सोशल नेटवर्किंग पर सेहत की जानकारियां हो सकती हैं घातक

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सोशल नेटवर्किंग पर सेहत की जानकारियां हो सकती हैं घातकgaonconnection

सेहत की जानकारी

सेहत पन्ने पर सोशल नेटवर्किंग की बात जरूर है क्योंकि सोशल नेटवर्किंग साइट्स और मैसेजिंग एप्लीकेशन्स पर सेहत की जानकारियां भी खूब साझा की जाती हैं। सवाल ये उठता है कि क्या इस तरह के त्वरित संवाद के कोई नुकसान भी हो सकते हैं क्या? जीहां, बिल्कुल हो सकते हैं। हमारे पाठकों के लिए इस सप्ताह इसी विषय पर संक्षिप्त किंतु महत्वपूर्ण जानकारी देना चाह रहा हूं।

खूब प्रसारित हुआ संदेश

सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर एक संदेश खूब प्रसारित हुआ था। गेहूं के बीजों को 10 मिनट उबालकर ठंडा होने दिया जाए और बाद में इसे बोया जाए और इसके नए पौधों को पीसकर इसका रस पिया जाए, डायबिटीज पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। एक और संदेश फेसबुक पर खूब प्रचारित हुआ जिसमें कहा गया कि धतूरे के बीजों के रस को सुबह शाम लेने से आर्थरायटिस की समस्या का तुरंत निवारण हो जाएगा।

मुझे इस तरह की जानकारियों को पढ़कर बेहद चिंता होती है। ये जानकारियां किस हद तक घातक हो सकती हैं, पहले आपसे साझा करना चाहूंगा। पिछले दिनों करनाल से एक महिला का फोन आया और उन्होंने बताया कि फेसबुक पर किसी मित्र ने आर्थरायटिस और गाउट से जुड़ी किसी जानकारी को साझा किया था जिसमें रत्ती नामक पौधे के जड़ों की चूर्ण के सेवन की बात कही गई थी। इस महिला ने इस पोस्ट को पढ़ा और आर्थरायटिस से त्रस्त अपने पति पर इसे आजमा लिया। इसका सेवन करते ही अचानक इनके पति के हृदय में धड़कने तेज हो गईं, शरीर से पसीना छूट गया और तेजी से घबराहट होने लगी। महोदया ने मुझसे सलाह मांगी, बदले में मैंने उन्हें तुरंत किसी अस्पताल जाने की सलाह दी। तीन दिनों तक अस्पताल में दाखिले के बाद महिला ने मुझे पुन: फोन किया और अपने पति की सेहत के बिगड़ने की संभावित वजहों के बारे में पूछा। बातों-बातों में उन्होंने मुझे सारी जानकारी सिलसिलेवार बताई। एक झोलाछाप आधी-अधूरी जानकारी जान तक गंवा देने वाली परिस्थितियां ला खड़ी कर सकती हैं। 

रत्ती के बीजों और जड़ों में घातक एमीनो एसिड्स 

रत्ती के बीजों और जड़ों में घातक एमीनो एसिड्स पाए जाते हैं, इतने घातक कि 3-4 बीजों को एक साथ चबा लिया जाए तो व्यक्ति की मृत्यु तक हो जाए। इस तरह की बेहूदा जानकारी कहां से भेजी गई, कैसे प्रचारित हुई और ना जाने कितने मासूम लोगों को लेने के देने पड़ गए होंगे, सोचकर ही अजीब लगता है। चलिए अब गेहूं और धतूरे वाली जानकारी पर गौर करते हैं। ये बात मेरी समझ से परे है कि गेहूं की बीजों को दस मिनट तक उबाला जाएगा तो क्या उस बीज से नए पौधे के निकल आने की कोई गुंजाइश शेष बचेगी। आखिर इस तरह की जानकारी को परोसने की मंशा क्या होती है और क्यों लोग ऐसी जानकारियों को बगैर विचार किए दूसरों तक साझा कर देते हैं। धतूरा एक जहरीली वनस्पति है, इसके सेवन से लोग मानसिक रूप से विचलित भी हो जाते हैं, बीमार व्यक्ति ठीक होना चाहता है और जब ऐसी आधी-अधूरी जानकारी उसके हाथ लगती हैं तो बेचारा ठीक होने के बजाए बीमारी की और भयावह स्थिति तक पहुंच जाता है। 

हर नुस्खे को न अपनाएं 

सोशल नेटवर्किंग साइट्स परोसे जाने वाली 90 फीसदी से ज्यादा स्वास्थ्य संबंधित जानकारियों को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि इनमे से ज्यादा से ज्यादा जानकारियां बांटकर लोग खुद को प्रचारित करके अपने ग्राहकों को तैयार करते हैं और ठीक इसी तर्ज पर फार्मा कंपनियां भी छोटे मोटे नुस्खे साझा कर अपना नाम और ब्रांडिंग करती रहती है। यदि सही जानकारियों को साझा करा जाएगा तो फिर इनके पास दुबारा आएगा कौन फार्मा कंपनियां मेडिसिन बनाने के बजाए ग्राहक बनाने में ज्यादा भरोसा करती हैं। पिछले दिनों एक बड़ी फार्मा कंपनी ने अपनी फेसबुक वॉल पर चेहरे से दाग हटाने के नुस्खे को साझा किया और इसी नुस्खे के ठीक बाजू में इन्होंने दाग हटाने वाले अपने एक उत्पाद की तस्वीर भी साझा की। इस बात को समझना जरूरी है कि नुस्खे में दम होगा तो लोग इनके इस उत्पाद को क्यों खरीदेंगे यानि नुस्खे की जानकारी अधूरी है अब इस बात को आमतौर पर लोग समझ ही नहीं पाते और फटाफट अपनी अपनी वॉल पर उस जानकारी को साझा कर देते हैं। 

आधी अधूरी जानकारी को पढ़कर लोग इसे आजमाना चाहते हैं और फिर किस्से का अंत एक बुरे अनुभव के साथ पूरा होता है और इस पूरी घटना का सबसे बड़ा नुकसान कारगर हर्बल मेडिसिन्स का होता है, ऐसे लोग हर्बल मेडिसिन्स पर भरोसा करना छोड़ देते हैं।

बगैर किसी क्लिनिकल प्रमाण की होती हैं जानकारियां

सोशल नेटवर्किंग पर साझा होने वाली ज्यादा से ज्यादा जानकारियां बगैर किसी क्लिनिकल प्रमाण की होती हैं, इन जानकारियों के पीछे किसी तरह का कोई वैज्ञानिक प्रमाण भी नहीं होता है और अधिकांशत ये जानकारियां आधी-अधूरी ही होती है। उदाहरण के तौर पर इस जानकारी से आप क्या निष्कर्ष निकालेंगे, रोज सुबह आधा पपीता खाकर आप कब्जियत और गैस की समस्या से कोसों दूर हो जाएंगे। सामान्य और सहज सी दिखाई देने वाली इस जानकारी में कुछ अधूरा सा नहीं दिखाई दे रहा, पपीता कच्चा या पका हुआ लेकिन इस तरह की जानकारी को पाते ही लोग फटाफट साझा कर देते हैं।

मेरी समझ के अनुसार पपीता पूरी तरह से पका होगा तो ही इस तरह का असर करेगा, यदि पपीता पूरी तरह पका ना हो या अधकच्चा हो और उसका सेवन किया जाए तो दस्त रोकने में कारगर होता है यानि ये कब्जियत या गैस की समस्या से त्रस्त रोगी की समस्या को दुगुनी कर सकता है। मेरा हमारे तमाम पाठकों से व्यक्तिगत अनुरोध है कि इस तरह की जानकारियों को बिलकुल हवा ना दें, आप तक इस तरह की जानकारियां आए तो इन्हें आगे साझा ना करें और जिस व्यक्ति ने आपको ये जानकारी भेजी है, उसे आगाह जरूर करें। डिजिटल इंडिया में भागीदारी के लिए आपको सचेत होना जरूरी है, प्रमाणित जानकारियों और पारिवारिक चिकित्सक की सलाह के बाद ही किसी ऐसी जानकारी पर भरोसा किया जाना चाहिए वरना लेने के देने पड़ने में समय नहीं लगता।

 

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