समय पर वित्तीय सहायता न मिलने से लाचार हैं कृषि वैज्ञानिक

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समय पर वित्तीय सहायता न मिलने से लाचार हैं कृषि वैज्ञानिकgaonconnection, वैज्ञानिकों को सही समय पर नहीं मिलती वित्तीय सहायता

लखनऊ। कृषि विश्वविद्यालयों में चल रही परियोजनाओं में उद्देश्यों के अनुरूप कार्य नहीं किया जा रहा है। इसका कारण है वैज्ञानिकों को सही समय पर वित्तीय सहायता न मिल पाना।

उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद (उपकार) के महानिदेशक प्रो. राजेन्द्र कुमार ने प्रदेश में कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में हो रहे नए शोध की समीक्षा के लिए आयोजित कार्यशाला में कहा।

राजेन्द्र कुमार ने आगे कहा, “इस सम्बन्ध में मैंने राज्यपाल, कृषि उत्पादन आयुक्त तथा प्रमुख सचिव, कृषि से भी बात की है, जिससे कुछ हद तक समस्या का समाधान निकला है।”

उपकार द्वारा प्रदेश के विभिन्न संस्थानों/विश्वविद्यालयों में चलाई जा रही परियोजनाओं का मूल्यांकन/समीक्षा किए जाने के लिए आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन कृषि के साथ ही पशुपालन और मत्स्य पालन के नये शोध की चर्चा की गयी। “पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बढ़ते जल प्रदूषण के कारण मछली पालन भी प्रभावित हुआ है, प्रदूषित जल में मछलियां सांस नहीं ले पाती हैं, क्योंकि पानी पर भारी तत्वों की परत जम जाती है।” महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय के पशु विज्ञान विभाग की प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता ने कहा।

प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता के शोध में भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान बरेली के डॉ. अनिल कुमार गर्ग ने भी सहयोग दिया है। डॉ. अनिल कुमार गर्ग बताते हैं, “ऐसे में किसान नदियों और नदियों के बजाय छोटे-छोटे तालाबों में मछली पालन कर सकते हैं।”

कार्यशाला में सरदार वल्लभ पटेल कृषि एवं तकनीकि विश्वविद्यालय मेरठ, चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं तकनीकि विश्वविद्यालय कानपुर, भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान बरेली, महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय, पंडित दीनदयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय मथुरा और नरेन्द्र देव कृषि एवं तकनीकि विश्वविद्यालय फैज़ाबाद, एमिटी विश्वविद्यालय नोएडा, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर के विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया।

सरदार वल्लभ पटेल कृषि एवं तकनीकि विश्वविद्यालय मेरठ के प्रोफेसर डॉ. नाजिम अली ने अपने शोध में पोल्ट्री फार्मिंग के बारे में बताया। डॉ. नाजिम अली बताते हैं, “पोल्ट्री फार्म की ओर किसानों का रुझान अब तेजी से बढ़ रहा है, ऐसे में किसान छोटे स्तर पर जल्दी बढ़ने वाली बेहतर नस्लों का चुनाव कर मुनाफा कमा सकते हैं।”

पशुओं में बांझपन की वजह से कई बार पशुपालकों को नुकसान उठाना पड़ता है। पशुओं में कुपोषण, संक्रमण, हार्मोंस में असंतुलन से बांझपन हो जाता है। इस बारे में आईवीआरआई, इज़्जतनगर, बरेली के डॉ. हरेन्द्र कुमार कहते हैं, “पशुओं में बांझपन की मुख्य वजह कुपोषण ही होती है, ऐसे में पशुपालन खानपान का सही ध्यान रखकर कुपोषण से बचा सकते हैं।”

 

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