संक्रमण से गर्भवास्था के दौरान 2015 मे 30,300 महिलाओं की हुई मृत्यु

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संक्रमण से गर्भवास्था के दौरान 2015 मे 30,300 महिलाओं की हुई मृत्युgaonconnection

नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2015 मे 30,300 महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान मृत्यु हो गई। इसके पीछे सबसे मुख्य कारण है महिलाओं में गर्भवास्था के दौरान होने वाला संक्रमण जिसके कारण मां और बच्चे दोनों अपनी जान से हाथ धो बैठतें हैं।

ये संक्रमण सिर्फ इसलिए नहीं होता कि माहवारी के दौरान महिलाएं साफ-सफाई नहीं रखती बल्कि इसके शुरु होते ही लड़कियों का सैनिटरी नैपकीन का प्रयोग न करना, साफ-सफाई न रखना इत्यादि कई ऐसे मुख्य कारण है। लेकिन इन सब कारणों से महिलाओं को सुरक्षित रखने के लिए पिछले कई वर्षों से बैंगलोर की उर्मिला प्रयासरत हैं। जिन्होंने खुद भी माहवारी के कारण अपने जीवन में कई परेशानियां झेलीं और इस समस्या के प्रति महिलाओं को जागरूक करने का निश्चय लिया।लेकिन इस कार्य को अच्छे रूप से करने के लिए आवश्यकता थी ठोस प्रशिक्षण की। अतः उर्मिला जून 2012 में निर्मल भारत अभियान के साथ एक समाजिक कार्यकर्ता के रुप मे जुड़ी और इसी वर्ष जून मे राजीव गांधी महिला विकास परीयोजना के अंर्तगत दिए जाने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम द्वारा प्रशिक्षित हुई।

कुछ समय बाद उन्होनें शुरुआत की ब्रेकिंग द साईलेंस कैंपेन, (चुप्पी तोड़ो अभियान) की जिसके अंतर्गत उर्मिला ने महिलाओं में माहवारी के प्रति जागरुकता लाने के लिए पहले सोशल मीडिया का सहारा लिया और कुछ समय बाद छोटी छोटी सभाओं द्वारा महिलाओं के बीच पहुंचकर माहवारी के दिनों में रखने वाली साफ सफाई और सबसे महत्वपूर्ण सैनिटरी नैपकिन के प्रयोग और उसके लाभ के प्रति महिलाओं को जागरुक करने का काम शुरु किया ताकि माहवारी के कारण महिलाओं में होने वाले संक्रमण से उन्हें बचाया जा सके।

उर्मिला के बात करने का कौशल और उनके कार्य के कारण उनका अभियान तेजी से लोगो के बीच प्रसिद्ध होता गया। कारणवश कई गैर सरकारी संस्थानों ने उन्हे आमत्रिंत किया और उर्मिला के द्वारा महिलाओं मे माहवारी के प्रति जागरुकता लाने के काम को गति देने का प्रयास सामूहिक रुप से किया। मासिक धर्म से संबंधित उर्मिला के स्वच्छता अभियान ने आखिरकार 19 जनवरी 2015 को वर्ल्ड पल्स नेटवर्क को जन्म दिया। ये एक वेबसाइट है जिसमें उपस्थित जानकारी के अनुसार इस समय 190 देशो की 25000 महिलाएं आपस में जुड़ी हैं जो इस मंच द्वारा न सिर्फ मासिक धर्म के बारे बल्कि महिलाओं के अन्य समस्याओं जैसे- शिक्षा, बाल विवाह और घरेलू हिंसा के बारे भी एक दूसरे से खुले रुप मे चर्चा करती हैं।

इस कार्य की सफलता के कारण अब तक उन्हें कई सम्मान मिल चुके हैं, जिनमें से साल 2015 मे मिलने वाला "व्याइस ऑफ फयूचर" और 2015 मे ही यू-एन-एफ-पी-ए द्वारा दिया जाने वाला "लाडली मीडिया अवार्ड" शामिल हैं। लेकिन इस सम्मान तक पहुंचने और अपने काम को इस मकाम तक पहुचांने मे उर्मिला को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इस बारे में उर्मिला बताती हैं, "गरीबी, निरक्षरता और पितृसत्ता के कारण महिलाएं दब जाती हैं। वो आगे कहती हैं कि 23% लड़कियां विद्यालय इसलिए छोड़ देती हैं क्योंकि विदयालय में मासिक धर्म को लेकर कोई सुविधा नहीं होती है। सिर्फ 12% महिलाएं ही सैनिटरी नैपकिन का प्रयोग करती हैं।

वो आगे बताती हैं, “कुछ साल पहले मैं एक महिला से मणिपुर में मिली, जो नैपकिन कि जगह पॉलिथीन का प्रयोग करती थी। वहां कुछ और भी महिलाएं थीं, जो माहवारी के दिनों में कपड़े का इस्तेमाल करती थीं क्योंकि वो लोग सैनिटरी नैपकिन खरीदने में असमर्थ थी तब मैंने उन्हें बताया कि कपड़े को डेटॉल के साथ केसे धोना है और फिर सुखाना है ताकि कपड़े के इस्तेमाल के बाद भी इनका शरीर संक्रमित न हो।

लेकिन ये सारी जानकारी महिलाओं तक पहुंचाना आसान नहीं था क्योंकि हम एक ऐसे देश मे रहते हैं जहां अब भी महिलाएं ऐसे विषयों पर खुलकर बात नहीं कर पाती। तभी मैंने अपने अभियान की शुरुआत की और जमीनी सतह पर लड़कियों के बीच जानकारी पहुंचाने के लिए स्कूलों में घूम-घूम कर उन्हें इस बारे में जानकारी दी और विभिन्न चित्रों द्वारा मासिक धर्म के शुरुआत से लेकर अंत तक की जानकारी लड़कियों को दी और उन्हें प्रशिक्षित किया।

इस तरह अब तक मैंने 9 राज्यों में 6,000 लड़कियों को इसका प्रशिक्षण दिया है। आज मेरे इस अभियान से लाखों महिलाएं राष्ट्रीय एंव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुड़ी हैं और सब अपने-अपने क्षेत्र में इस विषय पर काम कर कर रही हैं। अब महिलाएं ये मानने लगी हैं कि पीरियड कोई बीमारी नहीं हमारे शारीरिक क्रियाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 

लेखिका- उषा राय

साभार- (चरखा फीचर्स)

 

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