साेशल मीडिया में वायरल : छोटे भाई को पढ़ाने के लिए ईंटें तोड़ती है 12 साल की बच्ची
Anusha Mishra 13 Jan 2018 12:33 PM GMT

एक बहुत मशहूर कहावत है - एज इज़ जस्ट अ नंबर यानि उम्र सिर्फ संख्या होती है। ज़्यादातर लोग इस कहावत का इस्तेमाल अपनी बढ़ती उम्र को छुपाने के लिए करते हैं लेकिन इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे हैं जिनके लिए उम्र वाकई सिर्फ एक नंबर ही है। बांग्लादेश की एक बच्ची रोतना अख्तर भी उन्हीं लोगों में शामिल है। एक छोटी सी बच्ची जो पूरे दिन ईंटें तोड़ती है ताकि अपनी मां के ऊपर से परिवार के बोझ को कुछ कम कर सके। सोशल मीडिया पर इस बच्ची की कहानी वायरल हो रही है।
बांग्लादेश के फेमस फोटोग्राफर जीएमबी आकाश अपने फेसबुक पेज पर अक्सर इंसानों की ज़िंदगी से जुड़ी कुछ दिल छू लेने वाली कहानियां शेयर करते रहते हैं। वो तस्वीर खींचते हैं, उस तस्वीर के लोगों से उनकी ज़िंदगी को लेकर बात करते हैं और फिर उसकी कहानी को अपने फेसबुक और इंस्टाग्राम पेज पर शेयर करते हैं।
इस बार जीएमबी आकाश ने बांग्लादेश की एक ऐसी बच्ची की कहानी अपने पेज पर लिखी है जिसने अपने पापा को तब खो दिया था, जब वह सिर्फ 6 साल की थी। जीएमबी आकाश ने अपनी फेसबुक पेज में रोतना अख्तर के हवाले से लिखा -
6 साल पहले एक सड़क दुर्घटना में मेरे पिता की मौत हो गई थी। उनके जाने के बाद कई दिनों तक हम बिना कुछ खाए ही ज़िंदा रहे। हमारे पास पैसे नहीं थे, न ही खाना खाने के लिए और न ही उस कमरे का किराया देने के लिए जहां हम रहते थे। फिर मेरी मां ने काम करना शुरू कर दिया। उस समय मेरी मां, पापा के जाने से बहुत दुखी थीं। वो न तो मानिसक रूप से और न ही शारीरिक रूप से दिन भर काम करने के लिए तैयार थीं, पूरे दिन उनकी आंखें अपने पति को खो देने के दुख से भीगी रहती थीं। मैं उन्हें रात में मेरे छोटे भाई को चिपका कर रोते हुए देखती थी।
हमारा और कोई नहीं था। मेरी मां और पापा की लव मैरिज हुई थी, इसलिए उनके परिवार वालों ने भी उन्हें अपनाने से मना कर दिया था। इसलिए वे ढाका चले आए थे और मेरे पापा ने रिक्शा चलाना शुरू कर दिया। लेकिन जब मेरे पिता की मौत हो गई तब मेरी मां अकेले इतना नहीं कमा पाती थीं, यहां तक कि सुबह से लेकर शाम तक लगातार काम करके भी। मैं हर शाम उन्हें दर्द से तड़पते हुए देखती थी। मैं उन्हें अकेले ये सब सहते हुए नहीं देख सकती थी और मैंने अपनी मां के साथ तभी काम करना शुरू कर दिया, जब मैं 6 साल की थी। जब मैं पहले दिन अपनी मां के साथ काम पर गई तब वह मुझे सीने से चिपकाकर बहुत रोई थीं। वह कभी नहीं चाहती थीं कि मैं काम करूं। मेरे पापा का सपना था कि मैं और मेरा भाई स्कूल जाएं।
पहले दिन मैंने मुश्किल से 30 ईंटें तोड़ पाई थीं और एक दिन में 30 टका कमाए थे लेकिन अब मैं एक दिन में 125 ईंटें तोड़ लेती हूं और 125 रुपये कमा लेती हूं। मैं अपनी कमाई से अपने छोटे भाई राणा को पढ़ा पा रही हूं। वह बहुत अच्छा छात्र है और इस बार अपनी क्लास में सेकेंड आया है।पिछले छह महीनों से मैं कुछ ज़्यादा काम कर रही हूं जिससे ज़्यादा पैसे कमा सकूं। अभी दो दिन पहले ही मैंने अपने पैसों से भाई को साइकिल दिलाई है, जिससे वो अपने स्कूल और ट्यूशन जा सकता है। पहले उसे बहुत दूर पैदल चलना पड़ता था। मेरा भाई कहता है कि जब वह बड़ा हो जाएगा और उसकी नौकरी लग जाएगी तब वह मुझे यहां काम नहीं करने देगा।
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