरी बाहर ही रहती थी। फिर ऐसी परिस्थतियां आईं कि हमें अपने गाँव लौटना पड़ा, गाँव में आया तो यहां पर पुराने तरीके की परंपरागत तरीके से खेती होती थी, सूखे का क्षेत्र था तो गन्ना भी कोई नहीं लगाता था।

साल 1990 में मैंने अपनी शुरुआत की, तब हमारे यहां कोई भी गन्ना नहीं लगाता था, जो किसान गन्ना लगाते भी थे वो सूखा गन्ना, जिसको बिना सिंचाई के ही उगाते थे। गाँव में आकर हमने ट्यूबवेल लगाकर गन्ने की खेती की शुरुआत की हमारे यहां से लगभग सौ किमी दूर कुछ क्षेत्र थे जहां पर गन्ने की खेती होती थी। हमने जब गन्ना लगाया तो उसका गुड़ बनाकर ही बेचते हैं, जबकि अब हमारी तरफ भी चीनी मिले खुल गई हैं,लेकिन हम गुड़ ही बनाते हैं। इस बार मैंने 24 एकड़ गन्ना लगाया है। अभी तक हम 40 किलो की भेली का गुड़ ही बनाते थे, लेकिन अब 100 और 200 ग्राम की छोटी भेली भी बना रहे हैं। 

पिछली बार हमारा गुड़ दुबई एक्सपोर्ट हुआ था सैंपल के तौर पर। गुजरात की एक पार्टी थी उसी के जरिए सारा काम हुआ था। तीस कुंतल गुड़ हमनें बिचौलिए के जरिए भेजा था, उसने हमसे तीस रुपए किलो खरीदा था। वहां पर हमारा गुड़ गया तो गुड़ के बॉक्स पर हमारा नंबर लिखा था, वहीं से हमारे पास फोन आया तो हमें पता चला कि मुंबई से वो बंदरगाह गुड़ 120 रुपए प्रति किलो गया था। बाद में पता चला कि वही गुड़ दुबई में 350 रुपए किलो में बेचा गया। जबकि हमें सिर्फ 30 रुपए ही मिले थे। इस बार हमने एक समूह बनाया है, जिससे हम बिचौलिए के झांसे में आए बिना अपना गुड़ सीधे दुबई भेज सकेंगे। 

 

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