‘हम लड़कियों को कभी ना कभी रास्ता चलते यहां - वहां हाथ तो मारा ही जाता है’ 

Anusha MishraAnusha Mishra   25 Sep 2017 7:15 AM GMT

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‘हम लड़कियों को कभी ना कभी रास्ता चलते यहां - वहां हाथ तो मारा ही जाता है’ लाठीचार्ज के दौरान घायल छात्रा

बीएचयू में छेड़खानी के विरोध में प्रदर्शन कर रही छात्राओं पर शनिवार देर रात लाठी चार्ज कर दिया गया। कई छात्राएं इसमें घायल हो गईं लेकिन विश्वविद्यालय के कुलपति अभी तक उनसे मिलने नहीं पहुंचे। बीएचयू में लड़कियों के साथ इस घटना से देश की जनता में जहां गुस्सा और उबाल है वहीं उसमें समाज में लड़कियों की स्थिति और व्यवस्था को लेकर हताशा भी है। पढ़िए इस बारे में सोशल मीडिया पर क्या लिख रहे हैं लोग :

बाहर आओगी तो ये होगा ही

वैसे भी हम लड़कियाँ अपने साथ हुई " छेड़खानी " की बात आम तौर पर कभी कह ही नहीं पातीं... कोई , कभी ना कभी रास्ते चलते हमें यहाँ - वहाँ हाथ तो मार ही जाता है ... और हम काँपते पैरों के साथ घर आकर कुछ देर खुद को कमरे में बंद कर तसल्ली दे लेते हैं ...फिर भूलकर किसी को बताते तक नहीं ... क्योंकि जानते हैं ... नसीहत का पाठ हमें ही पढ़ाया जाएगा... पता नहीं कैसे ये बीएचयू वाली लड़कियाँ एक जुट हुईं होंगी , हिम्मत बटोरी होगी इस विश्वास के साथ कि तुम सुनोगे ...लेकिन तुम ... तुमने ये सब कराकर सारी लड़कियों को फिर समझा दिया ... कि अपनी कंपकपी बन्द कमरे में ही शांत करो ... बाहर आओगी तो ये होगा ही ....

पूजा व्रत गुप्ता

बीएचयू की लड़कियों की लड़ाई बड़ी लड़ाई है

यह किसी भी तथाकथित राजनैतिक लड़ाई से बड़ी राजनैतिक लड़ाई है। जो इसमें शामिल हैं वे इसे समझें बहुत ठीक से। स्त्रीवाद /फेमीनिज़्‍म एक आंदोलन है, राजनैतिक आंदोलन, पितृसत्ता से अपने स्पेस को क्लेम करने का आंदोलन। इस देश में आंचलिक और कस्बाई क्षेत्रों में स्त्रियों की बदहाली, दिखावटी तौर पर भी नहीं बदली। जन्म से लेकर मृत्यु तक संस्कार (ब्राहमण धर्मी - में मुसलमान, सिख, जैन और अन्य मर्यादा बनाम धर्मी स्त्रियाँ शामिल हैं) का पालन करने और ना करने के बीच और दंडित किए जाने के भय के बीच स्त्री झूलती रहती है। लिहाज़ा वह शोषण का शिकार रहती है, हमेशा ही। अभी भी 'विक्टिम' को ही उकसाने वाली वस्तु के रूप में देखा जाता है। यही सच बनारस का भी है। इसीलिए #BHU की लड़कियों की लड़ाई बड़ी लड़ाई है। कृपया इसे रीड्यूस ना करें, और 'अदर फैक्टर्स' भी आक्रोश का हिस्सा हुए, कह कर लड़ाई को डीरेल ना करें। उम्मीद है कि इस लड़ाई में स्त्रियाँ हर तबके, पार्टी, जाति, धर्म से आगे बढ़ एक साझा मोर्चा बनाएंगी। और साथी पुरुष मित्रों का तो कहना ही क्या.. उनका खुले दिल से स्वागत है। लेकिन अब-- 'बात बोलेगी '

वंदना राग

स्थिति गंभीर है

आज रविवार के दिन बीएचयू में कर्फ्यू की स्थिति बनी हुई है। मैं तीन-चार लाठियां खाने के बाद थोड़ी दूरी पर बैठा हुआ हूं। सुना है कि अमर उजाला का कोई फोटोग्राफर भी लाठियां खाकर बैठा है। यह मीडिया पर भी हमला है, लेकिन मैं उन लड़कियों के लिए चिंतित हूं जो कल रात से लगातार फोन कर रही हैं। लड़कियों के हॉस्टल के गेट बाहर से बंद कर दिए गए हैं। कल रात की पिटाई में पुलिस ने छात्राओं के साथ-साथ किसी-किसी वार्डेन को भी पीट दिया। अब लड़कियों को कहा जा रहा है कि जिसको भी दुर्गापूजा की छुट्टी के लिए घर जाना है, आज ही निकल जाओ। ऐसे में कुछ लड़कियों-लड़कों ने हिम्मत की है निकलने की तो कैम्पस में मौजूद सीआरपीएफ और पीएसी के जवान पीटने लग रहे हैं। स्थिति गंभीर है। बीएचयू का आधिकारिक बयान कह रहा है कि "राष्ट्रविरोधी ताकतें राजनीति कर रही हैं"। शायद बलात्कार और यौन शोषण का विरोध करना राष्ट्रविरोध राजनीति है, ऐसा मुझे हाल के दिनों में पता चला है। बहुत सारे लोग बाहर से जुट रहे हैं। बहुत सारे लोग अंदर जुटना चाह रहे हैं तो कुलपति त्रिपाठी उन्हें पिटवा दे रहा है। कल रात का मुझसे किया गया वादा कि "भईया, हम लोग सुबह फिर से गेट पर बैठेंगे", धीरे-धीरे टूट रहा है। अब एक नया संकल्प है कि छुट्टी के बाद फिर से आंदोलन करेंगे। हो सकता है कि ऐसा कुछ हो लेकिन ऐसा नहीं भी हो सकता है। तीन अक्टूबर तक बहुत कुछ बदल जाएगा।

अपनी बेटियों, पत्नियों, प्रेमिकाओं से कहिए ज़रूर कि लड़कियां लड़ रही हैं। मैं भी कह ही रहा हूं। मैंने लिखने वाली नौकरी पकड़ी है, लेकिन इतना तो भीतर बचा है कि कभी भी इन लड़कियों के लिए खड़ा हुआ जाए। इस वादे पर नहीं टिका तो घंटा जिएंगे? इस कैम्पस के अंदर की प्रगतिशील आत्माएं मर गयी हैं। कोई अध्यापक गेट तक नहीं आया। एक साथ बीस अध्यापक भी गेट पर आ गए होते तो ये लड़कियां उन्हें जीवन भर के लिए अपना शिक्षक मानतीं। इन अध्यापकों का विश्वविद्यालय प्रशासन और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी कुछ न कर पाता। ये एक बार और क्यों न लिखा जाए कि यहां कोई राजनीतिक दल या विचारधारा शामिल नहीं है. कई लोग जुट रहे हैं आज. कई लोगों को जुटना भी चाहिए. क्या होगा नहीं पता? लेकिन बदलाव लाने का एक तो उजाला अब दिखने लगा है।

सिद्धांत मोहन

सिहरन पैदा करने वाली हिंसा

सड़क पर रोशनी का इंतज़ाम करने और गार्ड को तैनात करने की माँग इतनी ख़तरनाक थी कि लड़कियों के हॉस्टल में घुसकर उन्हें लहूलुहान कर दिया जाए? वीसी त्रिपाठी ख़ुद को गर्व से आरएसएस का आदमी बताता है। दो मिनट आकर बात करके जिस मामले का निपटारा किया जा सकता था, उसे उलझा कर उसने विश्वविद्यालय को ही दो अक्टूबर तक बंद करवा दिया। सही-ग़लत से परे देखिए तो सिर्फ़ यही बात वीसी को उसके पद से हटाने के लिए काफ़ी है। कल हड्डियों में सिहरन पैदा करने वाली हिंसा की गई। जो लड़कियाँ रिकॉर्डिंग की कोशिश कर रही थीं, उनके हाथ पर लाठियाँ मारी गईं। स्थिति को 'सामान्य' बनाया जा रहा है। लाठी के दम पर। प्रशासन विरोध को राजनीति से प्रेरित बता रहा है। असल में प्रशासन की राजनीति ही सबके सामने आ चुकी है। वंचितों और लड़कियों को लाठी के दम पर चुप रखने की राजनीति।

सुयश प्रभु

BHU के लिए संकट की घड़ी है। यूनिवर्सिटी बन्द हो रही है छात्रावास खाली कराए जा रहे हैं।।अब सवाल यह उठता है कि क्या छात्राओं का यह पूरी तरह से लोकतांत्रिक और गैरराजनैतिक आंदोलन, छुट्टियों, दशानन और महिषासुर के वध और फिर भगवान राम औए अयोध्या आगमन की वजह से अकालमृत्यु का शिकार हो जाएगा? अब समाज के हर एक आम नागरिक,मजदूर, किसान,लेखक,कवि,शिक्षक,महिला पुरुष संगठनों, मानवाधिकार संस्थाओं की जिम्मेदारी है कि बेटियों के हाथ से इस आंदोलन को लेकर इसे आगे बढ़ाएं। यही नवरात्र में देवी की उपासना होगी,रावण भी जलाए तो उस दानव का जिसने हमारी बेटियों बहनों से एक आम इंसान की तरह जीने का हक छीन रखा है। याद रखें इसके राजनीतिकरण और केवल सोशल मीडिया पर बयानबाजी से कुछ नही होने वाला।

आवेश तिवारी

छात्र आंदोलन देश में बदलाव की बुनियाद हैं

जो छात्र राजनीति और छात्र संगठन से परिचित नहीं हैं। वे नहीं समझ सकेंगे और सरकार में पहुँचते ही हर किसी को छात्र हितों की बात करने वाले लफ़ंगों का समूह दिखने लगते हैं। लेकिन, छात्र राजनीति, आन्दोलन समझने वाले जानते है कि देश में हुए हर बदलाव की बुनियाद वहीं बनती है। छात्र आन्दोलन को अराजकता बताने वालों के लिए यही कहूँगा कि “अराजक छात्र” न हों, तो लोकतंत्र के तानाशाही में बदलने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगता। और #UnSafeBHU में पुलिस लाठीचार्ज आपको इसलिए जायज लग रहा है कि उसमें विरोधी राजनीतिक दल कूद पड़े हैं, तो आपकी बुद्धि की बलिहारी है। विरोधी राजनीतिक दल या छात्र संगठन बेवक़ूफ़ हैं अगर वो छात्रों के हक़ के किसी आन्दोलन को मज़बूत नहीं कर पा रहे हैं। ये पूरी तरह से बीएचयू प्रशासन और सरकार के ग़ैर ज़िम्मेदार रवैये की वजह से है। १९९६ से यहाँ छात्रसंघ नहीं है। होता, तो आज कुछ नेता होते, जिनसे बात की जा सकती। छात्र एकता ज़िन्दाबाद। देश का रास्ता तो छात्र राजनीति से ही तय होगा। भविष्य ही तय करेगा कि देश का भविष्य क्या होगा, कैसा होगा।

   

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