पति की कोरोना से मौत के बाद एक महिला की निजी अस्पतालों और स्वास्थ्य बीमा को लेकर लिखी पोस्ट लोगों को सोचने पर मजबूर कर रही

कोरोना से बहुतों की जान जा रही है, बहुत लोग ऐसे भी हैं जो इलाज के चलते बर्बाद हो गए, कई लोगों का पैसा भी गया और मरीज भी नहीं बचा। इलाज के दौरान लाखों रुपए लगाने वाली लखनऊ की एक महिला ने पति की मौत के बाद ये पोस्ट लिखी है..

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पति की कोरोना से मौत के बाद एक महिला की निजी अस्पतालों और स्वास्थ्य बीमा को लेकर लिखी पोस्ट लोगों को सोचने पर मजबूर कर रही

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में रहने वाली इरा जौहरी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखा है, जिस पर काफी लोग कमेंट कर रहे हैं। ईरा (54 वर्ष) के पति राकेश जौहरी (60 वर्ष) की तबीयत खराब होने पर शहर के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक में भर्ती कराया गया। ईरा के मुताबिक पति का स्वास्थ्य बीमा था, इसलिए वो निजी अस्पताल गईं, लेकिन बीमे के पैसा तुरंत खर्च हो गया। इलाज में कुल 13 लाख रुपए खर्च हुए, जिसमें से 11 लाख रुपए उस निजी अस्पताल को उन्होंने दूसरों से उधार लेकर दिया।

परिजनों के मुताबिक जब वो निजी अस्पातल में थे तो कोविड रिपोर्ट लगातार रिपोर्ट निगेटिव आ रही थी, फिर बाद में पॉजिटिव बताया गया। ऐसे में कोविड इफेक्शन कहां से हुआ? ये निजी अस्पताल नॉन कोविड था। कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद अस्पताल ने अपने हाथ खड़े कर दिए और आखिर में वो अपने पति को लेकर किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ गईं। जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। पति और पैसे दोनों को खोने के बाद ईरा ने फेसबुक पर एक के बाद एक कई पोस्ट लिखीं, जिनमें उन्होंने निजी अस्पतालों में इलाज के नाम पर लूट, छोटे अस्पतालों की साठगांठ, स्वास्थ्य बीमा समेत कई गंभीर मुद्दे उठाए हैं। पढि़ए इरा ने क्या लिखा..

सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल का दिल दहला देने वाला अनुभव

रविवार 26/7/2020 को शाम के समय लगभग सवा पांच बजे के करीब अचानक हमारे श्रीमानजी श्री राकेश जौहरी जी का शरीर बुरी तरह ऐंठने लगा। हम लोग उसी अवस्था में उन्हें लेकर भागे और अपोलो मेडिकल में ले कर पहुंचे। वहाँ इनको फौरन ही आकस्मिक विभाग में भर्ती कर लिया गया और हमें बताया गया कि इनको सीज़र अटैक पड़ा है। शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो गयी है। ऑक्सीजन देनी पड़ेगी हमारी सहमति लेकर तुरंत ही ऑक्सीजन देनी शुरू कर दी गयी। आधी रात में इनको आईसीयू में ले जाकर वेन्टीलेटर पर रख दिया गया और उससे पहले रात में ही पचास हजार रुपए जमा करने को कहा गया। साथ ही हमसे इनके द्वारा कराये गये किसी भी इंश्योरेंस की जानकारी नहीं मांगी गयी।

तत्पश्चात हमारे द्वारा यह बताने पर कि पाँच लाख का इंश्योरेंस है। जब तक इनका बिल इंश्योरेंस की सीमा में रहा अस्पताल वालों नें हमसे कुछ नहीं कहा। लगभग दो हफ्ते बाद इन्होंने और रुपए डालने को कहा। ये ठीक हो जाएं पैसों की वजह से इलाज न रुके इस खातिर हम हमेशा अपनों के सहयोग से उनके कहे बगैर पहले ही रुपए एडवांस में जमा कर देते थे। हम अपने मरीज को रोज सुबह शाम देख कर डॉक्टर से उनका हाल लेते थे।

शुरू के तीन दिन आईसीयू में वेन्टीलेटर पर रखने के बाद वेन्टीलेटर से हटा कर ऑब्जेक्शन के लिए आईसीयू में ही तीन दिन और रखा गया। वहाँ उनकी हालत सुधरती नजर आ रही थी। अपने आप खाना भी खाने लगे थे। आगे हमसे कहा गया कि ठीक हो जाएंगे तो देखियेगा चलते हुए घर जाएंगे। यहीं से डिस्चार्ज कर देंगे।

तीन अगस्त को वार्ड में शिफ्ट किया गया और रात में खाना खाने के बाद अचानक ही तबियत खराब होने लगी तो कहा गया कि बीपी हाई हो रहा है। चार तारीख को तबियत ज्यादा बिगड़ने पर फिर से वेन्टीलेटर पर रखा गया। दोबारा वेन्टीलेटर पर रखने के बाद जब हमने उनको उनकी बात याद दिलाई तो डॉक्टर साहब फौरन मुकर गये और बोले हम ऐसा कह ही नहीं सकते।

तीन दिन बाद कहा गया कि क्रिटिकल केस है। गले में नली डाली जायेगी उसी से प्राणों की रक्षा होगी। हमें मजबूरी में इसके लिए सहमति देनी पड़ी।

27 जुलाई से 18 अगस्त के मध्य के पूरे समय में तीन अगस्त तक आईसीयू में ही रहे बस एक दिन के लिए एक कमरे वाले वार्ड में आये और फिर रात में ही आईसीयू में शिफ्ट कर दिये गये। शुरू के तीन दिन वेन्टीलेटर फिर तीन दिन नॉर्मल आईसीयू के बाद एक दिन वार्ड और फिर वेन्टीलेटर पर ही पूरे समय रख कर करीब चौबीस दिन बाद शनिवार इतवार को इंतजार कराने के बाद सोमवार सत्रह अगस्त की सुबह गले में ऑपरेशन कर के नली डाली गयी और फिर शाम के समय डॉक्टर नें हमसे हमारी आर्थिक स्थिति के बारे में बात करते हुए कहा कि यहाँ अभी हफ्ता दस दिन और लगेगा। लाखों का बिल आयेगा। यहाँ आगे का इलाज कराना आपके बस का नहीं है। हमारा दिमाग यह सब सुन कर सन्न रह गया। अब तक ये हमसे इंश्योरेंस के अलावा लगभग पाँच लाख रु और यानी दस लाख ले चुके थे। हम समझ गये कि हम इनके शिकंजे में बुरी तरह फंस चुके हैं। आगे डॉक्टर द्वारा यह कहने पर कि मेडिकल कॉलेज या पीजीआई में ही सिर्फ सही इलाज होगा। पर वहाँ एसी हालत में एडमिट नहीं किया जायेगा। हम आपको सस्ते प्राइवेट अस्पताल का पता बता देंगे।

हमारे दिमाग के तो ताले खुल ही चुके थे। हमनें सोचा पहले यहाँ से निकलो वरना खुद भी बिक कर कुछ हासिल नहीं होने वाला। अस्पताल से डिस्चार्ज होते समय लगभग एक लाख का बिल और पकड़ा दिया गया। यानी अब तक पूरे पौने ग्यारह लाख का बिल अदा करके हम लोग यहाँ से निकाल कर इनको सीधे आस्था अस्पताल ले कर भागे। जहाँ इनकी फिर से पूरी जाँच हुई। उन्होंने जो निष्कर्ष निकला उसका सार यह है कि 26 जुलाई को एक अच्छे भले आदमी को जिसके सभी अंग सलामत थे डेंगू का सीजर अटैक पड़ने पर अपोलो अस्पताल में लाया गया और अट्ठारह अगस्त को जब वह बाहर निकला उसके शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंग किडनी,मस्तिष्क, हृदय, लीवर,आदि बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके थे। साथ ही ये कोरोना पाॅजिटिव भी हो गये थे।

साथ ही हमारा छोटा बेटा जो एक रात वार्ड में साथ में रुका था वह भी कोरोना पाॅजिटिव हो गया है। ग्यारह लाख के बिल के साथ दो ज़िन्दगियों को एक तरह से दांव पर लगा कर हम वहाँ से निकल भागे।

कोविड होने पर आस्था अस्पताल से ही फौरन ही आनन-फानन में रात में मेडिकल कॉलेज में एडमिट किये गये। तब कहीं जान में जान आई कि अब शायद अपने सुहाग को बचा पायें।

इरा जौहरी, पत्नी श्री राकेश जौहरी

केजीएमयू पहुंचने के बाद इलाज के दौरान इरा के पति राकेश जौहरी की मौत हो गई। इरा के फेसबुक पोस्ट और व्हाट्सअप के माध्यम से कई लोगों ने उन्हें कमेंट और रिप्लाई में अपने दर्द बताए, जिनकी कहानियां उनसे मिलती जुलती थी। फिर 28 अगस्त को एक और पोस्ट लिखी..

कुछ झटके जीवन में समयानुकूल उपयोगी नया ज्ञान देते हैं। अभी तक यही सोचती थी कि जीवन में स्वास्थ्य बीमा कराना बहुत जरूरी है, पता नहीं कब आवश्यकता पड़ जाये। ऐसे में पास में कुछ धन हो तो काम आता है। किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता है।

पर हकीकत इससे कोसों दूर नजर आई जब वास्तव में बुरा वक्त आया स्वास्थ्य बीमे की आवश्यकता पड़ी तो पता चला कि जिस स्वास्थ्य बीमे के भरोसे हम प्राइवेट अस्पताल की ओर बड़ी आशा से भागे थे वहाँ तो उतनी बीमा राशि से कुछ होना ही नहीं था। वह राशि तो वहाँ की शुरुआती देखभाल में ही खत्म हो गयी। बाद में आवश्यकता पड़ने पर सबसे मदद माँग कर इलाज में लगाने के बाद, बुरी तरह निचुड़ कर खाली हाथ सरकारी अस्पताल की ओर ही अन्त में भागे।

सच तो यह है कि हाथ खाली होने पर ही अक्ल आई कि इतना पैसा स्वास्थ्य इंश्योरेंस में देने की जगह अपने पास बचा कर रखना था तथा जीवन को आनन्द के साथ बिना चिन्ता के गुज़ारना चाहिए था। पास में जब कोई स्वास्थ्य बीमा न होता तो बीमार पड़ने पर सीधे सरकारी अस्पताल में ही भागते। जहाँ ईश्वर का दर्जा पाये अच्छे चिकित्सकों से इलाज करा कर मुस्कुराते हुये घर तो वापस आते और न भी आते तो सुकून तो होता कि किसी नें हमें लूटा नहीं। आखिर बीमा राशि के अलावा सबसे मांग कर के इतना खर्च कर के भी तो हाथ कुछ नहीं आया।

अन्त में मुझे तो अब बहुत कुछ साफ साफ दिखाई दे रहा है। पूरा इंश्योरेंस पहले सब स्वास्थ्य माफिया मिल कर हजम कर जाओ डकार भी न लो और फिर पाचक चूर्ण की तरह बची खुची जमा राशि भी निकलवा लो। और जब अपच होने लगे यानी मरीज की हालत बिगड़ने लगे उल्टी कर के मरीज से पल्ला झाड़ लो।

इरा


नोट- उपरोक्त इरा जौहरी के अपने विचार हैं, जो उनकी सहमति से प्रकाशित किया जा रहा है।

कोरोना के दौरान अस्पतालों के लाखों रुपए के बिल लगातार सुर्खियां बने हैं, अभी तक मौटे तर पर 28-30 लाख रुपए के कोरोना बिल सोशल मीडिया में सुर्खियां बन चुके हैं। कानपुर में 14 लाख खर्च करने के बाद व्यक्ति की मौत हो गई, 1 लाख रुपए के लिए परिजनों को डेडबॉडी के लिए तरसना पड़ा। देश के अलग-अलग राज्यों में लोग निजि अस्पतालों के खिलाफ लगातार शिकायत कर रहे हैं।


     

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