ये है संस्कृत का पहला रॉक बैंड

ये बैंड देश के बड़े शहरों में कई शो कर चुका है। अब यह बैंड दुनिया में अपनी धाक जमाने की तैयारी में जुटा है।

Divendra SinghDivendra Singh   21 Jun 2018 1:37 PM GMT

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ये है संस्कृत का पहला रॉक बैंड

लखनऊ। आपने हिन्दी और अंग्रेजी जैसी दूसरी भाषाओं का संगीत रॉक बैंड को तो सुना होगा, लेकिन भोपाल संगीत रॉक बैंड 'ध्रुवा' संस्कृत के लिए प्रसिद्ध है। इस बैंड के कलाकार संस्कृत के श्लोक और मंत्रों को संगीत में ढाल लेते हैं।

'ध्रुवा' संगीत बैंड के संस्थापक भोपाल में रहने वाले डॉ. संजय द्विवेदी हैं। संस्कृत में पीएचडी डॉ. संजय खुद भी संस्कृत के विद्वान हैं। उन्होंने संस्कृत में कई नाटक भी लिखे हैं। पूरे देश के बड़े शहरों में कई शो कर चुके हैं। अब यह बैंड दुनिया में अपनी धाक जमाने की तैयारी में जुटा है।

'ध्रुवा' बैंड की शुरुआत के बारे में संजय बताते हैं, "मेरे पिता संस्कृत के विद्वान हैं और मैंने भी संस्कृत में ही पढ़ाई की है, साथ ही बचपन से ही संगीत भी सीखता आ रहा हूं। इसके अलावा दस साल से संस्कृत थियेटर में भी काम कर रहा हूं, उसी में काम करने के दौरान मुझे ये लगा कि जब हम शास्त्रीय संगीत या उसी तरह का कोई संगीत गाते हैं। उसके दर्शक भी अलग तरह के होते हैं। शास्त्रीय संगीत की अलग तरह की विधाएं होती हैं प्रबुद्ध लोग ऐसे गीत को सुनते हैं।

वो आगे कहते हैं, "संस्कृत संगीत के साथ भी ऐसा ही है, एक तो भाषागत और दूसरा संगीत गत, तो मैंने देखा की आज की जो पीढ़ी है वो इसमें रुझान नहीं रखते हैं। तो मुझे लगा कि इसमें कुछ ऐसा कोई प्रयोग करना चाहिए, आज जैसा संगीत लोग पसंद करते हैं, उस तरह की कोई बात हो जिससे लोग इसे पसंद करें, ये प्रयोग मैंने किया। ऐसे में हम सफल होते गए और उत्साह बढ़ता गया।

संस्कृत में पीएचडी संजय ने इस बैंड के साथ कई लोगों को भी जोड़ा है। वे अपने सदस्यों के बारे में बताते हैं, "सभी तो संस्कृत के जानकार हो नहीं सकते, बाकि लोगों को हमने प्रशिक्षित किया है। संस्कृत में संगीतकार का होना एक दुर्लभ संदेश है, क्योंकि बहुत कम लोग हैं जो अच्छा वाद्य यंत्र भी बजाना जानता हो। इसमें काफी मेहनत भी लगी, आप समझ सकते हैं, जो भाषा ज्यादा बोली न जाती हो।"

'ध्रुवा' बैंड के सदस्यों में डॉ. संजय द्विवेदी के अलावा वैभव संतारे (गायक), ज्ञानेश्वरी परसाई (गायिका), सनी (ड्रमर), आदित्य (गिटार), तुशार एस घरात (पखावज), विजय मौर्या (ढोलक) भी हैं, जो संजय का साथ देते हैं।

संजय के मुताबिक, "आज ये स्थिति है कि देश भर में लोग हमारे बैंड को जानते हैं और हम ये भी नहीं कहते कि हमारा ये पहला संस्कृत बैंड है लेकिन अभी तक कोई ऐसा नहीं मिला जिसने मुझे कहा हो कि आपका पहला बैंड नहीं है।'' संजय ने कहा। रॉकिंग पश्चिमी संगीत के साथ मंत्रों और श्लोकों को कुछ इस तरह ढालते हैं कि यह सीधा सुनने वाले के दिल पर असर करता है। यह ऋग्वेद के मंत्रों, आदि शंकराचार्य के रचे 'भज गोविंदम' भजन, शिव तांडव के ऊर्जा से सरोबार मंत्र, जयदेव के लिखे गीत गोविंदम, अभिज्ञान शाकुंतलम के प्रेम पत्रों वगैरह से मंत्र और श्लोक लेता है और इन्हें संगीत की धुन में पिरोता है। इनके अलावा बैंड अपनी खुद की लिखी कविताएं और गद्य का भी इस्तेमाल करता है। इनमें ज्यादातर आम आदमी की जिंदगी का जिक्र होता है।

कैसे पड़ा ध्रुवा का नाम

स्वर, ताल एवं शब्द के गुंथे हुए (निबद्ध) रूप को 'ध्रुवा' कहते हैं | ध्रुवा-गान संगीत की सबसे प्राचीन विधाओं में से एक है, इसलिए इस बैंड का नाम 'ध्रुवा' है | डॉ. संजय बताते हैं, "संस्कृत साहित्य की 2000 वर्षों की यात्रा में अनेक रचनाओं में इसका उल्लेख मिलता है। आचार्य भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में सर्वप्रथम इसका उल्लेख किया है। कालिदास के विक्रमोर्वशीयम, बाणभट्ट के ग्रन्थों, दामोदर के कुट्टिनीमत, श्रीहर्ष की रत्नावली, मुरारि के अनर्घराघव तथा राजशेखर के नाटकों में ध्रुवा गीतों के प्रयोगों के साक्ष्य मिलते हैं। ध्रुवा शब्द के दूसरे अर्थ हैं – प्रत्यंचा, यज्ञ में आहुति देने में प्रयुक्त पात्र। ध्रुवा भी भारतीय मान्यताओं एवं संस्कारों की प्रत्यंचा को धारण कर युवा पीढी में उनका सन्धान करने एवं अपनी भारतीय संस्कृति के संरक्षण रूप पुनीत-यज्ञ में अपने इस ध्रुवा-पात्र (संस्कृत और संगीत) से आहूति देने को तत्पर है।

 

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