संगम नगरी में दहशरा-मुहर्रम में दिखेगी गंगा-जमुनी तहज़ीब

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संगम नगरी में दहशरा-मुहर्रम में दिखेगी गंगा-जमुनी तहज़ीब

इलाहाबाद। संगम नगरी में दशहरा और मुहर्रम के त्यौहार में गंगा-जमुनी तहज़ीब दिखेगी। विजय और दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दिन मुस्लिम समुदाय ने ताजिया जुलूस नहीं निकालने का निर्णय किया है।

इस साल दशहरा और मुहर्रम का त्यौहार एक साथ मनाया जाएगा। ऐसे में पुलिस और प्रशासन के सामने सुरक्षा और कानून-व्यवस्था कायम रखना बहुत बड़ी चुनौती है पर संगम नगरी से पुलिस प्रशासन के लिए एक राहत लेने वाली बात  है, क्योंकि यहां की दो बड़ी ताजिया कमिटी ने निर्णय लिया है कि वे मुहर्रम के9वें और 10वें दिन (23-24 अक्टूबर) को ताजिया जुलूस नहीं निकालेंगी।

बड़ा ताजिया मुहर्रम कमिटी के अध्यक्ष रेहान खान ने कहा, “जब हमें पता चला कि दशहरा और मुहर्रम एक साथ पड़ रहे हैं तो हमने फैसला किया कि शहर की गलियों में ताजिया का जुलूस नहीं निकालेंगे। शहरभर में पूजा के पंडाल तो होंगे ही साथ ही दशहरे पर हिंदू भाई जुलूस निकालते हैं। इसलिए शहर में शांति और भाई-चारा बनाए रखना हमारी प्राथमिकता है।”

उन्होंने आगे बताया, “ हमने प्रशासन को लिखित तौर पर अपने फैसले के बारे में जानकारी दे दी है। बड़ा ताजिया मुहर्रम कमिटी की परंपरा 200 साल से भी ज्यादा पुरानी है। यह सबसे पुरानी कमिटी में से है और मुहर्रम के नवें और दसवें दिन सबसे बड़ा ताजिया का जुलूस निकालती है।

कमिटी ने यह फैसला सामाजिक सद्भाव बनाए रखने और हिंदू समुदाय के लोगों को किसी असुविधा से बचाने के लिए लिया। बड़ा ताजिया मुहर्रम कमिटी और बुड्ढा ताजिया कमिटी ने यह फैसला किया है। इलाहाबाद में हर साल ये दोनों कमिटी मुहर्रम के दौरान सबसे बड़ा ताजिया जुलूस निकालती हैं जिसमें 2लाख से भी ज्यादा लोग हिस्सा लेते हैं। शहर के एसपी राजेश कुमार यादव ने दोनों कमिटी की इस फैसले के लिए प्रशंसा की।

रेहान खान ने आगे कहा कि, “मुहर्रम से जुड़ी 'नजर फतीहा' की रस्म को सामान्य तौर पर इमामबाड़ा में मनाया जाएगा और फूल के बने ताजिया को मुहर्रम के 10वें दिन कर्बला में दफनाया जाएगा। इसके अलावा, शहर के पुराने हिस्से में ताजिया के छोटे-छोटे जुलूस निकाले जाएंगे।”

हालांकि यह पहली बार नहीं है जब संगम नगरी में अमन-चैन बनाए रखने के लिए मुस्लिम भाईयों ने ये निर्णय लिया है। बुजुर्ग निशार अहमद (65 वर्ष) ने बताया, “ऐसी ही स्थिति 1978 और 1979 में भी आई थी। तब भी मुहर्रम और दशहरा एक ही तारीखों पर थे। इसे देखते हुए ताजिया कमिटी ने मुहर्रम का जुलूस नहीं निकाला था।” एसपी सिटी ने कहा, यह पुलिस-प्रशासन के लिए भी राहत वाली बात है समितियों से जुड़े 99 फीसदी लोगों ने जुलूस न निकालने की रजामंदी दी है। वर्ष 1921 में दशहरा की पूजा के बाद ताजिया का जुलूस निकाला गया था।”

रिपोर्टर - आकाश द्विवेदी 

 

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