वो अदाकार जिसने बताया कि ग़ालिब कैसे दिखते थे?

वो अदाकार जिसने बताया कि ग़ालिब कैसे दिखते थे?

एक दौर था जब नसीरुद्दीन शाह को ऑर्ट फ़िल्मों का सुपरस्टार कहा जाता था। कॉमर्शियल फ़िल्मों से अलग वो 'निशांत' और 'अर्धसत्य' जैसी फ़िल्मों के लिए हमेशा याद किए जाएंगे। भारत में पैरलल सिनेमा को लोकप्रिय बनाने में नसीरुद्दीन शाह का अहम योगदान है।

Jamshed Qamar

Jamshed Qamar   21 July 2020 10:11 AM GMT

गहराई तक दिल में उतर जाने वाली आँखे, चेहरे पर सफेद घुंघराली दाढ़ी, कंधे पर अचकन और सर पर ऊंची टोपी पहने एक शख्स छड़ी टेकता हुआ चला जा रहा है। इस शख्स की चाल में लड़खड़ाहट है, चेहरे पर कंपकपाहट है.. वो हाज़िर जवाब भी है और मज़ाहिया भी... ये शख़्स है उर्दू शायरी की पेशानी पर लिखा हुआ नाम - मिर्ज़ा ग़ालिब। साल 1988 में छोटे पर्दे पर लोगों ने 'मिर्ज़ा ग़ालिब' सीरियल देखा तो उन्हें यकीन हो गया कि वो जिसे देख रहे हैं वो कोई अदाकार नहीं, बल्कि मिर्ज़ा ग़ालिब ही है। ये उस अदाकार की जीत थी, जिसने ग़ालिब बनने के लिए ग़ालिब की रुह को महसूस किया। उनका लहजा, उनके बोलने का अंदाज़, उनकी चाल, मुस्कुराहट वो सब कुछ जो किसी किताब में नहीं है, जो किसी ने नहीं देखा... उसने देखा और ज़माने को दिखाया। उस अदाकार ने लोगों के ज़हन में कभी न मिटने वाली ग़ालिब की वो तस्वीर ज़िंदा कर दी जो आने वाले बेशुमार ज़मानों तक तक ज़िंदा रहेगी। इस अदाकार का नाम है नसीरुद्दीन शाह, जिनकी आज 70वीं सालगिरह है।

धारावाहिक 'मिर्ज़ा ग़ालिब' के एक दृश्य में नसीरुद्दीन शाह

20 जुलाई 1949 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में पैदा हुए नसीरुद्दीन शाह ने यूं तो अपने करियर की शुरुआत फिल्म 'निशांत' से की थी, लेकिन छोटे पर्दे पर आया गुलज़ार साहब का सीरियल 'मिर्ज़ा ग़ालिब' उस मील के पत्थर की तरह है जिसे उन्होंने हर कामयाबी के बाद पलट कर देखा। ये और बात है कि साल 1988 में बने 'मिर्ज़ा ग़ालिब' से पहले वो खुद को 1983 में आई 'जाने भी दो यारों', साल 1986 में आई 'कर्मा' और 1987 में गुलज़ार की ही फिल्म 'इजाज़त' में खुद को साबित कर चुके थे लेकिन मिर्ज़ा ग़ालिब का किरदार करना उनके लिए भी एक चुनौती की तरह था। ग़ालिब को गुज़रे हुए ज़माना हो चुका था, कोई नहीं जानता था कि वो कैसे चलते थे, कैसे उठते थे कैसे बैठते थे.. सिर्फ एक अंदाज़ा था जिसे एक मुकम्मल किरदार की शक्ल देना था। कम लोग जानते हैं कि इस सीरियल के लिए गुलज़ार की पहली पसंद अभिनेता संजीव कुमार थे। यहां तक की उनसे बात भी हो चुकी थी, नसीरुद्दीन शाह को जब पता चला कि गुलज़ार मिर्ज़ा ग़ालिब पर सीरियल बना रहे हैं तो उन्होंने गुलज़ार को ख़त लिखा और कहा कि उन्हें उनको इस मिर्ज़ा ग़ालिब में कास्ट करना चाहिए।

मैंने गुलजार भाई को चिठ्ठी लिखी और अपनी फोटोग्राफ्स भेजी, मैंने लिखा कि ये क्या कर रहे हैं, इस फिल्म में आपको मुझे लेना चाहिए

- नसीरुद्दीन शाह एक इंटरव्यू में

नसीरुद्दीन शाह और गुलज़ार

ग़ालिब का क़िरदार नसीरुद्दीन शाह के दिल के इसलिए भी क़रीब था क्योंकि उन्होंने ग़ालिब की शायरी बचपन से सुन रखी थी और वो ग़ालिब से क़ाफी मुत्तासिर थे। लेकिन गुलज़ार को लगता था कि संजीव कुमार इस रोल को बेहतर कर पाएंगे। और तय भी यही हुआ कि संजीव कुमार ही ग़ालिब का रोल अदा करेंगे। लेकिन नाम फाइनल होने के बाद, होनी को कुछ और ही मंज़ूर था। संजीव कपूर को उन्हीं दिनों दिल का दौरा पड़ गया। उनकी सेहत गिरने लगी और शूटिंग मुश्किल हो गई। अब गुलज़ार को लगा कि अमिताभ बच्चन इस रोल के साथ इंसाफ कर पाएंगे लेकिन वहां भी बात नहीं बनी। गुलज़ार बताते हैं कि अमिताभ के साथ बात नहीं बनने पर 'मिर्ज़ा ग़ालिब' को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था और एक लंबे वक्त तक उस बारे में दोबारा कोई बात नहीं हुई। फिर एक रोज़ उन्हें जाने क्यों ये ख्याल आया कि नसीरुद्दीन शाह, वाकई इस रोल के साथ इंसाफ कर पाएंगे।

एक दिन मुझे गुलजार भाई का फोन आया कि सीरियल में काम करोगे, मैंने पूछा कौन सा सीरियल तो उन्होंने बताया वही 'मिर्ज़ा ग़ालिब', मैंने फौरन हां कह दिया

- नसीरुद्दीन शाह


चार्ली चैपलिन का एक क़िस्सा है। कहते हैं एक बार उन्हें पता चला कि शहर में 'चार्ली चैपलिन लुक अलाइक' का मुकाबला हो रहा है। इसमें तमाम लोग चार्ली चैपलिन की तरह मेकअप और उन्हीं की तरह गेटअप करके आएंगे। जो सबसे ज़्यादा चार्ली चैपलिन 'लगेगा' उसे विजेता घोषित किया जाएगा। चार्ली चैपलिन शरारतन, बिना किसी को बताए, इस मुकाबले में शामिल हो गए। वहां पहुंच कर उन्होंने देखा कि उन्हीं की तरह गेटअप किए तमाम लोग थे, जो उनकी ही एक्टिंग उनसे भी अच्छी कर रहे थे। जब मुकाबले के नतीजे घोषित हुए तो असली चार्ली चैपलिन छठे नंबर पर आए।

अदाकारी का करिश्मा यही होता है कि अदाकार उस किरदार को अपने दिल ओ ज़हन में इस तरह उतार लेता है कि वो वही हो जाता है जिसको वो खुद जी रहा है। नसीरुद्दीन शाह भी ऐसे ही अदाकार है। ख़ैर उनकी एक्टिंग के बारे में ये कहने की ज़रूरत ही नहीं कि वो बिला शुबहा दुनिया के सबसे बेहतरीन एक्टर्स में से एक हैं। ज़ाहिर है, उन्होंने मिर्ज़ा ग़ालिब के किरदार के साथ भी पूरी तरह इंसाफ किया। लोगों ने जब छोटे पर्दे पर नसीरुद्दीन शाह को 'मिर्ज़ा ग़ालिब' के तौर पर देखा तो उन्हें इस बात का यकीन हो गया कि वो 'ग़ालिब' को ही देख रहे हैं। लहजा ऐसा कि लफ्ज़ों के बीच की खाली जगह भी बहुत कुछ बोलती थी, किरदार की उम्र के बदलने से आवाज़ में करिश्माई बदलाव, चेहरे के तास्सुरात ऐसे कि हर लफ्ज़ जैसे किसी समुंदर की गहराई में ले जाए और आंखों में इतने रंग की पहचान पाना मुश्किल था कि जिसे देख रहे हैं वो किरदार है या असल मिर्ज़ा ग़ालिब। नसीरुद्दीन शाह ने जो अदाकारी उस सीरियल में की, उसने एक लंबे अर्से से किताबों में बंद मिर्ज़ा ग़ालिब और उनकी शायरी को फिर से ज़िंदा कर दिया। जिसने सोहराब मोदी की 'मिर्ज़ा ग़ालिब' के मिर्ज़ा, भारत भूषण को नहीं देखा, वो नसीर साहब को देख कर यही सोचता था कि वो मिर्ज़ा ग़ालिब को पहली बार रूबरु देख रहा है।


नसीरुद्दीन शाह की अदाकारी के सफर में नकारात्मक भूमिकाओं का ज़िक्र करना भी बेहद ज़रूरी है। उन्होंने अपनी ज़िंदगी में नेगिटेव भूमिकाएं में जिस शानदार रेंज का मुज़ाहिरा किया वो क़ाबिल ए ग़ौर है। पैरेलल सिनेमा का ये बड़ा हीरो, कमर्शियल फिल्मों में एक ख़तरनाक विलेन के तौर पर स्क्रीन पर छा गया। ये वो दौर था जब हिन्दी सिनेमा का विलेन देखने में ख़ूखांर होता था, उसके दांत गंदे और बाल बिखरे होते थे। लेकिन नसीरुद्दीन शाह ने निगेटिव भूमिकाओं में नयापन पैदा किया। विलेन का ये नया चेहरा था, खूंखार और अजीब ओ ग़रीब शक्ल वाला कोई गुंडा नहीं बल्कि सोफेस्टिकेटेड इंसान जिसके दिमाग में खतरनाक मंसूबे और आंखों में डरा देने वाला असर था। साल 1987 में आई 'मिर्च मसाला', 1999 में प्रदर्शित सरफ़रोश और 2006 में आई 'ओमकारा' इन तीनों फ़िल्मों को तमाम अवार्ड्स से नवाज़ा गया और इनमें नसीरुद्दीन शाह की एक्टिंग का लोहा सबने माना। इसके अलावा 'मोहरा' में उन्होंने दिखाया विलेन का वो चेहरा जो किसी के भी दिल में खौफ पैदा कर सकता है। अंधा होने का नाटक करने वाला एक शिकारी. लेकिन ये नसीरुद्दीन शाह की असली पहचान नहीं थी, उनका पहला प्‍यार है पैरेलल सिनेमा ही है। सिनेमा की वो धारा जिसमें एक स्टार के लिए कम और एक्टर के लिए गुंजाइश ज्यादा होती है। और ये बात किसी से छुपी नहीं कि नसीरुद्दीन शाह एक एक्टर पहले और स्टार बाद में हैं। पैरेलल सिनेमा के इस सबसे बड़े सितारे ने स्मिता पाटील, शबाना आजमी, अमरीश पुरी और ओम पुरी सरीखे माहिर कलाकारों के साथ मिलकर आर्ट फिल्मों को एक नई पहचान दी। 'निशान्त' जैसी सेंसेटिव फिल्म से अभिनय का सफर शुरू करने वाले नसीर ने 'आक्रोश', 'स्पर्श', 'भवनी भवाई', 'अर्धसत्य', 'मंडी' और 'चक्र' सरीखी फिल्मों में अभिनय की नई मिसाल पेश कर दी। किरदारों के साथ दोस्ती कर लेने वाले नसीरुद्दीन शाह जब पर्दे पर उतरते हैं तो कैरेक्टर ही एक्टर हो जाता है और नसीर सिर्फ वो करते हैं जो उस सिचुएशन में कैरेक्टर करता।

आज नसीर साहब की सालगिरह के मौके पर फ़िल्म इंडस्ट्री के तमाम लोग उन्हें ट्वीटर पर मुबारकबाद दे रहे हैं। ये और बात है कि वो खुद ट्वीटर पर नहीं हैं।



To one of the finest actors of cinema, who essays each role with perfection. 💯 Happy Birthday, #NaseeruddinShah! pic.twitter.com/UtkrgOvUZz



नसीरुद्दीन शाह को इंड्रस्ट्री में काम करते हुए पांच दशक बीत चुके हैं। उनकी एक्टिंग कई मकामों से गुज़रते हुए हर किरदार में हर बार अलग लगी है। और यही उनकी ख़ूबी है और यही उनके लोकप्रियता की वजह। एक OTT प्लैटफ़र्म पर अगले महीने उनकी नई सीरीज़ 'Bandish Bandits' रीलीज़ होने वाली है। ज़ाहिर है, सत्तर की उम्र के पायदान पर खड़े नसीरुद्दीन शाह जितने कल लोगों के पसंदीदा थे उतने ही आज भी हैं। उनकी सालगिरह पर गाँव कनेक्शन की तरफ़ से भी उन्हें ढेरों बधाई।

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